"सर मुझे पहचाना क्या ?"
बारिश में कोई आ गया
कपडे थे मुचड़े हुए
और बाल सब भीगे हुए
पल को बैठा , फिर हंसा और बोला ऊपर देख कर
"गंगा मईया कल आई थी , मेहमान होकर
कुटिया में रह के गयी
मायके आई हुई लड़की की मानिंद
चारों दीवारों पर नाची
खाली हाथ अब जाती कैसी ?
खैर से, पत्नी बची है
दीवार चूरा हो गयी, चूल्हा बुझा
जो था , नहीं था, सब गया
प्रसाद में पलकों के नीचे चार कतरे रख गयी है पानी के
मेरी औरत और मैं लड़ रहे हैं
मिटटी कीचड फेंक कर
दीवार उठा कर आ रहा हूँ
जेब की जानिब गया था हाथ , कि हंसकर उठा वो
ना, ना, ना पैसे नहीं सर
यूँ ही अकेला लग रहा था
घर तो टूटा, रीढ़ की हड्डी नहीं
हाथ रखिये पीठ पैर ,
और इतना कहिये कि
लड़ो बस .........
(Gulzar)
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