Saturday, March 31, 2012
Tuesday, March 27, 2012
Sunday, March 25, 2012
नींव का पत्थर
दीखते नहीं
पर
सहते हैं
सारा बोझ
ईमारत का .....
खिड़की
दरवाज़े
और कंगूरे
ये तो बस
यूँ ही इतराते रहते हैं ..
रीत है जग की
जो दीखता है
प्रशंसा पाता है
जो मरता है
भुला दिया जाता है
(मंजू मिश्रा )
जागो
एक अरब से भी
अधिक लोग
जिनकी मुट्ठी में
सुनहरे सपनों की सुबह क़ैद है
क्या इतने बेचारे हैं
कि चंद खूनी भेड़िये
अपना खेल खेलते हैं
अधिक लोग
जिनकी मुट्ठी में
सुनहरे सपनों की सुबह क़ैद है
क्या इतने बेचारे हैं
कि चंद खूनी भेड़िये
अपना खेल खेलते हैं
और लोग सिर्फ देखते हैं
थोडा हो-हल्ला करते हैं
फिर रोज़ मर्राह की
ज़िन्दगी में रम जाते हैं
लेकिन ये भूल जाते हैं
कि ये नपुंसक विचारधारा,
इक्का दुक्का बचे हुए
बेदाग़ और ईमानदार
लोगों की नस्ल को
ख़तम कर रही है
थोडा हो-हल्ला करते हैं
फिर रोज़ मर्राह की
ज़िन्दगी में रम जाते हैं
लेकिन ये भूल जाते हैं
कि ये नपुंसक विचारधारा,
इक्का दुक्का बचे हुए
बेदाग़ और ईमानदार
लोगों की नस्ल को
ख़तम कर रही है
जागो
वर्ना तरस जाओगे
सच्चाई , ईमानदारी और
नैतिकता के दर्शन को
(मंजू मिश्रा )
ज़िन्दगी को कुछ हो गया है
भाग दौड़ और भीड़ भाड़ नें
छीन ली संवेदनाएं
अब नहीं होती
सिरहन बदन में
स्पर्शों का रोमांच
जैसे खो गया है
ज़िन्दगी को,
हाँ
ज़िन्दगी को , कुछ हो गया है .....
(मंजू मिश्रा )
छीन ली संवेदनाएं
अब नहीं होती
सिरहन बदन में
स्पर्शों का रोमांच
जैसे खो गया है
ज़िन्दगी को,
हाँ
ज़िन्दगी को , कुछ हो गया है .....
(मंजू मिश्रा )
सुख की पावना
समय
जब अपनी बही खोलकर बैठा
हिसाब करने
तो
मैं सोच में पड़ गयी
पता ही नहीं चला
कब
मुट्ठी भर सुख की पावना
इतनी बढ़ गयी कि
सारी उम्र बीत गयी
सूद चुकाते चुकाते
मूल फिर भी
जस का तस ......
जब अपनी बही खोलकर बैठा
हिसाब करने
तो
मैं सोच में पड़ गयी
पता ही नहीं चला
कब
मुट्ठी भर सुख की पावना
इतनी बढ़ गयी कि
सारी उम्र बीत गयी
सूद चुकाते चुकाते
मूल फिर भी
जस का तस ......
(मंजू मिश्रा )
Aazmaayshein.........आजमाईशे
aazmaaishein na hon
आजमाईशे न हों
आजमाईशे न हों
to
तो
तो
insaan ka kharapan
इन्सान का खरापन
इन्सान का खरापन
nazar nahi aata
नज़र नहीं आता
vaise, theek bhi hai
वैसे ठीक भी है
isi bahaane insaan
इसी बहाने इंसान
इसी बहाने इंसान
khud ko bhi parakh leita hai
खुद को भी परख लेता है
aur apne paanv taley ki
और अपने पाँव तले की
zameen bhi....
ज़मीन भी ....
(Manju Mishra)
Saturday, March 24, 2012
पुराने जूतों को पता है ...
