Sunday, September 14, 2025

कृष्णा सोबती ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ....ek prasang

कृष्णा सोबती ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित भारत की एक जानी मानी लेखिका हैं ।  उनके उपन्यास ‘दिलो दानिश’ में एक प्रसंग आता है जिसमें इस रचना की मुख्य चरित्र 'महक बानो'  से एक जगह उसकी मां कहती है-

‘जानती हो, मेरे गुरु, तुम्हारे पिता क्या कहा करते? कहते नसीम बानो, दुनिया

 की एक ही राह पर दिल जमाए रखोगी तो क्या देखोगी? गवैये के लिए एक राग की, एक तान की, एक सुरताल की फिदाई  काफी नहीं. ऊपरवालों को देखो उसके हजार जलवों में. हर मौसम में नया दौर, नया शोर, नया रंग, नया रंग. हजारों तो फल और हजारों ही पात. सूरज है तो चांद भी. चांद है तो सितारे भी. आसमान है तो बादल भी. बादल है तो बिजुरी भी. धूप है तो बरखा भी. धरती है तो समुद्र भी. पर्वत है तो नदियां भी. हरियाली है तो रेतीला भी. रेत है तो कटीला भी. तपिश है तो बर्फ भी. नसीम बानों, इतने ही सुरों में हम अपनी उम्र को क्यों न गा लें.’


(रविंदर त्रिपाठी )
साभार:- समालोचन
रेखांकन मुजीब हुसैन चित्र
पसंदगी 

No comments:

Post a Comment

Do Leave a Comment

Search This Blog