"अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं" ग़ज़ल के उस्ताद जगजीत सिंह की गाई हुई एक बहुत ही गहरी और दार्शनिक (philosophical) ग़ज़ल है। यह ग़ज़ल उनकी सबसे मशहूर और भावनात्मक रचनाओं में से एक है।
यहाँ इस ग़ज़ल से जुड़ी विस्तृत जानकारी और कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:
दिलचस्प तथ्य और ग़ज़ल की विशेषता
मूल जानकारी — गीत, शायर, गायक, एल्बम
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यह ग़ज़ल लिखी है निदा फ़ाज़ली ने।
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इस ग़ज़ल को बहुत लोकप्रिय आवाज़ दी है Jagjit Singh ने।
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यह किसी फिल्म का गाना नहीं है — गैर-फिल्मी (non-film) ग़ज़ल है।
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Jagjit Singh के एल्बम Mirage (1990s) में यह ग़ज़ल शामिल है।
ग़ज़ल के बोल — कुछ मुख्य मिसरे / पंक्तियाँ
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का — जिस दिशा का है, उधर के हम हैं।पहले हर चीज़ थी अपनी, मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से —
किसे मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं।चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब —
सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं।
थिम्स और व्याख्या (Theme & Meaning / Interpretation)
इस ग़ज़ल के ज़रिए शायर एक existential / philosophical lyrically journey दर्शा रहे हैं — जहाँ “ज़िंदगी” को एक मुसाफ़िर (यात्री) की तरह देखा गया है, और “घर, पहचान, belonging, roots” जैसे सवाल हमेशा साथ रहते हैं।
मुख्य भाव —
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Controllessness / नीयत-पर निर्भर जीवन — पहले सब कुछ “अपना” लगता था; समय के साथ, “मिटटी / हवाओं” के सफर में — हमें नहीं पता हमारी जड़ें कहाँ हैं।
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Identity Crisis / बे-वजह महसूस होना — अपना घर, अपना शहर या देश हो, फिर भी “पराये” महसूस करना।
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Wandering / मुसाफिराना जीवन — जन्म से लेकर सफर, तकदीर और circumstances की ध winds की दिशा तय करती है।
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Universal belonginglessness / Rootlessness — यह ग़ज़ल सिर्फ व्यक्तिगत heartbreak नहीं; बल्कि इंसानियत, समय, इतिहास और identity का existential दर्द उभारती है।
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Reflection on life / philosophical melancholy — जीवन के सफर में uncertainty, nostalgia, दर्द, introspection — सब कीodb (सहित)।
किसी ने लिखा है कि यह ग़ज़ल “ज़िंदगी के सफर की उलझनों में सही रास्ता कौन सा है, यह पहचानना मुश्किल” की भावनाओं को बखूबी व्यक्त करती है।
1.क्यों आज भी आज़माई जाती है — प्यार, दर्द या जीवन की उलझन हो
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इसकी पंक्तियाँ time-less हैं — “हम किसके”, “किधर के”, “मुसाफिर” जैसे विचार आज भी resonate करते हैं, चाहे context बदल जाए।
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ग़ज़ल की गहराई + Jagjit Singh की आवाज़ ने इसे एक “soulful classic” बना दिया — जिससे सुनने पर जुड़ाव बना रहता है।
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यह ग़ज़ल heartbreak/romance से ज़्यादा “existential loneliness / belongingness crisis” से जुड़ी है — इसलिए वो पहले प्यार वाले गानों से अलग, असरदार रहती है।
2. जगजीत सिंह का संगीत और गायन
धीमा और गहरा अंदाज़: जगजीत सिंह ने इस ग़ज़ल को बहुत ही धीमी गति (Slow Tempo) और कम वाद्य यंत्रों (minimal instrumentation) के साथ कंपोज़ किया है। यह सादगी श्रोता को ग़ज़ल के गहरे अर्थों पर ध्यान केंद्रित करने देती है।
भावपूर्ण गायन (Soulful Rendition): जगजीत सिंह की आवाज़ में एक खास किस्म की उदासी और गंभीरता है, जो इस ग़ज़ल के मुख्य भाव—जीवन की नियति—को पूरी तरह से दर्शाती है।
सारंगी का प्रयोग: इस ग़ज़ल में सारंगी (Sarangi) का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी उदास और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत वाली भावना को और गहरा करता है।
3. ग़ज़ल के यादगार अशआर (Memorable Couplets)
इस ग़ज़ल के कुछ सबसे मशहूर और गहराई वाले शेर ये हैं:
असली सार (The Core):
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं।
रुख़ हवाओं का जिधर है, उधर ही के हम हैं।
जीवन की हकीकत:
पहले हर चीज़ यहाँ थी, मगर अब कुछ भी नहीं।
हम जहाँ हैं वो किसी और ही खंडर के हम हैं।
इंसानी भ्रम:
वक़्त ने जैसे नचाया है, यूँ ही नाचे हैं।
हम तो एक कठपुतली हैं, कोई बाज़ीगर के हम हैं।
(हम सिर्फ एक कठपुतली हैं, जिसे कोई और (बाज़ीगर यानी नियति) नचा रहा है।)
My Favourate too....Ma.am
ReplyDeleteya, truly a beautiful ghazal
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