Monday, March 12, 2012

Rafi - Ehsaan Tera Hoga Mujh Par - Junglee [1961]





गीत "एहसान तेरा होगा मुझ पर" हिंदी सिनेमा का एक अत्यंत रूमानी (romantic), भावुक और प्रतिष्ठित गीत है, जो नायक के प्रेम और समर्पण को दर्शाता है।

यह गाना 1961 की सुपरहिट फ़िल्म 'जंगली' (Junglee) का है, जिसने शम्मी कपूर को 'याहू' इमेज में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यहाँ इस गीत, फ़िल्म और इससे जुड़ी खास बातें विस्तार से दी गई हैं:

गीत और फ़िल्म का विवरण

विवरणजानकारी
गीत"एहसान तेरा होगा मुझ पर"
फ़िल्म का नामजंगली (Junglee) (1961)
गायक (पुरुष संस्करण)मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
गायक (महिला संस्करण)लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar)
संगीतकारशंकर-जयकिशन (Shankar-Jaikishan)
गीतकारहसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri)
मुख्य कलाकारशम्मी कपूर और सायरा बानो
शैलीरोमांटिक बैलेड, धीमी मेलोडी (Slow Melody)

 गीत की विशेषता और तथ्य

  1. कश्मीर का सौंदर्य:

    • इस गीत को कश्मीर की बर्फीली वादियों में फिल्माया गया है। शम्मी कपूर और सायरा बानो की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री, बर्फ से ढके पहाड़ और खुली घाटियाँ गीत के रोमांस को एक जादुई स्पर्श देती हैं।

    • यह गाना आज भी कश्मीर में फिल्माए गए सबसे खूबसूरत गीतों में गिना जाता है।

  2. शम्मी कपूर का नया अंदाज़:

    • इस गाने में शम्मी कपूर अपने उग्र (boisterous) 'याहू' अंदाज़ से हटकर, शांत और रूमानी अंदाज़ में दिखते हैं। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने शम्मी कपूर के प्रेम की तीव्रता और भावुकता को पूरी तरह से जीवंत कर दिया है।

    • यह सायरा बानो की डेब्यू फ़िल्म भी थी।

  3. शंकर-जयकिशन का मधुर संगीत:

    • संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने इस गीत को एक मीठी और यादगार धुन दी, जो आज भी बेहद लोकप्रिय है। इस गीत में ऑर्केस्ट्रेशन बहुत ही संतुलित और सुरीला है, जो प्रेम के कोमल भाव को उभारता है।

  4. गीत का अर्थ:

    • गीतकार हसरत जयपुरी के बोल प्रेम में समर्पण को दर्शाते हैं। नायक, नायिका से अपने प्रेम को स्वीकार करने का अनुरोध करता है, यह कहते हुए कि यह उसका उस पर एक 'एहसान' (उपकार) होगा। यह विनम्रता और प्रेम की गहराई को व्यक्त करता है।

"एहसान तेरा होगा मुझ पर" आज भी रफ़ी साहब के सबसे मधुर और सदाबहार रोमांटिक गीतों में से एक है।

(This video is posted by the channel Shemaroo Filmi Gaane  on YouTube, and Raree India has no direct claim to this video.) This video is added to this post for knowledge purposes only.)

Suman Kalyanpur & Rafi - Thahriye Hosh Mein Aa Loon - Mohabbat Isko Kahe...





गीत "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाईएगा" हिंदी सिनेमा के एक बेहद रूमानी (romantic) और नज़ाकत भरे युगल गीतों (duets) में से एक है।

यह गाना 1965 की फ़िल्म 'मोहब्बत इसको कहते हैं' (Mohabbat Isko Kahte Hain) का है।

यहाँ इस गीत, फ़िल्म और इससे जुड़ी विशेष जानकारी दी गई है:

गीत और फ़िल्म का विवरण

विवरणजानकारी
गीत"ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाईएगा"
फ़िल्म का नाममोहब्बत इसको कहते हैं (1965)
गायकमोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर (युगल गीत)
संगीतकारख़य्याम (Khayyam)
गीतकारमजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri)
मुख्य कलाकारशशि कपूर और नंदा
शैलीरोमांटिक ग़ज़ल, धीमी और भावुक मेलोडी

गीत की विशेषता और तथ्य

  1. ख़य्याम का मधुर संगीत:

