Saturday, March 03, 2012

Tum pukar lo a great song from hemant da





"तुम पुकार लो" हिंदी सिनेमा के इतिहास के सबसे बेहतरीन और भावपूर्ण गीतों में से एक है। यह गाना सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक अमर कविता है जिसे महान संगीतकार हेमंत कुमार (हेमंत दा) ने अपनी जादुई आवाज़ दी है।

यहाँ इस गीत से जुड़ी विस्तृत जानकारी और कुछ बहुत ही दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


तुम पुकार लो (Tum Pukar Lo) - विस्तृत जानकारी

विवरण (Detail)जानकारी (Information)
फ़िल्म (Film)ख़ामोशी (Khamoshi) (1969)
गायक (Singer)हेमंत कुमार (Hemant Kumar)
संगीतकार (Music Director)हेमंत कुमार (Hemant Kumar)
गीतकार (Lyricist)गुलज़ार (Gulzar)
अभिनय (Performed By)धर्मेंद्र (Dharmendra) और वहीदा रहमान (Waheeda Rehman)
बह्र/मीटरबह्र-ए-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ (Bah-r-e-Hazaj Musaddas Mahzuf) - एक धीमी और रोमांटिक लय।

दिलचस्प तथ्य और गीत की विशेषताएँ

1. हेमंत दा का जादू (Hemant Kumar’s Magic)

  • संगीत और गायन दोनों: यह गाना हेमंत कुमार ने गाया भी और इसका संगीत भी उन्होंने ही तैयार किया। हेमंत कुमार की पहचान उनकी शांत, गहरी और मखमली आवाज़ (Baritone voice) है, जो इस उदास और रूमानी (romantic) गीत के लिए एकदम सही थी।

  • Minimalistic Music (सादा संगीत): गाने में वाद्य यंत्रों (Instruments) का इस्तेमाल बहुत कम किया गया है। शांत वायलिन, गिटार और धीमी ताल पर ज़्यादा ज़ोर है, जिससे श्रोता का ध्यान पूरी तरह से गुलज़ार के शब्दों और हेमंत दा की आवाज़ पर बना रहता है।

2. गुलज़ार की कविता (Gulzar’s Poetry)

  • अमर शब्द: गुलज़ार साहब ने इस गीत को लिखा था। 'तुम पुकार लो' गीत नहीं, बल्कि एक लंबी कविता का अंश है। इस कविता में अकेलेपन, याद और उम्मीद के भावों को इतनी गहराई से पिरोया गया है कि यह आज भी लोगों के दिल को छूती है।

  • गीत की शुरुआती लाइनें (The opening lines):

    "तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार है... ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है..."

    (You call out to me, I am waiting for you... The restless night is picking up dreams...)

    यह लाइनें विरह (separation) और अविचलित प्रेम (unwavering love) की भावना को दर्शाती हैं।

3. 'खामोशी' फिल्म और बैकग्राउंड (Film Khamoshi and Background)

  • फिल्म की कहानी: 'खामोशी' एक नर्स (वहीदा रहमान) की कहानी थी जो मनोरोगियों (psychiatric patients) का इलाज करती है, लेकिन इस प्रक्रिया में खुद मरीजों की भावनाओं में उलझ जाती है।

  • स्क्रीन पर गीत: यह गीत फिल्म में धर्मेंद्र पर फिल्माया गया था, जहाँ वह अपनी पुरानी यादों और खोए हुए प्यार को याद कर रहे होते हैं। गाने की उदासी पर्दे पर धर्मेंद्र के शांत अभिनय में पूरी तरह झलकती है।

4. तकनीकी और ऐतिहासिक महत्व (Technical and Historical Significance)

  • गजल-नुमा कंपोजिशन: भले ही यह एक फिल्म गीत है, लेकिन इसका संगीत और कविता इसे एक शुद्ध गजल का रूप देता है। यह हिंदी सिनेमा में गंभीर, साहित्यिक गानों के दौर को दर्शाता है।

  • सादगी की शक्ति: यह गीत साबित करता है कि महान संगीत बनाने के लिए तेज़ बीट्स या भारी ऑर्केस्ट्रा की ज़रूरत नहीं होती। सिर्फ एक मेलोडी, एक ईमानदार आवाज़ और मजबूत शब्दों से भी इतिहास रचा जा सकता है।


निष्कर्ष:

"तुम पुकार लो" एक ऐसा गीत है जो समय के साथ और भी ज़्यादा कीमती होता जा रहा है। यह हेमंत कुमार, गुलज़ार और 'खामोशी' फिल्म की त्रिमूर्ति (triumvirate) की एक बेमिसाल कृति है।

