क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं
मैं दुखी जब जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई
मैं कृतग्य हुआ हमेशा
रीति दोनों नें निभायी
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा बोझ भारी
क्या करूं
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रुधारा
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं
कौन है जो दूसरों को
दुःख अपना दे सकेगा
कौन है जो दूसरों से
दुःख उसका ले सकेगा
क्यूँ हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं
क्यूँ न हम लें मान , हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर
हर पथिक जिस पर अकेला
दुःख नहीं बंटते परस्पर
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं
(हरिवंश राय बच्चन )