Saturday, March 03, 2012

हाशिये का मैं ....


मै ......, ना -ना  नाम नहीं बताना चाहता
वर्ना - जाति , धर्म , संप्रदाय में बाँट दिया जाऊंगा ..
पढना चाहता हूँ  , आगे बढ़ना चाहता हूँ ..
जिससे अपने देश - समाज के लिए कुछ सार्थक कर सकूँ
लेकिन - पढ़ ना पाने की मजबूरियां हैं
आर्थिक - सामाजिक बेड़ियाँ हैं
जिससे हाशिये का मैं 
हाशिये तक ही सीमित रह जाता हूँ ....
सुना है -
आजकल आरक्षण का जिन्न ,
बोतल से बाहर आ गया है ...
क्या  मेरी योग्यता और लगन को
ये दानव निगल ना लेगा ...
और -
अदना सा मै -
हाशिये की रेखा पार ही ना कर पाऊंगा......
मेरे कई जानने वाले
इस जिन्न की रेखा में समाते हैं ...
लेकिन - फिर भी
वे मेरे साथ ही रह जाते हैं ...
ऊचाईयों को छू पाना तो स्वप्न सा ही है .....
इस तकलीफ का फंदा
मेरा गला कस रहा है
जिस कारण -
मेरी जुबान को भी शब्दों के पंख लगने लगे हैं ...
कहना चाहता हूँ उस सियासत से ...
उस तबके से ...
जो शान से घोषणाओं का बिगुल बजाते हैं
और हमारे लिए मुश्किलें पैदा कर जाते हैं ....
एक बार सोच के देखो -
स्वार्थपरता से बाहर निकल कर देखो -
मेरे जैसे लोग ...
जहाँ हैं ...
वहीं खड़े हैं , और आगे भी वहीँ खड़े नजर आयेंगें
अगर -
यथार्थ में हमारे लिए कुछ करने का जज्बा है
तो .... टुकड़ों में बाटने का हथियार हम पर मत चलाओ ...
योग्यता को मापदंड बनाओ ...
'आधार ' और  'जनसँख्या  रजिस्टर ' से
हमारी आर्थिक पहचान बताओ .....
 योग्यता सूची में नाम आने के बाद भी
जब हम फीस देने में सक्षम ना हों
तब आगे बढकर कम लगत की शिक्षा दिलवाओ ....
दफ्तरों में भी योग्यता को आधार बनाओ ...
साथ ही - कुछ और भी  अनछुई सी समस्याएं हैं
जिनके कारणों पर चिंतन कर समाधान करवाओ .....
कहते हैं -
बूँद - बूँद से घट भरता है
ईमानदार पहल कर के देखो ......
हमारे जैसे हाशिये के लोगों को  आरक्षण की जरूरत नहीं .
हमारा स्तर खुद व खुद सुधर जायेगा ..
साथ ही -हम अपने नाम से मुख्य धारा  के साथ जी पायेंगें ......!!!!!!!!
(प्रियंका राठौर )

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