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Best Of Talat Mahmood Jalte Hain Jiske Liye Sujata 1959


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Apni marzi se kahan apne safar ke hum hain (Jagjit Singh)






"अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं" ग़ज़ल के उस्ताद जगजीत सिंह की गाई हुई एक बहुत ही गहरी और दार्शनिक (philosophical) ग़ज़ल है। यह ग़ज़ल उनकी सबसे मशहूर और भावनात्मक रचनाओं में से एक है।

यहाँ इस ग़ज़ल से जुड़ी विस्तृत जानकारी और कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:

दिलचस्प तथ्य और ग़ज़ल की विशेषता

मूल जानकारी — गीत, शायर, गायक, एल्बम

  • यह ग़ज़ल लिखी है निदा फ़ाज़ली ने। 

  • इस ग़ज़ल को बहुत लोकप्रिय आवाज़ दी है Jagjit Singh ने। 

  • यह किसी फिल्म का गाना नहीं है — गैर-फिल्मी (non-film) ग़ज़ल है। 

  • Jagjit Singh के एल्बम Mirage (1990s) में यह ग़ज़ल शामिल है। 

ग़ज़ल के बोल — कुछ मुख्य मिसरे / पंक्तियाँ

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का — जिस दिशा का है, उधर के हम हैं। 

पहले हर चीज़ थी अपनी, मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं। 

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से —
किसे मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं। 

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब —
सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं। 


थिम्स और व्याख्या (Theme & Meaning / Interpretation)

इस ग़ज़ल के ज़रिए शायर एक existential / philosophical lyrically journey दर्शा रहे हैं — जहाँ “ज़िंदगी” को एक मुसाफ़िर (यात्री) की तरह देखा गया है, और “घर, पहचान, belonging, roots” जैसे सवाल हमेशा साथ रहते हैं।

मुख्य भाव —

  • Controllessness / नीयत-पर निर्भर जीवन — पहले सब कुछ “अपना” लगता था; समय के साथ, “मिटटी / हवाओं” के सफर में — हमें नहीं पता हमारी जड़ें कहाँ हैं।

  • Identity Crisis / बे-वजह महसूस होना — अपना घर, अपना शहर या देश हो, फिर भी “पराये” महसूस करना।

  • Wandering / मुसाफिराना जीवन — जन्म से लेकर सफर, तकदीर और circumstances की ध winds की दिशा तय करती है।

  • Universal belonginglessness / Rootlessness — यह ग़ज़ल सिर्फ व्यक्तिगत heartbreak नहीं; बल्कि इंसानियत, समय, इतिहास और identity का existential दर्द उभारती है।

  • Reflection on life / philosophical melancholy — जीवन के सफर में uncertainty, nostalgia, दर्द, introspection — सब कीodb (सहित)।

किसी ने लिखा है कि यह ग़ज़ल “ज़िंदगी के सफर की उलझनों में सही रास्ता कौन सा है, यह पहचानना मुश्किल” की भावनाओं को बखूबी व्यक्त करती है। 

1.क्यों आज भी आज़माई जाती है — प्यार, दर्द या जीवन की उलझन हो

  • इसकी पंक्तियाँ time-less हैं — “हम किसके”, “किधर के”, “मुसाफिर” जैसे विचार आज भी resonate करते हैं, चाहे context बदल जाए।

  • ग़ज़ल की गहराई + Jagjit Singh की आवाज़ ने इसे एक “soulful classic” बना दिया — जिससे सुनने पर जुड़ाव बना रहता है।

  • यह ग़ज़ल heartbreak/romance से ज़्यादा “existential loneliness / belongingness crisis” से जुड़ी है — इसलिए वो पहले प्यार वाले गानों से अलग, असरदार रहती है।

2. जगजीत सिंह का संगीत और गायन

  • धीमा और गहरा अंदाज़: जगजीत सिंह ने इस ग़ज़ल को बहुत ही धीमी गति (Slow Tempo) और कम वाद्य यंत्रों (minimal instrumentation) के साथ कंपोज़ किया है। यह सादगी श्रोता को ग़ज़ल के गहरे अर्थों पर ध्यान केंद्रित करने देती है।

  • भावपूर्ण गायन (Soulful Rendition): जगजीत सिंह की आवाज़ में एक खास किस्म की उदासी और गंभीरता है, जो इस ग़ज़ल के मुख्य भाव—जीवन की नियति—को पूरी तरह से दर्शाती है।

