Tuesday, September 04, 2012

Mere jehan mein Aawara sa..........मेरे ज़ेहन मे आवारा सा




Kheench deta hai daleelon ki lakeer
खींच देता है दलीलों  की लकीर
hum dono ke darmiyaan
हम दोनो के दरमियां
uljhata hai meri khawaahishon se 
उलझता है मेरी ख्वाहिशो से,
Tokta hai meri justjuuon ko 
टोकता है मेरी जुस्तजुओ को..
juda hai mere raaston se 
जुदा है मेरे रास्तो से
ziddi bhi hai............maghroor bhi hai thoda 
जिद्दी भी है ...मगरूर भी है थोडा
yaadon ke teelon per aqsar tanha khada milta hai
यादो के टीले पर अक्सर तन्हा खड़ा मिलता है
mujhse mukhtalikh.... .....ek shaqs
मुझसे मुख्तलिख ....एक शख्स

mere zehan mein aawaara sa phirta hai.............................
मेरे ज़ेहन मे आवारा सा फिरता है ............................


(Dr. Anuraag)

Aehsaan faraamosh sa din.....अहसान-फ़रामोश सा दिन

Musalsal bhaagti zindagi mein...

मुसलसल  भागती ज़िंदगी में ....

aehsaan faraamosh sa din..

अहसान -फ़रामोश सा दिन
.
tajarbon ko jab.. 

तजुर्बो को जब,

shaam ki thandi hatheli pe rakhta hai...

शाम की ठंडी हथेली पर रखता है......

zehan ki jeib se .

ज़ेहन की जेब से,

kuch tassavvur farsh pe bichaata hoon....

कुछ तसव्वुर फ़र्श पर बिछाता हूँ


fursat ki chaadar kheenchkar...

फ़ुरसत की चादर खींचकर..

uske tale pair phailaata hoon....

उसके तले पैर फैलाता हूँ 

ek nazm girebaan pakad ke mera...

एक नज़्म गिरेबा पकड़ के मेरा....

pata poochti hai mujhse...

पता पूछती है मुझसे

"Bata to 

"बता तो

tu kahaan tha?".....

 तू कहाँ था?" ........




(Dr. Anurag)