हम एक रोज़ मिले..
एक लफ्ज़ बना..
और हमने एक मायने पाए...
फिर जाने क्या हम पर गुजरी...
और अब यूँ हैं..
तुम एक हर्फ़ हो,
एक खाने में
मैं एक हर्फ़ हूँ,
एक खाने में बीच में...
कितने लम्हों के खाने खाली हैं
फिर से कोई लफ्ज़ बने और
हम दोनों एक मायने पाएं
ऐसा हो सकता है
लेकिन
सोचना होगा
इन खाली खानों में हमें भरना क्या है ..............
hum dono jo harf hain
hum ek roz mile..
ek lafz banaa..
aur humne ek maayne paaye...
phir jaane kya hum per guzri...
aur ab yun hain..
tum ek harf ho, ek khaane mein
main ek harf hoon, ek khaane mein
beech mein...
kitne lamhon ke khaane khaali hain
phir se koi lafz bane
aur hum dono ek maayne paayein
aesa ho sakta hai
lekin
sochnaa hogaa
in khaali khaanoN mein humein bharnaa kya hai ...............
POET UNKNOWN
ये नज़्म बहुत खूबसूरत है। इसमें शब्दों और अक्षरों का
इस्तेमाल करके एक रिश्ते की कहानी बताई गई है। यह
बताती है कि कैसे दो अलग-अलग लोग (दो 'हर्फ़' या
अक्षर) एक साथ आते हैं और एक 'लफ्ज़' (शब्द) बनाते
हैं, जिसका एक 'मायना' (मतलब) होता है। लेकिन फिर,
उनके बीच कुछ होता है, और वे अलग हो जाते हैं,
बिलकुल वैसे ही जैसे दो अक्षर अलग-अलग खानों में रखे
गए हों। उनके बीच की दूरी को "कितने लम्हों के खाने
खाली हैं" से दिखाया गया है। नज़्म में आख़िर में यह
सवाल उठाया गया है कि क्या वे फिर से एक होकर कोई
नया शब्द बना सकते हैं, जिसका कोई मतलब हो लेकिन
इसके लिए उन्हें यह सोचना होगा कि उन खाली जगहों
को कैसे भरा जाए। यह कविता एक रिश्ते के बनने, टूटने
और फिर से जुड़ने की संभावना को दर्शाती है। यह हमें
सिखाती है कि किसी भी रिश्ते को फिर से बनाने के लिए
दोनों लोगों को मिलकर कोशिश करनी होगी और यह
तय करना होगा कि वे अपनी दूरियों को कैसे कम करें।

nice ! nazm k alfaz bahut najuk hote h...
ReplyDeleteji sahi kahaa vivek ji
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रीना जी.....
ReplyDeleteआप देवनागरी में लिखें तो और आनंद आये रचना पढ़ने में....
सादर.
अनु
ji koshish karooungi ke aaienda kavitaayon ka topic main devnaagri mein hi post karoun
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