  • सारंगी का प्रयोग: इस ग़ज़ल में सारंगी (Sarangi) का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी उदास और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत वाली भावना को और गहरा करता है।

3. ग़ज़ल के यादगार अशआर (Memorable Couplets)

इस ग़ज़ल के कुछ सबसे मशहूर और गहराई वाले शेर ये हैं:

  • असली सार (The Core):

    अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं।

    रुख़ हवाओं का जिधर है, उधर ही के हम हैं।

  • जीवन की हकीकत:

    पहले हर चीज़ यहाँ थी, मगर अब कुछ भी नहीं।

    हम जहाँ हैं वो किसी और ही खंडर के हम हैं।

  • इंसानी भ्रम:

    वक़्त ने जैसे नचाया है, यूँ ही नाचे हैं।

    हम तो एक कठपुतली हैं, कोई बाज़ीगर के हम हैं।

    (हम सिर्फ एक कठपुतली हैं, जिसे कोई और (बाज़ीगर यानी नियति) नचा रहा है।)

यह ग़ज़ल सिर्फ सुनने के लिए नहीं है, बल्कि जीवन और नियति के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है।

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Hazaaron khwahisien Aisi (Mirza Ghalib)





हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी - मिर्ज़ा ग़ालिब

1. ग़ज़ल का सार (The Essence of the Ghazal)

यह ग़ज़ल इंसानी ख्वाहिशों (इच्छाओं) की अनंत प्रकृति और जीवन की सीमाओं के बीच के टकराव को दर्शाती है। ग़ालिब बताते हैं कि इंसान के दिल में हज़ारों इच्छाएँ होती हैं, लेकिन उनमें से शायद ही कोई पूरी हो पाती है।

  • मूल भावना: निराशा, नियति (Fate) के सामने समर्पण, और जीवन के हर पहलू को गहराई से महसूस करना।

  • शायरी की विधा: उर्दू ग़ज़ल।

2. सबसे मशहूर शेर (The Most Famous Couplets)

इस ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक दर्शन है, लेकिन कुछ शेर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं:

शेर (Couplet)अर्थ (Meaning)
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकलेमेरे दिल में हज़ारों इच्छाएँ हैं, और हर इच्छा इतनी ज़बरदस्त है कि उसी पर जान निकल जाए। (इच्छाओं की अत्यधिक संख्या और तीव्रता को दर्शाता है)
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकलेमेरी बहुत सी इच्छाएँ (अरमान) पूरी भी हुईं, लेकिन फिर भी वह संतुष्टि देने के लिए कम थीं।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होताजब कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा था, अगर कुछ न हो तो भी ख़ुदा ही होता। (ईश्वर की अनंतता और सर्वव्यापकता को दर्शाने वाला फ़िलोसॉफ़िकल शेर)
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिनहमने तो सिर्फ यही सुना है कि आदम (Adam) को स्वर्ग (खुल्द) से निकाला गया था,
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकलेलेकिन हम तो तेरे मुहल्ले (कूचे) से इतनी बेइज़्ज़ती के साथ बाहर निकले हैं (जितनी आदम भी नहीं हुए होंगे)।

3. गायन (Musical Renditions)

यह ग़ज़ल इतनी लोकप्रिय है कि इसे कई महान गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। सबसे प्रसिद्ध प्रस्तुतियाँ ये हैं:

  • जगजीत सिंह (Jagjit Singh): उनकी आवाज़ में यह ग़ज़ल एक शांत, उदास और गहरी छाप छोड़ती है।

  • तलत अज़ीज़ (Talat Aziz): इनकी प्रस्तुति भी काफी मशहूर है।

  • फिल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954): इस फिल्म में भी यह ग़ज़ल शामिल थी।

4. दिलचस्प तथ्य (Interesting Fact)

  • मीटर की सुंदरता: यह ग़ज़ल 'बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन् सालिम' (Bahr-e-Mutadaarik Musamman Saalim) में है, जिसका रुक्न है फ़ाइलातुन (Fa'ilaatun)। यह एक तेज़, बहती हुई और लयबद्ध बह्र है जो अक्सर ग़ज़लों में कम इस्तेमाल होती है, लेकिन ग़ालिब ने इसका उपयोग कर के इसे अमर बना दिया।

  • ग़ालिब की पहचान: इस ग़ज़ल में ग़ालिब की वह खासियत दिखती है जहाँ वह इश्क़ (प्रेम) की बात करते-करते अचानक जीवन के गहरे दार्शनिक सवालों पर आ जाते हैं।

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koi yeh kaise bataaye....



