हर बार छीन ले जाता है कोई,
मेरी तकदीर, मेरे ही हाथों से,
सुना था, गिर गिर कर उठना,
उठ कर चलना ही जिंदगी है..
यूँ,
गिरते उठते,
गिरते उठते,
आत्मा तक लहुलुहान हो गयी है,
क्या नाकामियों की,
कोई तयशुदा अवधि नहीं होती...........
अनु
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