यूं ही कहीं yun hi kahin तनहाई के किन्हीं खाली पलों में tanhaayi ke kinhin khaali palon mein ख़यालात के कोरे पन्नों पर khayaalaat ke korey pannon per जब jab खिंचने लगें khinchne lagein कुछ आड़ी-तिरछी सी लक़ीरें kuch aadhi tirchi si lakeerein बुन-सा जाए buun sa jaaye यादों का इक ताना-बाना yaadon ka ekk taana baana रचने लगे rachne lage इक अपनी-सी दुनिया ekk apni si duniya फिर वह सब ... phir veh sab... कोई कविता , गीत , ग़ज़ल koi kavita, geet, ghazal हो न हो... ho na ho... बस इतना तो है ही bus itna to hai hi ख़ुद से मुलाक़ात का khud se mulaaqaat ka इक बहाना तो हो ही जाता है ............... ekk bahaana sa to ho hi jaata hai............
माना , कि मुश्किल है बहुत मुश्किल इस तेज़ रौ ज़िन्दगी की हर ज़रुरत में हर पल किसी के काम आ पाना इस भागते-दौड़ते वक्त में हर क़दम किसी का साथ दे पाना इस अपने आप तक सिमटे दौर के हर दुःख में किसी का सहारा बन पाना हाँ ! बहुत मुश्किल है लेकिन कुछ ऐसा भी मुश्किल तो नहीं ख़ुदा से अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना अपना भला चाहते-चाहते दूसरों का भी भला मांगते रहना .... सच्ची इबादत.... अब इसके सिवा और... हो भी तो क्या !! (दानिश)
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About "French Roast"
Director/Writer:Fabrice O. Joubert
Release Year:2008
Genre: Animated Short Film, Comedy
Accolades: It was nominated for the Academy Award for Best Animated Short Film in 2010.
Runtime: Approximately 8 minutes
Synopsis:
The film is set in a fancy Parisian café in the 1960s. An uptight businessman (who previously shooed away a beggar) sits down and, to his horror, realizes he has forgotten his wallet and can't pay his bill, which keeps mounting as he desperately orders more coffee to buy time. His growing panic and moral dilemma play out as he interacts with the people around him—a sleeping old nun and a returning beggar—leading to a hilarious twist that plays on the theme of deceptive appearances and unexpected kindness.
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The song "Apni To Har Aah Ek Toofan Hai" is a quintessential philosophical and slightly melancholic number featuring the evergreen Dev Anand and the graceful Waheeda Rehman.
गायक (Singer): मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकार (Music Director): एस. डी. बर्मन (S. D. Burman)
गीतकार (Lyricist): शैलेंद्र (Shailendra)
फिल्मांकन: यह गीत मुख्य रूप से देव आनंद (रघुवीर) पर फिल्माया गया है, जो वहीदा रहमान (अलका) को देखकर एकांत में अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा है. यह गीत रघुवीर द्वारा अलका के साथ फ़्लर्ट करने के प्रयास के रूप में शुरू होता है, लेकिन यह एक प्रार्थना के रूप में ढका हुआ है.
फ़िल्म 'काला बाज़ार' (Kala Bazar, 1960) के बारे में दिलचस्प तथ्य
Kala Bazar एक सामाजिक-अपराध नाटक (social-crime drama) है जिसे देव आनंद के भाई विजय आनंद ने लिखा और निर्देशित किया था, और यह फिल्म नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले बनी थी.
1. आनंद ब्रदर्स की एकमात्र फिल्म
यह एकमात्र ऐसी फिल्म है जिसमें तीनों आनंद भाई—देव आनंद, विजय आनंद (जिन्होंने फिल्म का निर्देशन भी किया था), और चेतन आनंद—ने एक साथ अभिनय किया था.
देव आनंद ने मुख्य किरदार रघुवीर (Raghuveer) का रोल निभाया.
विजय आनंद ने अलका (Waheeda Rehman) के मंगेतर नंद कुमार चट्टोपाध्याय (Nand Kumar Chattopadhyay) का किरदार निभाया.
चेतन आनंद ने रघुवीर के वकील देसाई (Desai) का किरदार निभाया था.
2. रियल प्रीमियर फुटेज का इस्तेमाल
फिल्म में रघुवीर का किरदार (देव आनंद) सिनेमा टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग करता है. इस विषय को दर्शाने के लिए, फिल्म में महबूब खान की प्रतिष्ठित फिल्म 'मदर इंडिया' (1957) के असली प्रीमियर फुटेज का इस्तेमाल किया गया था.
3. नंदा और देव आनंद की पहली साथ में फिल्म
यह फिल्म अभिनेत्री नंदा और देव आनंद की एक साथ पहली फिल्म थी. हालांकि, इस फिल्म में नंदा ने देव आनंद की बहन (सपना) का किरदार निभाया था. इसके बाद, उन्होंने हम दोनों (1961) और तीन देवियाँ (1965) जैसी फिल्मों में देव आनंद के साथ रोमांटिक लीड के तौर पर काम किया.
4. संगीत और गीत
यह फिल्म एस. डी. बर्मन और गीतकार शैलेंद्र के पहले सहयोगों में से एक थी. फिल्म के अन्य लोकप्रिय गानों में "खोया खोया चाँद," और "रिमझिम के तराने" शामिल हैं.
5. कहानी का आधार
फिल्म रघुवीर (देव आनंद) की कहानी बताती है, जो एक गरीब बस कंडक्टर है. नौकरी खोने के बाद, वह अपनी माँ और भाई-बहनों का समर्थन करने के लिए सिनेमा टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग शुरू कर देता है, लेकिन कॉलेज की छात्रा अलका (वहीदा रहमान) से मिलने के बाद वह एक ईमानदार जीवन जीने का फैसला करता है.
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यह गीत महान गायक किशोर कुमार की आवाज़ में गाया गया है और यह 1971 की क्लासिक फ़िल्म 'सफ़र' (Safar) का है।
यह गाना फ़िल्म के सबसे दार्शनिक (philosophical) और मार्मिक गीतों में से एक है।
यहाँ इस गीत से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है:
गीत का विवरण
विवरण
जानकारी
गीत
"ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र"
फ़िल्म
सफ़र (Safar) (1970/1971)
गायक
किशोर कुमार (Kishore Kumar)
संगीतकार
कल्याणजी-आनंदजी (Kalyanji-Anandji)
गीतकार
इंदीवर (Indeevar)
मुख्य कलाकार
राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर, फ़िरोज़ खान
गीत का मूड
उदास, दार्शनिक, जीवन की अनिश्चितता को दर्शाता हुआ।
फ़िल्म 'सफ़र' और गीत का महत्व
राजेश खन्ना का अभिनय: यह फ़िल्म राजेश खन्ना के करियर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म है, जहाँ उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जो कैंसर से जूझ रहा है और जीवन के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रखता है।
दार्शनिक गहराई: यह गीत जीवन के आने-जाने और इसकी अनिश्चितताओं (uncertainties) पर गहरी टिप्पणी करता है। गीतकार इंदीवर ने बहुत ही सरल शब्दों में जीवन के अर्थ को समझने की कोशिश की है।
कल्याणजी-आनंदजी का संगीत: संगीत जोड़ी ने किशोर कुमार की भावपूर्ण गायकी के लिए एक शांत और चिंतनशील (reflective) धुन तैयार की थी, जो गीत के दार्शनिक मूड को पूरी तरह से पकड़ती है।
यह गीत आज भी जीवन की अस्थिरता और यात्रा को दर्शाने वाले सबसे प्रेरणादायक और मार्मिक गीतों में से एक माना जाता है।
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