Thursday, November 22, 2012

अकाल और उसके बाद.....



कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद |

(नागार्जुन)

कविता का विस्तृत विश्लेषण

नागार्जुन की यह कविता अकाल के भयावह प्रभाव और उसके बाद के राहत भरे क्षणों का सजीव चित्रण करती है। यह कविता दो भागों में बंटी हुई है, जो भूख और भोजन की वापसी के बीच के अंतर को दर्शाती है।

पहला भाग: अकाल की त्रासदी

कविता का पहला भाग अकाल की मार को दिखाता है। कवि ने यहाँ मानवीकरण (personification) और सूक्ष्म बिम्बों (imagery) का सुंदर प्रयोग किया है।

  • "कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास": यहाँ चूल्हे और चक्की को सजीव बताया गया है। चूल्हा जो भोजन पकाने का प्रतीक है, वह 'रो रहा है' क्योंकि उसमें आग नहीं जली। चक्की जो अनाज पीसने के काम आती है, वह 'उदास' है क्योंकि उसके पास पीसने के लिए कुछ नहीं है। यह दर्शाता है कि घर में भोजन का कोई दाना नहीं है।

  • "कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास": घर के पालतू जानवर भी इस भूख से बेहाल हैं। एक कानी कुतिया (जिसकी एक आँख नहीं है) जो आमतौर पर खाने की तलाश में घूमती है, वह भी भोजन न मिलने के कारण हताश होकर चूल्हे के पास ही सो गई है। यह दर्शाता है कि न केवल इंसान, बल्कि जीव-जंतु भी भुखमरी का शिकार हैं।

  • "कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त": छिपकलियाँ दीवारों पर कीड़े-मकोड़े खाकर जीवित रहती हैं। उनकी "गश्त" (पहरा) जारी है, लेकिन कीड़े-मकोड़े भी भोजन न मिलने के कारण मर चुके हैं। छिपकलियों को भी भोजन नहीं मिल रहा है।

  • "कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त": घर में छिपकर भोजन खाने वाले चूहों की हालत भी 'शिकस्त' (पराजय) जैसी हो गई है। इसका मतलब है कि घर में उनके लिए भी कुछ नहीं बचा है।

यह पूरा भाग अकाल की खामोशी और निराशा को दर्शाता है, जहाँ जीवन के हर पहलू पर भूख का साया है।


दूसरा भाग: जीवन की वापसी

कविता का दूसरा भाग आशा और जीवन की वापसी का प्रतीक है, जब घर में अनाज आता है।

  • "दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद": यह पंक्ति सबसे महत्वपूर्ण है। 'दाने' (अनाज) के घर में आने से ही निराशा का माहौल खत्म होता है।

  • "धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद": चूल्हे में आग जलती है और भोजन पकने लगता है, जिससे धुआँ उठता है। यह धुआँ केवल लकड़ी के जलने का नहीं, बल्कि जीवन और उम्मीद की वापसी का प्रतीक है।

  • "चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद": जब लोगों को भोजन मिलता है, तो उनकी आँखों में चमक आ जाती है। यह चमक केवल खुशी की नहीं, बल्कि जीवन की ऊर्जा और उत्साह की है, जो भूख से खत्म हो गई थी।

  • "कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद": कौआ जो अक्सर भोजन के टुकड़ों की तलाश में आता है, वह भी अब खुश है। उसे भी भोजन मिल गया है। 'पाँखें खुजलाना' (पंखों को रगड़ना) उसकी संतुष्टि और खुशी को दर्शाता है।

यह कविता बताती है कि भूख केवल शारीरिक नहीं होती, बल्कि यह पूरे घर और उसके वातावरण को बेजान कर देती है। वहीं, भोजन की उपलब्धता न केवल पेट भरती है, बल्कि जीवन में खुशी, आशा और ऊर्जा भी वापस लाती है।


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