Thursday, July 26, 2012

मुहावरे.....


बेकार चीज़ फेंक देना होता है सही...
ऐसा सुनते आए अब तक...

पर जब शब्द अर्थ खोने लगें तो क्या करें ...
ज़ाहिर है फेंक दो उन्हें अंधी खाई में...

ऐसे कुछ शब्दों से बने मुहावरे खो चुके हैं अर्थ...
पर कुछ लकीर के फकीर करते हैं उनका उपयोग गाहे-बगाहे...
उदाहरणार्थ वो कहते हैं 
झूठ के पाँव नहीं होते...
पर अक़्सर नज़र आते  हैं कई झूठ, कई तरह की दौड़ों में अव्वल आते हुए..
सांच को आंच नहीं... 
पर सच जला-बुझा सा कोने में पड़ा मिलता है अदालतों में...
भगवान के घर देर है...अंधेर नहीं..
पर भगवान ख़ुद अमीरों की इमारतों में उजाला करने में है व्यस्त
सौ सुनार की, एक लोहार की...
पर आज के बाज़ार ने लोहार को गायब कर दिया बाज़ार से...
न नौ मन तेल होगा...न राधा नाचेगी..
पर राधा मीरा नाच रहीं चवन्नी-अठन्नी पर किसी सस्ते बार में...
चैन की नींद सोना...
पर मेरे बूढ़े पिता रिटायर होने के बाद जागते हैं उल्लुओं की तरह... 
अनिष्ट की आशंका में...
ये मुहावरे मिटा डालो 
फाड़ो वो पन्ने जो इनका बोझ ढो के बोझिल हो चुके.. 
निष्कासित करो उन लकीर के  फकीरों को..
जो इनके सच होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं...

(अश्विनी)

kyu na bole mose mohan.wmv

"I Just Called to Say I Love You" with saxaphone

Yeh Shyam Mastani by Manohari Singh

मैं कविता में.... मुझ में कविता ....


मैं , अक्सर ही
अपनी इक बेसुध-सी धुन में
कुछ लम्हों को साथ लिए, जब
अलबेली अनजानी ख़्वाबों की दुनिया में
ख़ुद अपनी ही खोज-ख़बर लेने जाता हूँ
तब, कुछ जानी-पहचानी यादों का जादू
मुझको अपने साथ बहा कर ले जाता है ...
लाख जतन कर लेने पर भी
कुछ पुरसोज़ ख़यालों को, जब,
लफ़्ज़ों से लबरेज़ लिबास नहीं मिल पाता
ज़हन में, पल-पल चुभते, तल्ख़ सवालों का जब
मरहम-सा माकूल, जवाब नहीं मिल पाता
ऐसे में मैं,,
ऐसे में मैं भूल के ख़ुद को
उसको याद किया करता हूँ
अनजानी आहट की राह तका करता हूँ
और अचानक
इक आमद होने लगती है
आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं 
कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...
फिर मैं, और मेरी ये कविता
इक दूजे से, देर तलक बातें करते हैं
काग़ज़ के टुकड़े पर फ़ैली...
वो, मेरे सीने पे सर रख, सो जाती है
मैं भी देर तलक उसको पढता रहता हूँ
हम दोनों ही खो जाते हैं...
मैं कविता में...
मुझ में कविता ....

Bus itna to hai hi.....बस इतना तो है ही


यूं ही कहीं
yun hi kahin

तनहाई के किन्हीं खाली पलों में
tanhaayi ke kinhin khaali palon mein

ख़यालात के कोरे पन्नों पर
khayaalaat ke korey pannon per

जब
jab

खिंचने लगें
khinchne lagein

कुछ आड़ी-तिरछी सी लक़ीरें
kuch aadhi tirchi si lakeerein

बुन-सा जाए
buun sa jaaye

यादों का इक ताना-बाना
yaadon ka ekk taana baana

रचने लगे
rachne lage

इक अपनी-सी दुनिया 
ekk apni si duniya 

फिर वह सब ...
phir veh sab...

कोई कविता , गीत , ग़ज़ल
koi kavita, geet, ghazal

हो न हो...
ho na ho...

बस इतना तो है ही
bus itna to hai hi

ख़ुद से मुलाक़ात का
khud se mulaaqaat ka

इक बहाना तो हो ही जाता है ...............
ekk bahaana sa to ho hi jaata hai............

(दानिश)

इबादत....


माना , 
कि मुश्किल है 
बहुत मुश्किल 

इस तेज़ रौ ज़िन्दगी की 
हर ज़रुरत में 
हर पल किसी के काम आ पाना 

इस भागते-दौड़ते वक्त में 
हर क़दम 
किसी का साथ दे पाना 

इस अपने आप तक सिमटे दौर के 
हर दुःख में 
किसी का सहारा बन पाना 

हाँ ! बहुत मुश्किल है 

लेकिन 
कुछ ऐसा भी मुश्किल तो नहीं 

ख़ुदा से 
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में 
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना 
अपना भला चाहते-चाहते 
दूसरों का भी भला मांगते रहना .... 

सच्ची इबादत.... 
अब इसके सिवा 
और... 
हो भी तो क्या !!


(दानिश)