यह वीडियो उमराव जान (1981) नामक ऐतिहासिक और संगीतमय ड्रामा फिल्म का पूर्ण संस्करण है, जिसमें रेखा ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह फिल्म मिर्ज़ा हादी रुसवा के 1905 के उर्दू उपन्यास 'उमराव जान अदा' पर आधारित है और इसका निर्देशन मुजफ्फर अली ने किया था।
यह फिल्म 19वीं सदी के लखनऊ के शिष्ट और पतनशील नवाबी युग की पृष्ठभूमि पर बनी एक क्लासिक कृति है।
फिल्म का विवरण (Description of the Film)
मुख्य कलाकार: रेखा (उमराव जान), फारुख शेख (नवाब सुल्तान), नसीरुद्दीन शाह (गौहर मिर्ज़ा), राज बब्बर (फैज अली)।
संगीत: खय्याम (National Award Winner), गाने आशा भोंसले द्वारा गाए गए।
पुरस्कार: रेखा को उनके प्रतिष्ठित अभिनय के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
अवधि: लगभग 2 घंटे 25 मिनट (पूरा मूवी)।
विशेषता: वीडियो में इंग्लिश सबटाइटल्स (English Subs) उपलब्ध हैं।
कहानी का सारांश (Plot Summary)
यह फिल्म एक युवा लड़की अमीराँ के दुखद भाग्य और उसके एक प्रसिद्ध तवायफ़ (Courtesan), उमराव जान, बनने के सफर को दर्शाती है:
बचपन और अपहरण: 1840 के दशक में फैजाबाद में, अमीराँ को उसके पिता के एक दुश्मन दिलावर खान द्वारा बदला लेने के लिए किडनैप कर लिया जाता है। उसे लखनऊ के एक उच्च-वर्ग के कोठे (tawaif house) में बेच दिया जाता है, जहाँ उसे उमराव जान नाम दिया जाता है।
तवायफ़ का जीवन: कोठे की मालकिन, खानुम जान, उसे कविता (शायरी), नृत्य (मुजरा), और शिष्टाचार (तहज़ीब) की उच्च शिक्षा देती है। उमराव जल्द ही लखनऊ की सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित तवायफ़ और कवयित्री बन जाती है।
अधूरा प्रेम: उमराव नवाब सुल्तान (फारुख शेख) से सच्चा प्यार करती है। हालांकि, नवाब समाज के दबाव के कारण उससे शादी नहीं कर पाता और किसी और से विवाह कर लेता है, जिससे उमराव का दिल टूट जाता है।
संघर्ष और पलायन: उमराव डाकू फैज अली (राज बब्बर) के साथ भागने की कोशिश करती है, लेकिन एक पुलिस मुठभेड़ में फैज अली मारा जाता है।
घर वापसी और अस्वीकृति: 1857 के विद्रोह (गदर) के दौरान लखनऊ पर हमले के कारण उमराव को कोठा छोड़ना पड़ता है। वह शरणार्थी बनकर अपने पैतृक गाँव फैजाबाद पहुँचती है। गाँव के लोग उसकी कला (मुजरा) की सराहना तो करते हैं, लेकिन जब वह अपने परिवार से मिलने जाती है, तो उसका छोटा भाई उसे एक तवायफ़ होने के कारण अपमानित करके घर से निकाल देता है।
अकेलापन: उमराव, दुनिया से निराश होकर, लखनऊ लौट आती है, जहाँ उसे अपना कोठा भी लूटा और वीरान मिलता है। वह अंत में अपने कला और अकेलेपन के साथ रह जाती है।
यह फिल्म अपने शानदार सेट डिजाइन, वेशभूषा, और 'इन आँखों की मस्ती', 'ये क्या जगह है दोस्तों' जैसे अमर गीतों के लिए जानी जाती है, जो उस खोए हुए नवाबी युग की सुंदरता और उदासी को दर्शाते हैं।
(This video is posted by channel – Revere Records on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)