    • संगीतकार ख़य्याम अपनी सुरीली, धीमी और भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित धुनों के लिए प्रसिद्ध थे। इस गीत में भी उन्होंने एक शांत और परिष्कृत (refined) ऑर्केस्ट्रेशन का उपयोग किया है, जो प्रेम की गंभीरता और कोमलता को दर्शाता है।

  2. रफ़ी और सुमन कल्याणपुर की जोड़ी:

    • मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ों का मेल इस गीत को अविस्मरणीय (unforgettable) बनाता है।

      • रफ़ी साहब की आवाज़ में नायक का प्रेम भरा अनुरोध और उत्साह झलकता है।

      • सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में नायिका का लज्जित (shy) होना और अपने होश खोने का वर्णन बहुत ही नज़ाकत से किया गया है।

    • यह युगल गीत उन बेहतरीन गीतों में से एक है जहाँ दोनों गायकों की आवाज़ें एक-दूसरे की पूरक (complement) बनती हैं।

  3. मजरूह सुल्तानपुरी के बोलों की नज़ाकत:

    • गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गीत में उर्दू शायरी के बेहतरीन शब्दों का इस्तेमाल किया है। गीत का शीर्षक ही बताता है कि नायक की उपस्थिति नायिका को इतना मोहित करती है कि वह अपने 'होश' (चेतना) खो देती है। वह नायक से कुछ देर रुकने का अनुरोध करती है ताकि वह अपनी भावनाओं को संभाल सके। यह प्रेम की तीव्रता को बड़ी सुंदरता से व्यक्त करता है।

  4. शशि कपूर और नंदा की केमिस्ट्री:

    • इस गाने को शशि कपूर और नंदा पर फिल्माया गया है। उस दौर में यह जोड़ी अपने प्यारे और सरल रोमांस के लिए बहुत लोकप्रिय थी।

यह गीत आज भी क्लासिक हिंदी संगीत प्रेमियों के बीच अपनी शांत धुन और भावनात्मक गहराई के कारण बेहद सराहा जाता है।


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Shagird - Woh Hain Zara Khafa Khafa - Mohd.Rafi & Lata Mangeshkar





गीत "वो है ज़रा खफ़ा खफ़ा तो नैन यूँ चुराए हैं" हिंदी सिनेमा के एक बेहद चंचल, रूमानी और लोकप्रिय युगल गीतों (duets) में से एक है।

यह गाना 1967 की हिट फ़िल्म 'शागिर्द' (Shagird) का है, और इसमें मोहम्मद रफ़ी तथा लता मंगेशकर की आवाज़ों का शानदार मिश्रण है।

यहाँ इस क्लासिक गीत और फ़िल्म से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है:

गीत और फ़िल्म का विवरण

विवरणजानकारी
गीत"वो है ज़रा खफ़ा खफ़ा तो नैन यूँ चुराए हैं"
फ़िल्म का नामशागिर्द (Shagird) (1967)
गायकमोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर (युगल गीत)
संगीतकारलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant-Pyarelal)
गीतकारमजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri)
मुख्य कलाकारजॉय मुखर्जी और सायरा बानो
शैलीअपबीट, रोमांटिक, चंचल संवाद गीत

गीत की विशेषता और तथ्य

  1. प्यार भरी नोक-झोंक (Playful Banter):

    • यह गीत एक ऐसे जोड़े के बीच प्यार भरी नोक-झोंक को दर्शाता है, जहाँ नायिका (सायरा बानो) नायक (जॉय मुखर्जी) से थोड़ा 'खफ़ा' (नाराज़) है। नायक उसे मनाने और उसकी नाराज़गी दूर करने की कोशिश करता है।

    • गाने के बोल (मजरूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखित) इस चंचल संवाद को बखूबी पकड़ते हैं।

  2. रफ़ी-लता की जादूगरी:

    • मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ों ने इस गीत को जीवंत बना दिया।

      • रफ़ी साहब ने नायक के उत्साह, रोमांस और मनाने वाले लहज़े को दर्शाया।

      • लता जी की आवाज़ में नायिका की हल्की-सी नाराज़गी और नख़रे (coquetry) साफ झलकते हैं।

    • यह जोड़ी उस दौर की सबसे सफल और प्रतिष्ठित गायकों की जोड़ियों में से एक थी।

  3. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की सफल धुनें:

    • संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इस गीत को एक तेज़, आकर्षक और ऊर्जावान (energetic) धुन दी। गाने का ऑर्केस्ट्रेशन भी उस दौर के पॉप म्यूजिक से प्रेरित था।

  4. फिल्मांकन:

    • यह गाना अक्सर एक खूबसूरत आउटडोर लोकेशन पर फिल्माया गया है, जहाँ जॉय मुखर्जी और सायरा बानो एक-दूसरे के इर्द-गिर्द घूमते हुए और रूठने-मनाने का खेल खेलते हुए दिखाई देते हैं। सायरा बानो की क्यूटनेस और जॉय मुखर्जी का चार्म इस गाने को खास बनाते हैं।

यह गीत अपनी चंचल, मधुर धुन और दोनों महान गायकों की बेहतरीन जुगलबंदी के कारण हिंदी सिनेमा के सबसे पसंदीदा युगल गीतों में से एक है।

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Aise to na dekho ke hum ko nasha ho jaye-TEEN DEVIYAN






गीत "ऐसे तो न देखो के हमको नशा हो जाए" हिंदी सिनेमा के सदाबहार गीतों में से एक है, जो देव आनंद के चार्म और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ के लिए जाना जाता है।

यह गाना 1965 की फ़िल्म 'तीन देवियाँ' (Teen Devian) का एक बेहद रूमानी और चंचल सोलो गीत (solo song) है।

यहाँ इस क्लासिक गीत और फ़िल्म से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है:

गीत और फ़िल्म का विवरण

विवरणजानकारी
गीत"ऐसे तो न देखो के हमको नशा हो जाए"
फ़िल्म का नामतीन देवियाँ (Teen Devian) (1965)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारएस. डी. बर्मन (S. D. Burman)
गीतकारमजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri)
मुख्य कलाकारदेव आनंद, नंदा, कल्पना, सिमी गरेवाल
शैलीरूमानी, हल्की-फुल्की/चंचल (Light-hearted Romantic)

 गीत की विशेषता और तथ्य

  1. देव आनंद का अंदाज़:

    • यह गाना अभिनेता देव आनंद की स्क्रीन इमेज के लिए एकदम सही था। उनकी शरारती आँखें, चंचल अंदाज़ और रोमांटिक अप्रोच इस गाने को पूरी तरह से कॉम्प्लीमेंट करती है।

    • गाने में देव आनंद अपनी प्रेमिका को चेतावनी देते हैं कि वह उन्हें ऐसे न देखे, क्योंकि इससे उन्हें नशा हो जाएगा—एक तरह से यह स्वीकार करना है कि उनकी सुंदरता और आकर्षण बहुत तीव्र है।

  2. एस. डी. बर्मन का संगीत:

    • संगीतकार एस. डी. बर्मन ने इस गीत को एक कैची (catchy), धीमी और आरामदेह धुन दी है। यह गाना वेस्टर्न और भारतीय संगीत के तत्वों का सुंदर मिश्रण है, जो 60 के दशक की रोमांटिक धुनों का एक बेहतरीन उदाहरण है।

  3. रफ़ी साहब का गायन:

    • मोहम्मद रफ़ी ने इस गीत को देव आनंद के अंदाज़ में गाया है। उनकी आवाज़ में वो हल्की-फुल्की मस्ती और दुलार भरा रोमांस है, जो इस गाने को इतना खास बनाता है।

  4. फ़िल्म की थीम:

    • फ़िल्म 'तीन देवियाँ' एक रोमांटिक कॉमेडी थी, जिसमें नायक (देव आनंद) तीन अलग-अलग महिलाओं (नंदा, कल्पना, और सिमी गरेवाल) के प्यार में पड़ जाता है, और अंत में उसे उनमें से किसी एक को चुनना होता है। यह गीत उनके रोमांस और चंचलता को दर्शाता है।

यह गाना आज भी देव आनंद और मोहम्मद रफ़ी के सबसे बेहतरीन रोमांटिक सोलो गानों में से एक माना जाता है।


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Ek Musafir Ek Hasina - BAHUT SHUKRIYA BADI MAHARBANI




गीत "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी" हिंदी सिनेमा के एक बेहद लोकप्रिय और चंचल युगल गीतों (duets) में से एक है। यह गाना रोमांस और आभार (gratitude) के भाव को दर्शाता है।

