मेरा सम्मान मत करना
क्योंकि मैं एक इंसान हूँ
और इंसान में होती हैं
सौ बुराइयाँ भी
सौ कमज़ोरियाँ भी..
क्योंकि मैं एक इंसान हूँ
और इंसान में होती हैं
सौ बुराइयाँ भी
सौ कमज़ोरियाँ भी..
इंसान में होते हैं
सौ अवगुण भी
सौ दोष भी…
सौ अवगुण भी
सौ दोष भी…
इसलिए…..
मुझे सम्मानित हर्ग़िज़ मत करना
क्योंकि जो हार तुम मुझे पहनाओगे
वही पहन लेंगी मेरी कमज़ोरियाँ भी
जिस आसन पर तुम मुझे बैठाओगे
मेरे साथ उसी पर बैठेंगे
मेरे दोष भी…
क्योंकि जो हार तुम मुझे पहनाओगे
वही पहन लेंगी मेरी कमज़ोरियाँ भी
जिस आसन पर तुम मुझे बैठाओगे
मेरे साथ उसी पर बैठेंगे
मेरे दोष भी…
और मेरे दोस्त !
आसन पर बैठे हुए दोषों से बुरा
कुछ नहीं होता।
आसन पर बैठे दोष
दोषी बना देते हैं एक युग को।
सिंहासन पर बैठी कमज़ोरियाँ
कमज़ोर बना देती हैं एक पीढ़ी को।
कुछ नहीं होता।
आसन पर बैठे दोष
दोषी बना देते हैं एक युग को।
सिंहासन पर बैठी कमज़ोरियाँ
कमज़ोर बना देती हैं एक पीढ़ी को।
इस लिए मत सम्मान देना मुझे
मेरे दोषों और कमज़ोरियों के साथ।
अगर कोई एकाध अच्छाई
मिल जाए मुझमें
तो सम्मान देना उसे।
मेरा नाम लिए बग़ैर
उसे पहनाना श्रद्धा के हार
और बैठा लेना
ह्रदय के सिंहासन पर
उसे,
मेरे दोषों और कमज़ोरियों के साथ।
अगर कोई एकाध अच्छाई
मिल जाए मुझमें
तो सम्मान देना उसे।
मेरा नाम लिए बग़ैर
उसे पहनाना श्रद्धा के हार
और बैठा लेना
ह्रदय के सिंहासन पर
उसे,
मुझे नहीं,
क्योंकि मैं एक इंसान हूँ
और इंसान में होती हैं
सौ कमज़ोरियाँ भी,
सौ बुराइयाँ भी….
क्योंकि मैं एक इंसान हूँ
और इंसान में होती हैं
सौ कमज़ोरियाँ भी,
सौ बुराइयाँ भी….
(रविकांत अनमोल)