कोई यह कैसे बताए कि वह तन्हा... (जगजीत सिंह)

यह शेर मशहूर ग़ज़ल "कोई यह कैसे बताए कि वो तन्हा क्यों है" का हिस्सा है।

विवरण (Detail)जानकारी (Information)
गायक (Singer)जगजीत सिंह (Jagjit Singh)
शायर (Poet)कैफ़ी आज़मी (Kaifi Azmi)
फिल्म (Film)अर्थ (Arth) (1982)
संगीत (Music)जगजीत सिंह और चित्रा सिंह

शेर का पूरा रूप और अर्थ

यह ग़ज़ल का शुरुआती शेर (मतला) है:

कोई यह कैसे बताए कि वो तन्हा क्यों है

वो जो अपना था, वही और किसी का क्यों है

व्याख्या (Explanation):

  1. "कोई यह कैसे बताए कि वो तन्हा क्यों है"

    • मतलब: इंसान के लिए यह समझाना या शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल होता है कि वह अकेलापन क्यों महसूस कर रहा है। अक्सर अकेलेपन की वजहें इतनी जटिल होती हैं कि उन्हें आसानी से समझाया नहीं जा सकता।

  2. "वो जो अपना था, वही और किसी का क्यों है"

    • मतलब: शायर यहाँ अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण बताता है - विश्वासघात या खोया हुआ प्यार

    • जिस व्यक्ति को आप अपना मानते थे, वह आज किसी और के साथ है। यह एहसास कि अपना सबसे करीबी इंसान दूर हो गया है, अकेलेपन की भावना को बहुत गहरा कर देता है।

ग़ज़ल की खासियत

  • गहरा भावनात्मक जुड़ाव: जगजीत सिंह की शांत और दर्द भरी आवाज़ ने कैफ़ी आज़मी के इन सीधे लेकिन मार्मिक शब्दों को अमर बना दिया।

  • फिल्म 'अर्थ' का संदर्भ: यह फिल्म संबंधों में जटिलता और अकेलेपन पर आधारित थी। यह गीत फिल्म के नायक (शबाना आज़मी) की अंदरूनी पीड़ा को दर्शाता है।

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Padhna hai to insaan ko .....

























Photo Credit:Andreas Stridsberg 




Padhna hai to insaan ko padhne ka hunar seekh,
likha hai chehron pe kitaabon se bhi zyaada....

Unknown

Paal le kuch rog....



















Paal le kuch rog zindagi ke vaaste
sirf sehat ke sahaare zindagi nahi katt-ti ....

Unknown

Apni matti pe hi ....

Apni matti pe hi chalne ka saleeqa seekho,
sang-e-marmar pe chaloge to phisal jaaoge.....


यह शेर एक बहुत ही गहरा सामाजिक और दार्शनिक (philosophical) संदेश देता है, जिसे सरल शब्दों में व्यक्त किया गया है। यह शेर आधुनिक शायरी का एक बेहतरीन उदाहरण है जो विरासत और सादगी पर ज़ोर देता है।

यहाँ इस शेर का विस्तृत विश्लेषण और व्याख्या दी गई है:


अपनी मिट्टी पे ही चलने का सलीका सीखो...

1. शेर का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning)

टुकड़ा (Phrase)शाब्दिक मतलब (Literal Meaning)
अपनी मिट्टी पे ही चलने का सलीक़ा सीखो,अपनी ज़मीन (माटी/मिट्टी) पर चलने का सही ढंग (सलीक़ा) सीखो।
संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे।अगर तुम संगमरमर (मार्बल) जैसी चिकनी सतह पर चलोगे, तो फिसल जाओगे।

2. शेर का दार्शनिक और निहितार्थ (Philosophical and Deeper Meaning)

इस शेर में शायर ने 'मिट्टी' और 'संग-ए-मरमर' को प्रतीकों (symbols) के रूप में इस्तेमाल किया है:

  • 'अपनी मिट्टी' (Your Own Soil):

    • प्रतीक: यह अपनी जड़ें, संस्कृति, परंपरा, सादगी, ईमानदारी, संघर्ष और वास्तविक पहचान का प्रतीक है।

    • अर्थ: शायर सलाह दे रहा है कि अपने जीवन में अपने मूल्यों (Values) पर टिके रहें, अपनी सादगी और मेहनत को न भूलें। अपनी जड़ों को पहचानकर आगे बढ़ना ही सबसे सुरक्षित रास्ता है।