नए जूते
शो-रूम की चमचमाती विंडो में बेचैन
उचकते हैं
उछलते हैं
आतुर देख लेने को
शीशे के पार की फंतासी दुनिया
नए जूते
दौड़ना चाहते हैं धड़ पड़
सूंघना चाहते हैं
सड़क के काले कोलतार की महक
वे नाप लेना चाहते हैं दुनिया
छोड़ देना चाहते हैं अपनी छाप
ज़मीन के हर अछूते कोने पर
बगावती हैं नए जूते
काट खाते हैं पैरों को भी
अगर पसंद ना आये तो
वे राजगद्दी पर सोना चाहते हैं
वो राजा के चेहरे को चखना चाहते हैं
नए जूतों को नहीं पसंद
भाषण , उबाऊ बहसें , बदसूरती
उम्र की थकान
वे हिकारत से देखते हैं
कोने में पड़े उधड़े बदरंग
पुराने जूतों को
पुराने जूते
उधड़े बदरंग
पड़े हुए कोने में परितक्य किसी जोगी सरीखे
घिसे तलों , फटे चमड़े के बीच
देखते हैं नए जूतों की बेचैनी ,हिकारत
मुह घुमा लेते हैं
पुराने जूतों को मालूम है
शीशे के पार की दुनिया की फंतासी की हक़ीकत
पुराने जूतों नें कदम दर कदम
नापी है पूरी दुनिया
उन्हें मालूम है समन्दर की लहरों का खारापन
वो रेगिस्तान की तपती रेत संग झुलसे हैं
पहाड़ के उद्दण्ड पत्थरों से रगड़े हैं कंधे
भीगे हैं बारिश के मूसलाधार जंगल में कितनी रात
तमाम रास्तों , दर्रों का भूगोल
नक्श है जूतों के जिस्म की झुर्रियों में
पुराने जूतों नें चखा है पैरों का नमकीन स्वाद
सफ़र का तमाम पसीना
अभी भी उधड़े अस्तरों में दफ़न है
पुराने जूते
हर मौसम में पैरों के बदन पर
लिबास बनकर रहे हैं
पुराने जूतों नें लांघा है सारा हिमालय
अन्टार्टिका की बर्फ के सीने को चूमा है
पुराने जूतों नें लड़ी हैं तमाम जंगें
अफगानिस्तान, फलिस्तीन , श्रीलंका , सूडान
अपने लिए नहीं
(दो बालिश्त ज़मीन काफी थी उनके लिए )
पर उनका नाम किसी किताब में नहीं लिखा गया
उन जूतों नें दौड़ी हैं अनगिनत दौडें
जिनका खिताब परों के सिर पर गया
मंदिर के बाहर ही रह गए हैं पुराने जूते हर बार
वो जूते खड़े रहे सियाचिन की हड्डी-गलाऊ सर्दी में मुस्तैद
ताकी बरकरार रहे मुल्क के पैरों की गर्मी
पुराने जूतों नें बनाए हैं राज-मार्ग ,अट्टालिकाएं , मेट्रो पथ
बसाए हैं शहर
उगाई हैं फसलें
पुराने जूतों नें पाँव का पेट भरा है
उन जूतों नें लाइब्रेरी की खुशबूदार
रंगीन किताबों से ज्यादा देखी है दुनिया
पुराने जूते खुद इतिहास हैं
बा-वजूद इसके कभी नहीं रखा जायेगा उनको
इतिहास की बुक-शेल्फ में
पुराने जूतों के लिए
आदमी एक जोड़ी पैर था
जिसके रास्तों की हर ठोकर को
उन्होंने अपने सर लिया
पुराने जूते भी नए थे कभी
बगावती
मगर अधीनता स्वीकार की पैरों की
भागते रहे ता -उम्र
पैरों को सर पर उठाये
पुराने जूते
देखते हैं नए जूतों की अधीरता , जूनून
मुस्कुराते हैं
फिर हो जाते हैं उदास
पता है उनको
के नए जूते भी बिठा लेंगे पैरों से ताल-मेल
तुड़ाकर दांत
सीख लेंगे पैरों के लिए जीना
फिर एक दिन
फेंक दिए जायेंगे
बदल देंगे पैर उन्हें
और नए जूतों के साथ
(अपूर्व )
(Painting by Van-Gogh)
Rishta........ रिश्ता
Kabhi Socha Hai
कभी सोचा है
Humaray Rishtey Ka Naam kya Hai
हमारे रिश्ते का नाम क्या है
Mohabbat, Zaroorat, Khuwaahish, Junoon, Ishq Ya
मोहब्बत,ज़रुरत, खवाहिश, जूनून, इश्क़ या
Wo Rishta Jo
वो रिश्ता जो
Aasmaan Ka Zameen Se Hai
आसमां का ज़मीं से है
Barish Ka Sehra Se Hai
बारिश का सेहरा से है
Haqiqat Ka Khuwaabon Se Hai
हकीक़त का खवाब से है
Din Ka Raat Se Hai
दिन का रात से है
Yeh Kabhi Aik Dosre Se
ये कभी एक दूसरे से
Mil Nahi Paate
मिल नहीं पाते
Lekin Aik Dosray Ke Baghair Adhoore Bhi Hain
लेकिन एक दुसरे के बगैर अधूरे भी हैं
Shayed Aisa Hi Kuch Rishta
शायद ऐसा ही कुछ रिश्ता
Mera Or Tumhara Bhi Hai.....
