Friday, March 23, 2012

प्रवृत्ति ...


आज यूँ ही 
छत्त पर डाल दिए थे 
कुछ बाजरे के दाने 
उन्हें देख 
बहुत से कबूतर 
आ गए थे खाने 
खतम हो गए दाने 
तो टुकुर टुकुर 
लगे ताकने 
मैंने डाल दिए 
फिर ढेर से दाने 
कुछ दाने खाकर 
बाकी छोड़कर 
कबूतर उड़ गए 
अपने ठिकाने 

तब से ही सोच रही हूँ 
इंसान और पक्षी की 
प्रवृत्ति में 
अंतर परख रही हूँ 
परिंदे नहीं करते संग्रह 
और न ही उनको 
चाह  होती है 
ज़रुरत से ज्यादा की 
और इंसान 
ज्यादा से ज्यादा 
पाने की चाह  में 
धन-धान्य एकत्रित 
करता रहता है 
वर्तमान में नहीं , बल्कि 
भविष्य में जाता है 
प्रकृति नें सबको 
भरपूर दिया है 
पर लालची इंसान 
केवल अपने लिए 
जिया है 
इसी लालच नें 
समाज में 
विषमता ला दी है 
किसी को अमीरी 
तो किसी को 
गरीबी दी है 
काश.....
विहंगों से ही इंसान 
कुछ सीख पाता 
तो
धरती का सुख वैभव 
सबको मिल जाता ....


(संगीता स्वरुप )


3 comments:

  1. Hi! Aunty ji aaj maine aapke Blog ko join kiya hai...aapne to link hi nahin bheja....khair...aap ka blog mujhe bahut achha laga hai....Kaash admi bhi birds se kuch sikhte...

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  2. hello Tanu welcome to my blog

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  3. Thanx Aunty......Really awesome ......hats off to you..i knew it that someday u will do something ...Congrats.

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