  • 'संग-ए-मरमर' (Marble):

    • प्रतीक: यह दिखावे, कृत्रिमता (Artificiality), अत्यधिक विलासिता (Luxury), पश्चिमीकरण (Westernization), चमक-दमक और आसान सफलता का प्रतीक है। संगमरमर सुंदर और चिकना होता है, लेकिन उस पर संतुलन बनाना मुश्किल होता है।

    • अर्थ: अगर आप दिखावे की दुनिया में या आसान चमक-दमक वाली राह पर चलेंगे, तो आप फिसल जाएंगे। फिसलने का मतलब है नैतिक रूप से गिरना, अपनी पहचान खोना, या नाकाम हो जाना

3. प्रमुख संदेश (Main Message)

इस शेर का मुख्य संदेश है:

  1. जड़ों से जुड़ाव (Connecting to Roots): अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति की मज़बूती को पहचानो। आपकी सादगी ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है।

  2. सादगी में सुरक्षा (Safety in Simplicity): जीवन की साधारण और वास्तविक राहें, दिखावे वाली चिकनी और आसान राहों से ज़्यादा सुरक्षित होती हैं।

  3. ईमानदारी का महत्व: अपने काम और व्यवहार में ईमानदारी (जो मिट्टी की तरह खुरदरी और मज़बूत होती है) बनाए रखना ज़रूरी है, क्योंकि दिखावे की चिकनाहट (संगमरमर) अक्सर पतन (fall) का कारण बनती है।

4. शायर की जानकारी

यह शेर मशहूर और समकालीन (contemporary) शायर अज्ञात का है। यह शेर सोशल मीडिया और मुशायरों में बहुत मशहूर हुआ, जहाँ लोग इसे अक्सर बशीर बद्र या राहत इंदौरी जैसे बड़े नामों से जोड़ देते हैं, लेकिन यह उनकी प्रमाणित रचनाओं में शामिल नहीं है। इसकी सादगी और गहरा संदेश ही इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है।

Rahi na taakat-e-guftaar....
















Rahi na taakat-e-guftaar, aur agar ho bhi,
to kis ummeed pe kahiye ke aarzoo kya hai.......

MIRZA GHALIB

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार... (मिर्ज़ा ग़ालिब)

1. शेर का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning)

टुकड़ा (Phrase)शाब्दिक मतलब (Literal Meaning)
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार,बोलने की शक्ति (ताक़त) अब बची ही नहीं,
और अगर हो भी,और मान लीजिए कि अगर वह शक्ति हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है।तो किस उम्मीद पर यह बताया जाए कि मेरी इच्छा (आरज़ू) क्या है।

Na mitt sakeingi ye.....






















Na mitt sakeingi ye tanhaayiyaan ae dost,
jo tu bhi ho, to tabiyat zaraa sambhal jaaye....

Unknown 

न मिट सकेंगी  ये तन्हाईयाँ ऐ दोस्त...

1. शेर का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning)

टुकड़ा (Phrase)शाब्दिक मतलब (Literal Meaning)
न मिट सकेंगे ये तन्हाईयाँ ऐ दोस्त,ऐ दोस्त (या प्रिय), ये अकेलापन (तन्हाईयाँ) पूरी तरह से मिट नहीं पाएगा,
जो तू भी हो, तो तबीयत ज़रा सँभल जाए।लेकिन अगर तुम मेरे पास आ जाओ, तो कम से कम मन (तबियत) में थोड़ी शांति या सुधार (सँभल जाए) आ जाएगा।

2. शेर का निहितार्थ (Deeper Meaning)

यह शेर अकेलेपन की स्वीकार्यता (Acceptance of Solitude) और दोस्त की सांत्वना (Comfort of a Friend) के बीच का अंतर बताता है:

  • पहले चरण का दर्शन (Unavoidable Loneliness): शायर जानता है कि जीवन की कुछ तन्हाईयाँ ऐसी होती हैं जो पूरी तरह से कभी खत्म नहीं होतीं। यह एक गहरी और स्थायी भावना हो सकती है जो व्यक्ति के भीतर रहती है। यह मानता है कि अकेलापन जीवन का एक हिस्सा है, जिसे पूरी तरह मिटाया नहीं जा सकता।