मेरा और तुम्हारा भी है .....
कभी सोचा है
Humaray Rishtey Ka Naam kya Hai
हमारे रिश्ते का नाम क्या है
Mohabbat, Zaroorat, Khuwaahish, Junoon, Ishq Ya
मोहब्बत,ज़रुरत, खवाहिश, जूनून, इश्क़ या
Wo Rishta Jo
वो रिश्ता जो
Aasmaan Ka Zameen Se Hai
आसमां का ज़मीं से है
Barish Ka Sehra Se Hai
बारिश का सेहरा से है
Haqiqat Ka Khuwaabon Se Hai
हकीक़त का खवाब से है
Din Ka Raat Se Hai
दिन का रात से है
Yeh Kabhi Aik Dosre Se
ये कभी एक दूसरे से
Mil Nahi Paate
मिल नहीं पाते
Lekin Aik Dosray Ke Baghair Adhoore Bhi Hain
लेकिन एक दुसरे के बगैर अधूरे भी हैं
Shayed Aisa Hi Kuch Rishta
शायद ऐसा ही कुछ रिश्ता
Mera Or Tumhara Bhi Hai.....
मेरा और तुम्हारा भी है .....
Friday, March 23, 2012
प्रवृत्ति ...
आज यूँ ही
छत्त पर डाल दिए थे
कुछ बाजरे के दाने
उन्हें देख
बहुत से कबूतर
आ गए थे खाने
खतम हो गए दाने
तो टुकुर टुकुर
लगे ताकने
मैंने डाल दिए
फिर ढेर से दाने
कुछ दाने खाकर
बाकी छोड़कर
कबूतर उड़ गए
अपने ठिकाने
तब से ही सोच रही हूँ
इंसान और पक्षी की
प्रवृत्ति में
अंतर परख रही हूँ
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रुरत से ज्यादा की
और इंसान
ज्यादा से ज्यादा
पाने की चाह में
धन-धान्य एकत्रित
करता रहता है
वर्तमान में नहीं , बल्कि
भविष्य में जाता है
प्रकृति नें सबको
भरपूर दिया है
पर लालची इंसान
केवल अपने लिए
जिया है
इसी लालच नें
समाज में
विषमता ला दी है
किसी को अमीरी
तो किसी को
गरीबी दी है
काश.....
विहंगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता ....
(संगीता स्वरुप )
उन्मादी प्रेम .....
उफनते समुद्र की
लहरों सा
उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठां
और जब नहीं होती
फलित इच्छा सम्पूर्ण
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है
गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग|
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वर
उतर जायेगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जाएगा ......
(संगीता स्वरुप )
लहरों सा
उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठां
और जब नहीं होती
फलित इच्छा सम्पूर्ण
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है
गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग|
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वर
उतर जायेगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जाएगा ......
(संगीता स्वरुप )
Thursday, March 22, 2012
Wednesday, March 21, 2012
सपने.......
मैंने
सपने खरीदे हैं
तरह तरह के सपने …
कुछ महंगे …
कुछ सस्ते …
कुछ झूठे …
कुछ सच्चे …
कुछ सच मुच
सच मुच बहुत अच्छे !!
लेकिन अफ़सोस
मेरी आँखों में
कोई फिट नहीं बैठता
अब
मेरे सामने है
मेरे सपनों का ढेर
और -एक सवाल
है कोई…
जो तराश सके ?
