भाग दौड़ और भीड़ भाड़ नें
छीन ली संवेदनाएं
अब नहीं होती
सिरहन बदन में
स्पर्शों का रोमांच
जैसे खो गया है
ज़िन्दगी को,
हाँ
ज़िन्दगी को , कुछ हो गया है .....
(मंजू मिश्रा )
छीन ली संवेदनाएं
अब नहीं होती
सिरहन बदन में
स्पर्शों का रोमांच
जैसे खो गया है
ज़िन्दगी को,
हाँ
ज़िन्दगी को , कुछ हो गया है .....
(मंजू मिश्रा )
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