यह गीत 1962 की सफल फ़िल्म 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' (Ek Musafir Ek Hasina) का है।

यहाँ इस क्लासिक गीत और फ़िल्म से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है:

गीत और फ़िल्म का विवरण

विवरणजानकारी
गीत"बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी"
फ़िल्म का नामएक मुसाफ़िर एक हसीना (Ek Musafir Ek Hasina) (1962)
गायकमोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले (युगल गीत)
संगीतकारओ. पी. नैय्यर (O. P. Nayyar)
गीतकारएस. एच. बिहारी (S. H. Bihari)
मुख्य कलाकारजॉय मुखर्जी और साधना
शैलीअपबीट, रोमांटिक, आभार व्यक्त करने वाला संवाद गीत

गीत की विशेषता और तथ्य

  1. ताल और धुन (Rhythm and Tune):

    • ओ. पी. नैय्यर के संगीत की पहचान - तेज लय (fast tempo) और घोड़े की टाप जैसी ताल (equine rhythm) - इस गाने में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

    • यह गाना एक तेज़, उत्साहित और मस्ती भरे मूड को सेट करता है, जो जॉय मुखर्जी और साधना की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री के साथ बखूबी मेल खाता है।

  2. रफ़ी और आशा भोसले की ऊर्जा:

    • मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले की जोड़ी ओ. पी. नैय्यर के संगीत के लिए सबसे परफेक्ट मानी जाती थी।

    • आशा जी की आवाज़ में चंचलता और उत्साह है, जबकि रफ़ी साहब की आवाज़ में रोमांस और खुशी का भाव है। दोनों गायकों ने इस गीत को शानदार ऊर्जा दी है।

  3. फिल्मांकन और थीम:

    • फ़िल्म की कहानी एक मुसाफ़िर (जॉय मुखर्जी) और एक हसीना (साधना) के बीच हुई मुलाकात और उनके सफर के दौरान पनपे प्यार के इर्द-गिर्द घूमती है।

    • यह गाना नायक द्वारा नायिका को उसके साथ समय बिताने और उस पर दया करने के लिए आभार (शुक्रिया और मेहरबानी) व्यक्त करने के बारे में है, लेकिन यह सब एक चंचल और रोमांटिक अंदाज़ में किया गया है।

  4. लोकप्रियता:

    • यह गाना उस दशक के सबसे लोकप्रिय और पार्टियों में बजाए जाने वाले गीतों में से एक बन गया। 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' के अन्य गाने, जैसे "मैं प्यार का राही हूँ", भी बेहद सफल रहे थे।

यह गीत मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले की उस दौर की बेजोड़ जुगलबंदी का एक शानदार उदाहरण है।

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Isharon Isharon Mein Dil






फ़िल्म: कश्मीर की कली (Kashmir Ki Kali, 1964)

फ़िल्म के मुख्य विवरण

विवरणजानकारी
मुख्य कलाकारशम्मी कपूर (राजीव लाल), शर्मिला टैगोर (चंपा), प्राण, मदन पुरी
निर्देशकशक्ति सामंत (Shakti Samanta)
संगीत निर्देशकओ.पी. नैय्यर (O.P. Nayyar)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Shammi Kapoor की आवाज़), आशा भोंसले
गीतकारएस.एच. बिहारी

रोचक किस्से (Interesting Stories)

1. शर्मिला टैगोर का हिंदी डेब्यू

  • यह फ़िल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर की पहली हिंदी फ़िल्म थी। वह पहले सत्यजीत रे की बंगाली फ़िल्म 'अपूर संसार' (Apur Sansar) में काम कर चुकी थीं।

  • शर्मिला जी को 'कश्मीर की कली' में फूल बेचने वाली चंपा के रूप में दर्शकों ने खूब पसंद किया, और इस फ़िल्म ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया।

2. संगीतकार का बदलाव

  • मूल रूप से, इस फ़िल्म का संगीत मशहूर जोड़ी शंकर-जयकिशन को कंपोज करना था।

  • लेकिन शम्मी कपूर ने खुद संगीतकार ओ.पी. नैय्यर को शक्ति सामंत से मिलवाया। ओ.पी. नैय्यर के संगीत से शम्मी कपूर बहुत प्रभावित थे।

