Phir un ki gali mein jayega, phir sahav ka sajda ker lega
Is dil pe bharosa kaun kare, har roz Musalmaan hota hai.....
यह शेर उर्दू के अज़ीम शायर इब्न-ए-इंशा (Ibn-e-Insha) का है।
उनका पूरा शेर (ग़ज़ल का एक हिस्सा) इस प्रकार है:
फिर उन की गली में पहुँचेगा, फिर 'सहव' का सजदा कर लेगा। इस दिल पे भरोसा कौन करे, हर रोज़ 'मुसलमाँ' होता है।
(यह ग़ज़ल उनके संग्रह 'चाँद नगर' (Chand Nagar) में भी शामिल है।)
शेर का अर्थ (Meaning of the Couplet)
यह शेर दिल की चंचलता (fickleness) और बेबसी को बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में बयान करता है:
फिर उन की गली में पहुँचेगा: यह दिल जानता है कि उसे वहाँ नहीं जाना चाहिए, लेकिन फिर भी यह प्रियतम की गली (राह) में पहुँच जाएगा।
फिर सहव का सजदा कर लेगा: 'सहव का सजदा' इस्लाम में नमाज़ के दौरान होने वाली ग़लती को सुधारने के लिए किया जाता है। यहाँ शायर कहता है कि दिल एक ग़लती करेगा (वहाँ जाकर), और फिर उस ग़लती को सुधारने की कोशिश करेगा, लेकिन यह ग़लती बार-बार दोहराई जाती है।
इस दिल पे भरोसा कौन करे: इस दिल की अस्थिरता और नादानी पर कोई कैसे विश्वास करे।
हर रोज़ मुसलमाँ होता है: 'मुसलमाँ' का शाब्दिक अर्थ है 'ईमान वाला' या 'समर्पित', लेकिन उर्दू शायरी में यह 'नया-नया समर्पित' या 'तौबा करने वाला' के अर्थ में भी इस्तेमाल होता है। इसका मतलब है कि यह दिल हर बार पिछली ग़लती के लिए तौबा करता है और दोबारा वफ़ादार बनने की क़सम खाता है, लेकिन रोज़ाना उसी ग़लती को दोहराता है।
शायर कहता है कि इस दिल की वफ़ादारी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह हर बार वादा तोड़ता है और फिर रोज़ नया-नया वफ़ादार (मुसलमाँ) बनने का ढोंग करता है।
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