या आँखें
या सपने !!
(मंजू मिश्रा )
jab umr ki naqdi khatm huyi by Ibn-e-Insha
ab umar ki naqdi khatam huyi
ab hum ko udhaar ki haajat hai
hai koi jo sahokaar bane?
hai koi jo dewan haar bane?
kuch saal maheene din logon!
par sood biyaj ke bin logo!
haan apni jaan ke khazane se
haan umer ke tosha-e-khane se
kya koi bhi sahokaar nahi?
kya koi bhi dewan haar nahi?
jab naam udhaar ka aaya hai
kyun sab ne sar ko jhukaya hai
kuch kaam hamein niptaane hain
jinhen janne waale jane hain
kuch pyar dulaar ke dhande hain
kuch jag ke doosre phande hain
hum mangte nahi hazaar baras
dus paanch baras do chaar baras
haan sood boyaaj bhi de leinge
haan aur khiraaj bhi de leinge
asaan bane dushwaar bane
par koi to dewan haar bane
tum kon tumhara naam hai kya?
kuchhum se tum ko kaam hai kya?
kyun is majme me aaye ho?
kuch maangte ho?kuch laye ho?
teh kaarobaar ki bateen hain
yeh naqad udhaar ki bateen hain
hum bethain hain kashkool liye
sab umar ki naqdi khatam kiye
gar shair ke rishte aaye ho
tab samjho jald judai ho
ab geet gaya sangeet gaya
haan shair ka mousam beet gaya
ab patjhar aayi paat girey
kuch subha girey kuch raat girein
yeh apne yaar purane hain
ik umer se hum ko jaane hain
in sab ke paas hai maal bohat
haan! umer ke maah-o-saal bohat
in sab ko humne bulaya hai
aur jholi ko phelaya hai
tum jao, insey baat karein
hum tum se na mulaqaat karein
kya paanch baras?
kya umer ke apne paanch baras?
tum jaan ki thaili laye ho?
kya pagal ho soodai ho?
jab umer ka aakhir aata hai
har din sadiyaan ban jata hai
jeene ki hawis hi nirali hai
hai koun jo issey khaali hai
kya mout se pehle marna hai?
tum ko to bohat kuch karna hai
phir tum ho hamari koun bhala
Haan tum se hammara kiya Rishta??
Kiya sood byaaj ka laalach hai?
Kisi aur kharaaj ka laalach hai?
Tum sohni ho, man- mohni ho!
Tum ja ker poori umr jeeyoo!
Yeah paanch baras yeah chaar baras
Chhin jayein tou laggeiN hazar baras
Sub dost gaye sub yaar gaye
They jitnay sahookaar gaye
Bus Eik yeah naari bethi hai!
Yeah kon hai?kiya hai? kaisi hai?
HaaN ummr hummeiN darkaar bhi hai
HaaN jeenay se hummeiN pyaar bhi hai
Jab maaNgeiN jeevan ki ghaRiyaaN
"Gustaakh AkhiyaaN kith Ja laRiyaaN"
Hum qarz tummeiN lauta deinge
Kuch aur bhi ghaRiyaaN la Deinge
Ju Saa'at-o mah-o saal nahiN
Wo ghaRiyaaN jin ko zavaal nahiN
Lo Apnay Ji MeiN Utaar Liya
Lo Hum Nay Tum Se Udhaar Liya
Tumhein humse mohabbat hai
Bohat Muddat Say Aesa Hai
Keh Tum Khamosh Rehtay Ho
Koii Gehra Hai Ghum Shayed
Jisay Chup Chaap Sehtay Ho
Yoon Hi Chaltay Huye Tanha
Koii Ghumgeen Sa Nagma
Tum Akser Gungunaatay Ho
Douraan -e- Guftagu Yun Hi
Mili Nazron Say Jab Nazrain
Tu Baatain Bhool Jaate Ho
Kaise Gum Sum Si Haalat Mein
Ya Phir Barish Ke Mousam Mein
Faqat Itna Hi Kehte Ho
Udaasi Be-Wajah Si Hai
Bohat Bojhal Tabiyat Hai
Bhala Sach Kyun Nahi Kehte
" Tumhay Mujh Se Mohabbat Hai "