प्रशांत वस्ल जी इस समय एक कानूनी लडाई लड़ने में व्यस्त हैं- जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ हुए अन्नाय पर आवाज़ उठायी है | उन्हें न्याय मिलता नज़र नहीं आ रहा, बस उसी मनोस्थिती में लिखी उनकी कविता आपसे शेयर कर रही हूँ
आसमान में उड़ते हुए वो "गिद्ध "
बार बार नीचे देखते हैं
इस इंतज़ार में
कि कब मैं अपनी लड़ाई में लहू लुहान हो कर गिरूँ
कि कब मैं हौसला तोड़ कर , सांसें छोड़ दूं
और उनके भूखे पेट भरूँ
खिडकियों के आधे खुले परदों से
कुछ ‘डरे हुए ’..
मौत से पहले ही ‘मरे हुए ’..लोग
लगातार ‘इस अजीब सी लड़ाई का मज़ा ले रहे हैं ’
और मुन्तज़िर हैं , उस पल के
जब ‘एक बार फिर सच का हौसला झूट के गिद्धों के खौफनाक डैनों में फड-फड़ायेगा
और ‘कल के अखबार की एक सनसनी खेज़ खबर बन जाएगा ’.
…
पत्रकार मोबाइल पर हैं
चैनल के फोटोग्राफर अपने अपने कैमरा सेट कर के
सतर्क हैं ..
इन सब के लिए ‘खबर ’ तब बनूँगा मैं
जब ‘गिद्ध ’ मुझे नोच कर खा चुके होंगे
और सुकून से भरे अपने पेटों को ले कर जा चुके होंगे
……
कितना अजीब है
मैं सच को जिंदा रखने के लिए जीना चाहता हूँ
ताकि झूठ से लड़ सकूं
और ‘ये ’..इस इंतज़ार में हैं कि मैं गिरूँ ,टूटूं ,बिखर जाऊं
उन्हें ‘एक अच्छी खबर देने के लिए मर जाऊं
‘गिद्धों से समझौता है उन सबका ’
जहाँ गिद्धों की हुकूमत हो
उस देश का कुछ नहीं हो सकता ..............................
कवि के द्वारा पूछे गए कुछ सवाल : ज़रा सोचिये आप इनमें से कौन हैं
1.खामोश तमाशा देखने वाले
2.गिद्धों के खिलाफ लड़ने वाला 'बेवकूफ !' आदमी ....
3.सच की लाश को बेच कर दौलत और शोहरत हासिल करने वाले पत्रकार /नेता /टीवी जर्नलिस्ट ...या
4.गिद्ध .
यह कविता एक गहरी और विचारशील प्रस्तुति है, जो हमें हमारे समाज और खुद के बारे में सोचने पर मजबूर करती है। यह कविता दिखाती है कि कैसे सच की लड़ाई लड़ने वाले अकेले पड़ जाते हैं, जबकि बाकी सब तमाशा देखते हैं या उस लड़ाई के नतीजे से फायदा उठाने की ताक में रहते हैं।
कवि ने जो सवाल उठाए हैं, वे हम सभी से हैं। आइए इन सवालों को समझने की कोशिश करते हैं:
1. खामोश तमाशा देखने वाले
ये वो लोग हैं जो गलत होते हुए भी कुछ नहीं कहते। वे खिड़की के आधे खुले पर्दों से झाँककर लड़ाई का मज़ा लेते हैं, लेकिन उसमें शामिल नहीं होते। उन्हें डर होता है कि अगर वे सच का साथ देंगे, तो उन्हें भी नुकसान हो सकता है। ऐसे लोग अक्सर "डरे हुए" और "मौत से पहले ही मरे हुए" बताए गए हैं क्योंकि वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाना छोड़ देते हैं।
2. गिद्धों के खिलाफ लड़ने वाला 'बेवकूफ' आदमी
यह वो बहादुर इंसान है जो सच्चाई के लिए लड़ रहा है, भले ही उसे पता है कि यह लड़ाई कितनी मुश्किल है। समाज उसे 'बेवकूफ' कह सकता है क्योंकि वह एक ऐसी लड़ाई लड़ रहा है जिसमें जीतने की संभावना कम है और हारने पर उसे गिद्धों (झूठ और बुराई) द्वारा नोचा जाएगा। यह व्यक्ति हार नहीं मानता, भले ही उसे अकेलापन महसूस हो।
3. सच की लाश को बेचकर दौलत और शोहरत हासिल करने वाले पत्रकार/नेता/टीवी जर्नलिस्ट
ये वो लोग हैं जो किसी की हार या मौत को एक "सनसनीखेज खबर" या अपने फायदे का जरिया बनाते हैं। वे सच की परवाह नहीं करते, बल्कि सच की हार या किसी की पीड़ा को बेचकर पैसा और नाम कमाते हैं। उनके लिए सच की लड़ाई सिर्फ एक धंधा है, जिससे उन्हें TRP, सुर्खियाँ और फायदा मिले।
4. गिद्ध
ये झूठ और बुराई का प्रतीक हैं। वे उन लोगों का इंतजार करते हैं जो सच की लड़ाई लड़ते हुए कमजोर पड़ते हैं। जैसे ही कोई गिरता है, वे उसे नोच-नोचकर खत्म कर देते हैं। ये वो लोग हैं जो खुद लड़ने की बजाय दूसरों की हार पर जीते हैं।कवि का यह सवाल कि आप इनमें से कौन हैं, हमें अपने भीतर झाँकने के लिए मजबूर करता है। क्या हम सिर्फ तमाशा देखते हैं, सच के लिए लड़ते हैं, दूसरों के दर्द से फायदा उठाते हैं या खुद ही गिद्ध बन जाते हैं?
आप इस कविता से सबसे ज्यादा किस किरदार से खुद को जोड़ पाते हैं?
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