Na rakh Umeed-E-Wafa kisi parindey se “Wasi”
Zara par kya nikal aaye, apna hi Aashiyana bhool jaate hain...
यह शेर उर्दू के समकालीन (contemporary) और बहुत लोकप्रिय शायर वसी शाह (Wasi Shah) का है।
इस शेर में शायर ने बेवफ़ाई और एहसान फ़रामोशी (ingratitude) को 'परिंदे' के रूपक (metaphor) के माध्यम से बड़ी खूबसूरती से बयान किया है।
शेर का अर्थ (Meaning of the Couplet)
न रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी परिंदे से 'वसी': (ऐ वसी!) किसी परिंदे से वफ़ादारी की उम्मीद मत रखो।
यहाँ 'परिंदा' उस व्यक्ति का प्रतीक है, जिसे सहारा दिया गया हो, लेकिन अब वह स्वतंत्र हो गया हो।
ज़रा पर क्या निकल आए, अपना ही आशियाना भूल जाते हैं: ज़रा-से (नए) पर (पंख) क्या निकल आते हैं, वह अपना ही घोंसला (आशियाना/ठिकाना) भूल जाते हैं (यानी एहसान फ़रामोश हो जाते हैं)।
शायर कहता है कि जिस व्यक्ति को आपने सहारा दिया, और जैसे ही उसे उड़ने के लिए थोड़ी ताक़त (पंख) मिली, वह आपको और आपके दिए हुए सहारे को भुला देता है। यह शेर अक्सर उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जो सफलता मिलने पर अपने मददगारों को भूल जाते हैं।

Bahut acha hai....
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