शहर की बड़ी सब्जी मंडी में
एक किनारे टाट का बोरा बिछाकरअपने खेत की दो-चार ताज़ी सब्जियाँ
लिए बैठी... रमैया
अक्सर छुट्टे पैसों के हिसाब में
करती है गड़बड़ ।
न...न....यह समझ लेने की भूल मत करना
कि रमैया को नहीं आता
इतना भर गणित,
हाँ बेशक, दो-पाँच रुपए बचाकर
महल बाँधने का गणित
नहीं सीखा उसने ।
घर में काम करती ...पारबती
मालकिन के कहने पर
सहर्ष ही ले आती है
दो-चार किलो मक्की
अपने खेत से
और महीने के हिसाब में
उसका दाम भी नहीं जोड़ती ।
उसे मूर्ख समझकर
एक तिर्यक मुस्कान
अपने होठों पर मत लाना,
अनाज की कीमत ...जानती है वह
लेकिन मालकिन के कोठार में
उसके अनाज का भी हिस्सा है
यह भाव... सन्तोष से भर देता है उसे ।
सफाई वाले का लड़का... विपुल
अच्छे से जानता है कि
कोने वाले घर की शर्मा आंटी
उसे एक छोटा कप चाय पिलाने के बहाने
अपने बगीचे की सफाई भी
करवा लेती हैं उससे,
ये मत समझ बैठना
कि कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई करता विपुल
परिचित नहीं है
"शोषण" की शब्दावली से,
लेकिन खुश होता है वह कि
सुबह-सुबह की दौड़-भाग के मध्य
आंटीजी का एक काम
उसने निपटा दिया ।
आप बेशक इन्हें कह सकते हैं
निपट मूर्ख, गंवार, जाहिल और अनपढ़
लेकिन बोरा भर किताबों की पढ़ाई
अगर सिखा न सके मानवीय मूल्य
अगर गहन न हो हमारी संवेदना
अगर समझ न सकें हम
सामाजिक ताना-बाना
तो कम पढ़ा-लिखा होने में
क्या बुराई है?
कम से कम बचे रहेंगे मानवीय मूल्य
बचा रहेगा प्यार, स्नेह, सौहार्द
बचे रहेंगे रिश्ते
बचा रहेगा विश्वास
और बचा रहेगा
हमारा इतना-सा मनुष्य होना ।

No comments:
Post a Comment
Do Leave a Comment