Zaroorat Torr Deti Hai Gharoor-o-BeNiazi Ko,
Na Hoti Koi Majburi To Har Banda "Khuda" Hota.
Na Hoti Koi Majburi To Har Banda "Khuda" Hota.
ज़रूरत तोड़ देती है ग़ुरूर-ओ-बे-नियाज़ी को,
न होती कोई मजबूरी तो हर बंदा "ख़ुदा" होता।
परवीन शाकिर
ज़रूरत तोड़ देती है ग़ुरूर-ओ-बे-नियाज़ी को,
न होती कोई मजबूरी तो हर बंदा "ख़ुदा" होता।
परवीन शाकिर
मैंने उस के बदले लहजे की वज़ाहत पूछी,
कुछ देर खामोश रहा...!
फिर मुस्कुरा के बोला...
"पागल" जब लहजे बदल जाएँ तो वज़ाहतें कैसी ?
Wasim Barelvi
मुझे न ढूँढ ज़मीन-ओ-आसमान की गर्दिश में,
तेरे दिल में नहीं हूँ तो फिर कहीं भी नहीं हूँ...
Unknown
ख़ामोश ऐ दिल! भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा,
अदब पहला क़रीना है मोहब्बत के क़रीनों में...
Allama Iqbal