Thursday, October 11, 2012

खोज का सफ़र...






ऐ दोस्त
तुने क्यूँ  चुना
खुद को खुदकशी के लिये
एक ज़ज्बे के लिए ठीक नहीं होता यूँ कतल हो जाना
एक ही नाटक में कितनी बार मरोगे
आखिर कितनी बार
रिश्तों को बचाते बचाते
खुद को न बचा पाओगे 
वो  रिश्ता होगा
खुदकशी के धरातल पर बना रिश्ता
अपने आप को तोड  कर
क्या तामीर कर रहे हो,
इमारतें  ऐसे नहीं बनती ,
बस करो अब ...
बंद करो यह नाटक ...
कुछ मत बदलो ..
बस ...
शुरू करो अपनी खोज का सफ़र
ज़िन्दगी  लम्बी कहानी का नाम नहीं है
भूल जाओ  किताबों की बातें
खुद से प्यार करो
यही से शुरू होगा ....
खोज का सफ़र

(प्रीत पॉल हुंडल  )

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