Thursday, September 27, 2012

Namak ka Droga - Munshi Premchand





नमक का दारोग़ा | Namak Ka Darogha | Tehreer - Munsi Premchand Ki...", जो प्रसार भारती अभिलेखागार (Prasar Bharati Archives) द्वारा प्रस्तुत किया गया है, यह मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध हिंदी लघु कहानी, 'नमक का दारोगा' का एक दृश्य-श्रव्य रूपांतरण है।

कहानी का सार

यह एक शक्तिशाली कहानी है जो ब्रिटिश राज के दौरान भारत में ईमानदारी और भ्रष्टाचार (Honesty and Corruption) के बीच के संघर्ष को दर्शाती है।

मुख्य पात्र

  • वंशीधर (Vanshidhar): कहानी का नायक। वह एक गरीब परिवार से है, लेकिन ईमानदार (प्रामाणिक) और कर्तव्यनिष्ठ युवक है। उसे नमक विभाग में दारोगा (निरीक्षक) की नौकरी मिलती है।

  • अलोपीदीन (Alopideen): वह प्रांत का सबसे धनी और प्रतिष्ठित ज़मींदार है, जिसका व्यवसाय नमक की अवैध तस्करी (कालाबाजारी) करना है।

कहानी का संघर्ष

  • ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के बाद, नमक की तस्करी (स्मगलिंग) बड़े पैमाने पर शुरू हो गई। दारोगा के पद के लिए लोग रिश्वत देकर नौकरी पाना चाहते थे, क्योंकि इस विभाग में ऊपरी कमाई (लांच) का मौका बहुत बड़ा था.

  • जब वंशीधर दारोगा के रूप में कार्यभार संभालता है, तो उसके पिता उसे सलाह देते हैं कि नौकरी में रिश्वत लेकर पैसा कमाने पर ज़्यादा ध्यान दे, क्योंकि वेतन से तो उसका खर्च नहीं चलेगा। लेकिन वंशीधर अपने पिता की बात नहीं मानता और अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहता है।

  • एक रात, वंशीधर को नदी किनारे गाड़ियों की आवाज़ सुनाई देती है और वह जाँच करता है। उसे पता चलता है कि इन गाड़ियों में ज़मींदार अलोपीदीन नमक की तस्करी कर रहा है।

  • वंशीधर अलोपीदीन को गिरफ्तार (हिरासत) कर लेता है।

  • अलोपीदीन उसे छोड़ने के लिए रिश्वत की पेशकश करता है। शुरुआत में ₹1000 और बाद में ₹40,000 तक की रिश्वत देता है, जो उस समय एक बहुत बड़ी रकम थी।

  • वंशीधर यह रिश्वत लेने से स्पष्ट रूप से इनकार कर देता है और अपनी ईमानदारी पर अटल रहता है। वह अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है और उसे हथकड़ी पहनाता है।

परिणाम और सीख

  • अलोपीदीन को अदालत (कोर्ट) में ले जाया जाता है, लेकिन वह अपनी संपत्ति और प्रभाव का उपयोग करके निर्दोष छूट जाता है।

  • इस घटना के कारण ईमानदार दारोगा वंशीधर की नौकरी चली जाती है, और उसे समाज में आलोचना का सामना करना पड़ता है। उसके पिता भी उसे ताना मारते हैं।

  • कहानी का अंतिम भाग: कुछ समय बाद, अलोपीदीन स्वयं वंशीधर के घर आता है। वह वंशीधर की ईमानदारी (प्रामाणिकपणा) और चरित्र से इतना प्रभावित होता है कि वह उसे अपनी पूरी संपत्ति का स्थायी प्रबंधक (जनरल मैनेजर) नियुक्त करता है।

  • अलोपीदीन कहता है कि उसे ऐसा ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति चाहिए जो पैसे के लिए अपनी नैतिकता नहीं छोड़ेगा।

  • वंशीधर यह नौकरी स्वीकार कर लेता है, क्योंकि यह ईमानदारी के मूल्य पर आधारित होती है।

कहानी का संदेश

इस कहानी का मुख्य संदेश यह है कि पैसा या शक्ति से कहीं अधिक ईमानदारी और नैतिकता महत्वपूर्ण है। ईमानदारी पर अटल रहने पर, दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग भी आपके सामने झुक जाते हैं।

(This video is posted by channel – Prasar Bharati Archives  on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

 


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