Sunday, March 25, 2012

नींव का पत्थर


दिखते नहीं 
पर 
सहते हैं 
सारा बोझ 
ईमारत का .....

खिड़की 
दरवाज़े 
और कंगूरे 
ये तो बस 
यूँ ही इतराते रहते हैं ..

यही तो 
रीत है जग की 
जो दीखता है 
प्रशंसा पाता  है 
जो मरता है 
भुला दिया जाता है 


(मंजू मिश्रा )

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