उसने
खाद से जीवन लिया,
हवा, पानी और प्रकाश
ग्रहण किया परिवेश से,
अन्यान्य सुखद परिवर्तनों की
नींव पड़ी भीतर
और अस्तित्व में आ गया फूल
खाद की सदाशयता
त्याग, तपस्या और अनुराग
हवा, पानी एवं प्रकाश का
सहर्ष उत्कट सहभाग
है सौन्दर्य के प्राकट्य का मूल
यूँ ही नहीं खिल आता है फूल
आंशिक रूप से
ग्रहण किया गया
हर तत्व,
खिलखिलाहट में उसकी
मुस्काता है!
कितने ही अव्यव
रूप अपना
त्यागते हैं,
तब जाकर एक फूल
अस्तित्व में आता है!
(अनुपमा पाठक )
No comments:
Post a Comment
Do Leave a Comment