Saturday, August 18, 2012

Ab mujhe koi intezaar kahan? Rekha Bhardwaj



"Ab Mujhe Koi Intezaar Kahan" (अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ) रेखा भारद्वाज (Rekha Bhardwaj) के सबसे शानदार और दर्द भरे गीतों (Ghazal-style songs) में से एक है।

यह गीत फिल्म 'इश्किया' (Ishqiya) से है, जिसे विशाल भारद्वाज (Vishal Bhardwaj) ने संगीत दिया है और इसके बोल महान शायर गुलज़ार (Gulzar) साहब ने लिखे हैं।

गीत का सार (Summary of the Song)

यह एक धीमी, शांत और उदास धुन वाली ग़ज़ल है जो गहरे तन्हाई (loneliness) और अभाव (absence) की भावना को व्यक्त करती है।

  • अर्थ (Meaning): यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि अब दिल में कोई इंतज़ार (waiting/hope) बाकी नहीं रहा। यह उम्मीद के खत्म हो जाने और किसी प्रियजन के चले जाने के बाद बचे खालीपन का एहसास कराती है।

  • भाव (Emotion): गाने का पूरा भाव उदासी, शांत स्वीकृति और एक मीठे दर्द से भरा है।

  • प्रमुख पंक्तियाँ (Key Lines):

    "अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ, वो जो बहते थे आबशार कहाँ" (Ab mujhe koi intezaar kahan, woh jo behte the aabshaar kahan) अर्थ: अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ है, वो जो झरनों (आँसुओं) की तरह बहते थे, वो भी अब कहाँ हैं?

रेखा भारद्वाज की आवाज़ में एक विशेष दर्द और गहराई है जो इस तरह के काव्यात्मक और भावनात्मक गीतों को एक अलग स्तर पर ले जाती है। गुलज़ार साहब के शब्द और विशाल भारद्वाज का संगीत मिलकर इसे एक मास्टरपीस बनाते हैं।


(This video is posted by channel – Rekha Bhardwaj-Topic on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

 

मैं होना चाहता हूं...


जो जीने और होने  के बीच का फर्क़  नही समझता 
वो मुझे नहीं समझता 
क्योंकि मेरे  लिये जीना सिर्फ
साँसों  के आने जाने को कहते हैं
और ये तो  कोमा के मरीज़  में भी होता है,
जो जीते हुए भी नही जीता
और होते हुए भी नहीं होता

होना वक्त की सख्त  ज़मीन पर 
जीते जी अपने वजूद के निशाँ छोड़ना  है
होना समय की तेज लहरों  को
थोडा सा ही सही 
किसी सार्थक दिशा में मोड़ना  है
एक ऐसी  दिशा में,  जिसके क्षितिज पर  
तुम्हारा  नाम जड़ा  हो
छोटा सा  ही सही ,

मैं  होना चाहता हूं,
उस  समय भी,
जब मुझ में साँसों  का ये  सिलसिला टूट  जाए
मैं  होना चाहता हूं, उस  सीमा के बाद भी
जहाँ  मेरा शरीर  पीछे छूट जाए ............

(प्रशांत वस्ल )


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