Monday, August 13, 2012

काश......


कहीं
किसी भाषा में
कोई तो शब्द ऐसा होता
जो यहाँ के भाव
जस का तस
वहाँ तक पहुंचा देता
पर ये खेद की बात है, 
ऐसा होता नहीं है...

शब्दों की अपनी सीमाएं हैं...
अपने बंधन हैं...
और जब यूँ चलते हैं शब्द
एक स्थान से अपने गंतव्य की ओर
तो मार्ग में
और भी अन्य ध्वनियाँ
साथ हो लेती हैं,
या कभी कभी
ऐसा भी होता है-
कुछ ध्वनियाँ छिटक जाती हैं
मूल शब्द से;
अपनी समग्रता में तो शब्द
नहीं ही पहुँचते हैं
मंजिल तक!

सम्प्रेषण की सारी समस्याएं
और इन समस्यायों से
जन्म लेने वाली
अन्य भिन्न समस्याएं...
जाने
क्या उपचार है इसका?

शब्द अपना काम करें,
पर शब्द और भाषा से परे भी
एक ज़मीन हो...
जहाँ मौन में बात हो जाए...
आपसी समझ और सहजता की वह निधि हो
जो हर कठिन परिस्थिति में
समाधान लेकर अवतरित हो पाए...
काश!

(Anupama Pathak)

No comments:

Post a Comment

Plz add your comment with your name not as "Anonymous"