वीडियो "बूढी काकी | Munsi Premchand ki.. 'Tehreer'", जो प्रसार भारती अभिलेखागार द्वारा प्रस्तुत किया गया है, यह मुंशी प्रेमचंद की मर्मस्पर्शी और शक्तिशाली हिंदी लघु कहानी, 'बूढ़ी काकी' का एक दृश्य-श्रव्य रूपांतरण है।
यह कहानी हिंदी साहित्य का एक क्लासिक है, जो संयुक्त परिवार प्रणाली में बुजुर्गों को झेलनी वाली कठोर वास्तविकताओं और लालच के क्रूर प्रभाव के यथार्थवादी चित्रण के लिए जानी जाती है।
कहानी का सारांश: 'बूढ़ी काकी'
मुख्य पात्र और संघर्ष
बूढ़ी काकी: एक बुज़ुर्ग, निःसंतान विधवा हैं जिनकी जीवन में एकमात्र बची हुई खुशी भोजन है। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने भतीजे बुद्धिराम को इस शर्त पर सौंप दी है कि वह उनके मरने तक उनका ध्यान रखेगा।
बुद्धिराम और रूपिया: बुद्धिराम भतीजा है और रूपिया उसकी पत्नी है। काकी की संपत्ति मिलते ही उनकी शुरुआती दयालुता खत्म हो जाती है, और वे बुढ़िया के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर देते हैं, उन्हें एक बोझ मानते हैं।
चरमोत्कर्ष: दावत
बुद्धिराम के बेटे की सगाई समारोह होती है, और एक शानदार दावत तैयार की जाती है। काकी, जिनकी भूख ही उनकी खुशी का एकमात्र स्रोत है, पूरी और अन्य पकवानों की स्वादिष्ट महक से तड़प उठती हैं।
भोजन की ललक और महक काकी को बेकाबू कर देती है। अपमानित होने के बावजूद, वह घिसटते हुए उस आंगन तक जाती हैं जहाँ खाना पकाया जा रहा है।
रूपिया, जो मेज़बान है, काकी की उपस्थिति से बहुत अपमानित महसूस करती है। वह बुढ़िया को खींचकर वापस उनके कमरे में ले जाती है, सार्वजनिक रूप से उनका अपमान करती है और उन्हें मारती है, और बाहर आने से मना करती है।
निराशा की रात
अपमान काकी की भूख को शांत नहीं कर पाता। निराशा से मजबूर होकर, मेहमानों के खाना खाने के बाद वह चुपचाप फिर से आंगन में घिसटते हुए आती हैं, यह उम्मीद करते हुए कि उन्हें खाने की जगह के पास कुछ जूठन या गिरे हुए टुकड़े मिल जाएँ।
उन्हें ज़मीन पर पड़ी जूठन खाते हुए देखकर, मेहमान और परिवार के सदस्य भयभीत और disgusted हो जाते हैं। अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, बुद्धिराम उन्हें ज़बरदस्ती खींचकर वहाँ से हटाता है।
मोड़: लाड़ली की करुणा
काकी के प्रति वास्तविक दया दिखाने वाला एकमात्र व्यक्ति बुद्धिराम की छोटी बेटी लाड़ली होती है। वह काकी की दयनीय स्थिति से द्रवित हो जाती है।
लाड़ली अपना छोटा हिस्सा बचाती है (या जूठन लगी प्लेटें देती है) और आधी रात को चुपके से काकी के पास लाती है। दया का यह छोटा सा कार्य काकी को उस रात का पहला संतोषजनक भोजन प्रदान करता है।
निष्कर्ष और नैतिक शिक्षा
रूपिया इस दृश्य को देखती है और शर्म तथा काकी की दयनीय अवस्था से गहरी तरह हिल जाती है। उसे आखिरकार अपनी क्रूरता की भयावहता का एहसास होता है।
रूपिया का हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह सुबह जल्दी उठती है, बची हुई पूरियाँ पकाती है, और काकी को परोसती है, अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगती है।
कहानी धन की चाहत में मानवीय मूल्यों के पतन और परिवार के सदस्यों की अपने बुजुर्गों, खासकर आश्रितों की देखभाल करने की जिम्मेदारी के बारे में एक शक्तिशाली संदेश के साथ समाप्त होती है। यह दर्शाती है कि शर्म और पश्चाताप की भावना से कठोर से कठोर हृदय भी पिघल सकता है।
(This video is posted by channel – Prasar Bharati Archives on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)
No comments:
Post a Comment
Do Leave a Comment