हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी - मिर्ज़ा ग़ालिब
1. ग़ज़ल का सार (The Essence of the Ghazal)
यह ग़ज़ल इंसानी ख्वाहिशों (इच्छाओं) की अनंत प्रकृति और जीवन की सीमाओं के बीच के टकराव को दर्शाती है। ग़ालिब बताते हैं कि इंसान के दिल में हज़ारों इच्छाएँ होती हैं, लेकिन उनमें से शायद ही कोई पूरी हो पाती है।
मूल भावना: निराशा, नियति (Fate) के सामने समर्पण, और जीवन के हर पहलू को गहराई से महसूस करना।
शायरी की विधा: उर्दू ग़ज़ल।
2. सबसे मशहूर शेर (The Most Famous Couplets)
इस ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक दर्शन है, लेकिन कुछ शेर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं:
| शेर (Couplet) | अर्थ (Meaning) |
| हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले | मेरे दिल में हज़ारों इच्छाएँ हैं, और हर इच्छा इतनी ज़बरदस्त है कि उसी पर जान निकल जाए। (इच्छाओं की अत्यधिक संख्या और तीव्रता को दर्शाता है) |
| बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले | मेरी बहुत सी इच्छाएँ (अरमान) पूरी भी हुईं, लेकिन फिर भी वह संतुष्टि देने के लिए कम थीं। |
| न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता | जब कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा था, अगर कुछ न हो तो भी ख़ुदा ही होता। (ईश्वर की अनंतता और सर्वव्यापकता को दर्शाने वाला फ़िलोसॉफ़िकल शेर) |
| निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन | हमने तो सिर्फ यही सुना है कि आदम (Adam) को स्वर्ग (खुल्द) से निकाला गया था, |
| बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले | लेकिन हम तो तेरे मुहल्ले (कूचे) से इतनी बेइज़्ज़ती के साथ बाहर निकले हैं (जितनी आदम भी नहीं हुए होंगे)। |
3. गायन (Musical Renditions)
यह ग़ज़ल इतनी लोकप्रिय है कि इसे कई महान गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। सबसे प्रसिद्ध प्रस्तुतियाँ ये हैं:
जगजीत सिंह (Jagjit Singh): उनकी आवाज़ में यह ग़ज़ल एक शांत, उदास और गहरी छाप छोड़ती है।
तलत अज़ीज़ (Talat Aziz): इनकी प्रस्तुति भी काफी मशहूर है।
फिल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954): इस फिल्म में भी यह ग़ज़ल शामिल थी।
4. दिलचस्प तथ्य (Interesting Fact)
मीटर की सुंदरता: यह ग़ज़ल 'बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन् सालिम' (Bahr-e-Mutadaarik Musamman Saalim) में है, जिसका रुक्न है फ़ाइलातुन (Fa'ilaatun)। यह एक तेज़, बहती हुई और लयबद्ध बह्र है जो अक्सर ग़ज़लों में कम इस्तेमाल होती है, लेकिन ग़ालिब ने इसका उपयोग कर के इसे अमर बना दिया।
ग़ालिब की पहचान: इस ग़ज़ल में ग़ालिब की वह खासियत दिखती है जहाँ वह इश्क़ (प्रेम) की बात करते-करते अचानक जीवन के गहरे दार्शनिक सवालों पर आ जाते हैं।
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