Tuesday, September 11, 2012

अंत में ....



अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता ,
सुनना चाहता हूँ ,
एक समर्थ सच्ची आवाज़ ,
यदि कहीं हो …
अन्यथा ,
इससे पूर्व कि,
मेरा हर कथन ,
हर मंथन , हर अभिव्यक्ति ,
शून्य से टकराकर फिर वापिस लौट आये ,
उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूँ ,
जो मृत्यु है …
वह बिना कहे मर गया ,
यह अधिक गौरवशाली है ,
यह कहे जाने से ,
कि वह मरने के पहले ,
कुछ कह रहा था ,
जिसे किसी नें सुना नहीं ……..


(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)

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