Wednesday, August 08, 2012

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी


क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं

मैं दुखी जब जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई
मैं कृतग्य हुआ हमेशा
रीति दोनों नें निभायी
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा बोझ भारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं

एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा
उस नयन से बह सकी कब 
इस नयन की अश्रुधारा
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं


कौन है जो दूसरों को
दुःख अपना दे सकेगा
कौन है जो दूसरों से
दुःख उसका ले सकेगा
क्यूँ हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं



क्यूँ न हम लें मान , हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर
हर पथिक जिस पर अकेला
दुःख नहीं बंटते  परस्पर 
दूसरों  की वेदना में
वेदना जो है दिखाता
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं

(हरिवंश राय बच्चन )










Zindagi mere ghar aana...


आज सुबह सुबह ये गीत सुना,  आपसे शेयर का मन हुआ,  तो आप भी आनंद लीजिये इस गीत का,    जिसे सुदर्शन फाकिर  जी नें लिखा है ...beautiful song


ज़िन्दगी ज़िन्दगी मेरे घर आना, आना ज़िन्दगी

मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी न आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं हैं
है दीवारें गूम   और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त, कड़ी  धूप है दोस्त
तेरे आँचल का साया चुराके जीना है जीना
जीना ज़िन्दगी, ज़िन्दगी, मेरे घर आना

मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
मेरे घर के आगे मोहब्बत लिखा है
न दस्तक ज़रूरी, न आवाज़ देना
मैं  साँसों की रफ़्तार से जान लूंगी
हवाओं की खुशबू से पहचान लूंगी
तेरा  फूल हूँ दोस्त, तेरी धुल हूँ दोस्त
तेरे हाथों में चेहरा छुपाके जीना है जीना, जीना ज़िन्दगी, ज़िन्दगी

मगर अब जो आना तो धीरे से आना,
यहाँ एक शहज़ादी सोयी हुई है
ये परियों की सपनों में खोयी  हुई है
बड़ी खूब  है ये, तेरा  रूप है ये
तेरे आँगन में, तेरे दामन में
ओ तेरी आँखों पे, तेरी पलकों पे
तेरे क़दमों में इस को बिठाके
जीना है जीना, जीना ज़िन्दगी