  • दूसरे चरण की उम्मीद (The Hope in Friendship): इसके बावजूद, शायर अपने दोस्त या प्रिय व्यक्ति को पुकारता है। वह कहता है कि भले ही तुम मेरे पास आ जाओ, तो भी यह पूरा अकेलापन तो नहीं हटेगा, लेकिन कम से कम मेरी तबियत (मन की स्थिति/Mood) थोड़ी बेहतर हो जाएगी, उसे सहारा मिल जाएगा, और वह संभल जाएगी।

3. प्रमुख संदेश (Main Message)

इस शेर का मुख्य संदेश यह है कि दोस्त या प्रियजन का साथ इलाज (Cure) नहीं है, बल्कि मरहम (Soothe) है। सच्चा साथ हमारी सबसे गहरी उदासी को खत्म नहीं कर सकता, लेकिन हमें उससे लड़ने की हिम्मत और हमारे मन को शांति ज़रूर दे सकता है। यह दिखाता है कि मानवीय संबंध (Human connection) कितनी अहमियत रखते हैं, भले ही वे अस्थायी रूप से ही क्यों न हों।

4. मीटर/वज़्न (Metre Check)

यह शेर एक बहुत ही आम और मधुर मीटर 'बह्र-ए-रमल' के एक रूप में है, जो ग़ज़लों और नज़्मों में इस्तेमाल होता है, जिससे इसमें एक धीमी और बहती हुई लय आती है।

Tamanna sar balandi ki....



























Tamanna sar balandi ki humein bhi tang karti hai,

magar hum doosron ko raund kar uuncha nahi hote.....

तमन्ना सर-बलंदी की हमें भी तंग करती है,
मगर हम दूसरों को रौंद कर ऊँचा नहीं होते...

Waseem Barelvi

1. शेर का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning)

टुकड़ा (Phrase)शाब्दिक मतलब (Literal Meaning)
तमन्ना सर-बलंदी की हमें भी तंग करती है,ऊँचा उठने की इच्छा (सर-बलंदी, यानी ऊँचाई, तरक्की) हमें भी परेशान (तंग) करती है,
मगर हम दूसरों को रौंद कर ऊँचा नहीं होते।लेकिन हम दूसरों को कुचल कर (रौंद कर) ऊँचाई हासिल नहीं करते।

2. शेर का निहितार्थ (Deeper Meaning and Philosophy)

यह शेर मनुष्य की महत्वाकांक्षा (Ambition) और नैतिक सीमा (Ethical Boundary) के बीच के संघर्ष को दर्शाता है:

  • 'तमन्ना सर-बलंदी की': यह स्वीकारोक्ति है कि शायर भी बाक़ी इंसानों की तरह सफलता, सम्मान और ऊँचाई हासिल करना चाहता है। यह इच्छा उन्हें बेचैन (तंग) करती है और उन्हें मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ शायर अपनी भावनाओं को छिपाता नहीं है।

  • 'दूसरों को रौंद कर ऊँचा नहीं होते': यह शेर का मुख्य विचार है और शायर के मज़बूत चरित्र को दर्शाता है।

    • 'रौंदना' का अर्थ है: किसी को नुकसान पहुँचाना, किसी की तरक्की रोकना, किसी का हक छीनना, या अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल करके खुद आगे बढ़ना।

    • शायर दृढ़ता से कहता है कि उसकी महत्वाकांक्षा (Ambition) कितनी भी बड़ी क्यों न हो, वह अपनी सफलता के लिए दूसरों की कीमत पर समझौता नहीं करेगा। वह अनैतिक सीढ़ी का इस्तेमाल नहीं करेगा।

3. प्रमुख संदेश (Main Message)

इस शेर का प्रमुख संदेश नैतिकता के साथ सफलता (Success with Ethics) है:

  1. शुद्ध महत्वाकांक्षा: महत्वाकांक्षी होना ग़लत नहीं है, लेकिन महत्वाकांक्षा को पूरा करने का तरीका साफ और नैतिक होना चाहिए।

  2. आत्म-सम्मान: यह आत्म-सम्मान (Self-Respect) की भावना को दर्शाता है कि व्यक्ति ऊँचाई हासिल करने के लिए दूसरों के प्रति दयालुता और न्याय के सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगा।

  3. कर्म की पवित्रता: सफलता तभी मायने रखती है जब उसे नेकनीयती और ईमानदारी से हासिल किया जाए।

4. शायर की जानकारी

यह शेर मशहूर शायर वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi) की ग़ज़ल से लिया गया है। वसीम बरेलवी अपनी ग़ज़लों में साफ़, सरल और मानवीय मूल्यों पर आधारित बातें कहने के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं।

Photo Credit :Anatol Knotek Visual Poetry

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