मेरी पहली रचना जिसे मैंने एक कविता प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए लिखा था जिसे बहुत सराहा गया था |
चाह के लिए ज़िद्द
प्राप्ति में सुख
सुख से भोगना
भोग कर विरक्ति
विरक्क्ता से पछतावा
जब आता है
तो शीघ्र जाता नहीं
तिल तिल मारता है ..
यहाँ कविता के भावों का विश्लेषण है:
अति की चाह: यह इच्छाओं की शुरुआत है, खासकर उन इच्छाओं की जो सीमा से परे हों।
चाह के लिए ज़िद्द: जब चाह प्रबल हो जाती है, तो वह हठ या ज़िद का रूप ले लेती है।
ज़िद से प्राप्ति: अक्सर, ज़िद के कारण व्यक्ति अपनी इच्छाओं को प्राप्त कर लेता है।
प्राप्ति में सुख: किसी इच्छा की पूर्ति से क्षणिक सुख और आनंद मिलता है।
सुख से भोगना: व्यक्ति उस सुख को भोगता है, उसका आनंद लेता है।
भोगकर विरक्ति: लगातार भोगने या अत्यधिक लिप्त रहने से अंततः ऊब, अनासक्ति या विरक्ति उत्पन्न होती है।
विरक्क्ता से पछतावा: जब विरक्ति आती है, तो व्यक्ति को अपनी उन इच्छाओं या उन्हें प्राप्त करने के तरीके पर पछतावा हो सकता है।
जब आता है, तो शीघ्र जाता नहीं: यह पछतावा या विरक्ति अक्सर स्थायी हो जाती है और आसानी से दूर नहीं होती।
तिल-तिल मारता है: यह पछतावा या विरक्ति धीरे-धीरे, निरंतर व्यक्ति को अंदर से खोखला करती रहती है, जैसे तिल-तिल करके कोई मर रहा हो।
यह कविता हमें संयम और संतोष के महत्व को समझने का एक सुंदर अवसर देती है। अत्यधिक इच्छाएं और उनकी पूर्ति शायद स्थायी सुख न दें, बल्कि विरक्ति और पछतावा ही लाएं।

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