यह गीत हिंदी सिनेमा के इतिहास के सबसे रोमांटिक, ऊर्जावान और आइकॉनिक डांस नंबरों में से एक है। यह 1957 की क्लासिक फ़िल्म 'नया दौर' (Naya Daur) का हिस्सा है।
यहाँ इस गीत का विवरण और फ़िल्म से जुड़े दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:
गीत का विवरण: "उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी"
यह एक क्लासिक पंजाबी लोक-शैली का युगल गीत (Duet) है, जो अपनी चंचलता और ज़बरदस्त ताल (rhythm) के लिए जाना जाता है।
| विशेषता | जानकारी |
| फ़िल्म | नया दौर (Naya Daur) (1957) |
| गायक/गायिका | मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi) और आशा भोंसले (Asha Bhosle) |
| संगीतकार | ओ. पी. नैय्यर (O. P. Nayyar) |
| गीतकार | साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) |
| कलाकार (फिल्मांकन) | दिलीप कुमार (Dilip Kumar) और वैजयंतीमाला (Vyjayanthimala) |
वीडियो का सार और मूड
थीम: यह गीत नायक (दिलीप कुमार) द्वारा नायिका (वैजयंतीमाला) को छेड़ने और उसके जादू (charm) की प्रशंसा करने के बारे में है। नायक मज़ाकिया अंदाज़ में कहता है कि जब नायिका की ज़ुल्फ़ें उड़ती हैं, तो यह मौसम को बदल देता है और हर कोई नाचने लगता है।
आइकॉनिक सीन: यह गीत एक चलती हुई ताँगे (Tonga) पर फ़िल्माया गया है, जहाँ वैजयंतीमाला और दिलीप कुमार ऊर्जावान लोक नृत्य (Folk Dance) करते हैं। यह भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार ऑन-स्क्रीन नृत्य दृश्यों में से एक है।
ओ. पी. नैय्यर का टच: ओ. पी. नैय्यर के संगीत की पहचान इसमें साफ़ दिखती है, जिसमें तेज़ ताल, घोड़े की टापों जैसी ताल (horse trot rhythm) और ऊर्जा से भरा वाद्य-संगीत (instrumentation) है, जिसने इस गाने को एक शाश्वत पार्टी एंथम बना दिया।
रफ़ी-आशा की केमिस्ट्री: मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले ने अपनी चंचल और खुशनुमा आवाज़ों से इस गीत को और भी आकर्षक बना दिया, जो दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री के लिए एकदम सही थी।
फ़िल्म 'नया दौर' (1957) से जुड़े दिलचस्प तथ्य
'नया दौर' को हिंदी सिनेमा में एक सामाजिक क्लासिक के रूप में याद किया जाता है, जिसने आधुनिकीकरण के सवाल उठाए।
सामाजिक थीम: फ़िल्म का मुख्य विषय मानव श्रम बनाम मशीनीकरण (Man vs. Machine) का संघर्ष था। दिलीप कुमार अपने गाँव के लोगों के रोज़गार को बचाने के लिए एक नई बस (मशीन) के मालिक (अजीत) के ख़िलाफ़ ताँगा (मानव श्रम) चलाकर दौड़ जीतते हैं।
रंगीन सिनेमा का शुरुआती दौर: यह फ़िल्म भारत की शुरुआती फिल्मों में से थी जिसे पूरी तरह से रंगीन (Technicolor) प्रिंट में रिलीज़ किया गया था (हालाँकि इसका एक ब्लैक एंड व्हाइट वर्ज़न पहले जारी हुआ था)।
संगीत विवाद और नैय्यर का कमाल:
पहले इस फ़िल्म के संगीतकार एस. डी. बर्मन थे, लेकिन निर्देशक बी. आर. चोपड़ा के साथ मतभेद के कारण उन्होंने फ़िल्म छोड़ दी।
बाद में ओ. पी. नैय्यर ने कमान संभाली और इस फ़िल्म का संगीत हिंदी सिनेमा के इतिहास के सबसे सफल और प्रसिद्ध साउंडट्रैक में से एक बन गया।
वैजयंतीमाला पर क़ानूनी लड़ाई: फ़िल्म में दिलीप कुमार के साथ पहले मधुबाला को साइन किया गया था। जब मधुबाला के पिता ने शूटिंग लोकेशन बदलने पर आपत्ति जताई, तो निर्देशक बी. आर. चोपड़ा ने उन्हें हटाकर वैजयंतीमाला को कास्ट किया। इस घटना ने एक लंबी और बहुचर्चित क़ानूनी लड़ाई (Court Case) को जन्म दिया था।
ब्लॉकबस्टर सफ़लता: यह फ़िल्म 1957 की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्मों में से एक थी और इसे आज भी एक प्रभावशाली सामाजिक ड्रामा के रूप में याद किया जाता है।