आज सुबह सुबह ये गीत सुना, आपसे शेयर का मन हुआ, तो आप भी आनंद लीजिये इस गीत का, जिसे सुदर्शन फाकिर जी नें लिखा है ...beautiful song
ज़िन्दगी ज़िन्दगी मेरे घर आना, आना ज़िन्दगी
मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी न आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं हैं
है दीवारें गूम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त, कड़ी धूप है दोस्त
तेरे आँचल का साया चुराके जीना है जीना
जीना ज़िन्दगी, ज़िन्दगी, मेरे घर आना
मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
मेरे घर के आगे मोहब्बत लिखा है
न दस्तक ज़रूरी, न आवाज़ देना
मैं साँसों की रफ़्तार से जान लूंगी
हवाओं की खुशबू से पहचान लूंगी
तेरा फूल हूँ दोस्त, तेरी धुल हूँ दोस्त
तेरे हाथों में चेहरा छुपाके जीना है जीना, जीना ज़िन्दगी, ज़िन्दगी
मगर अब जो आना तो धीरे से आना,
यहाँ एक शहज़ादी सोयी हुई है
ये परियों की सपनों में खोयी हुई है
बड़ी खूब है ये, तेरा रूप है ये
तेरे आँगन में, तेरे दामन में
ओ तेरी आँखों पे, तेरी पलकों पे
तेरे क़दमों में इस को बिठाके
जीना है जीना, जीना ज़िन्दगी
Yeh gaana kai baar suna hoga par yeh par jaise aapne pesh kiya woh isko bahut khaas bana deta hai
ReplyDeletethnx Mr.Adarsh
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