  • नैय्यर ने जब कुछ धुनें सुनाईं, तो निर्देशक शक्ति सामंत तुरंत सहमत हो गए। इस तरह, ओ.पी. नैय्यर ने "इशारों इशारों में", "तारीफ़ करूँ क्या उसकी", "दीवाना हुआ बादल" जैसे 9 सुपरहिट गाने दिए।

3. कश्मीर में रिकॉर्ड बारिश और मौसम

  • फ़िल्म की शूटिंग का अधिकांश हिस्सा कश्मीर की खूबसूरत वादियों में हुआ था (डल झील, शिकारे)।

  • एक रोचक किस्सा यह है कि शूटिंग के दौरान लगातार 21 दिनों तक भारी बारिश हुई, जिसके कारण शूटिंग रोकनी पड़ी थी।

  • हालांकि, एक बार मौसम साफ़ होने के बाद, अगले 25 दिनों तक बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई और क्रू ने जल्दी से पूरा शेड्यूल पूरा कर लिया।

4. शम्मी कपूर का भेस (The Pathan Couple Ruse)

  • फ़िल्म के प्लॉट के एक हिस्से में, हीरो राजीव लाल (शम्मी कपूर) को चंपा (शर्मिला टैगोर) तक पहुँचने के लिए एक नाटक करना पड़ता है।

  • वह और उनका दोस्त, एक पठान दंपति का भेस बनाते हैं, जहाँ शम्मी कपूर को पर्दा नशीं (बुर्के में लिपटी महिला) बनना पड़ता है। यह सीन फ़िल्म में कॉमेडी का एक क्लासिक उदाहरण है।

  • इस सीन के बाद ही प्रसिद्ध गाना "इशारों इशारों में दिल लेने वाले" फिल्माया गया है।

5. गानों की फिल्मांकन शैली

  • "ये चांद सा रोशन चेहरा" गाना डल झील में शिकारे पर फिल्माया गया है, जिसे हिंदी सिनेमा के सबसे रोमांटिक बोट बैले (Boat Ballet) गानों में से एक माना जाता है। शम्मी कपूर की एनर्जी और रफ़ी साहब की आवाज़ का जादू बेमिसाल था।


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Rafi - Na Jaa Kahin Ab Na Jaa - Mere Hamdam Mere Dost [1968]






गाना "ना जा कहीं अब ना जा" फ़िल्म "मेरे हमदम मेरे दोस्त" (Mere Hamdam Mere Dost, 1968) का एक बहुत ही भावुक और लोकप्रिय गीत है।

यहाँ इस गीत, फ़िल्म और इससे जुड़ी कुछ जानकारी दी गई है:

ना जा कहीं अब ना जा

विवरणजानकारी
गायक (Singer)मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकार (Music Director)लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant-Pyarelal)
गीतकार (Lyricist)मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri)
फ़िल्म (Film)मेरे हमदम मेरे दोस्त (Mere Hamdam Mere Dost)
कलाकार (Picturized on)धर्मेंद्र (Dharmendra) और शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore)

गीत का आकर्षण (Appeal of the Song)

यह गाना आज भी रोमांटिक संगीत प्रेमियों के बीच बहुत पसंद किया जाता है। इसकी खूबी ये है:

  • रफ़ी साहब का दर्द: मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में एक गहरा दर्द (pathos) और आग्रह (pleading) है, जो गाने के बोल, "ना जा कहीं अब ना जा" (Now don't go anywhere) को जीवंत बना देता है।

  • धुन की सादगी: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की धुन बहुत सीधी और मधुर है, जो सीधे दिल को छूती है।

  • धर्मेंद्र का अभिनय: इस गाने में धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया गया वियोग (separation) और प्रेम का भाव बहुत ही मार्मिक है।

फ़िल्म: मेरे हमदम मेरे दोस्त (1968)

  • यह फ़िल्म धर्मेंद्र की रोमांटिक हीरो की छवि को मजबूत करने वाली फिल्मों में से एक थी।

  • इस फ़िल्म के सभी गाने, जिनमें यह गीत भी शामिल है, बेहद सफल रहे थे।

  • फ़िल्म के अन्य प्रसिद्ध गीत हैं: "हुस्न हाज़िर है", "चलो सजना जहाँ तक घटा चले", और "अल्लाह ही अल्लाह कर प्यारे"

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