Thursday, October 18, 2012

Woh Pal.........................वो पल





























बंद करके रख दिए
वो पल वो शब्द
वो वाकये जो आह्लादित
मलय की सुगंध देते थे ,
मन की तिजौरी में,
और वक़्त की बांह पकड़े
उड़ चली कल्पना लोक में
सोचा जब थक जाऊं
मन वितृष्णा  से भर जाए
विरक्ति अपने पंजे में
जकड़ने लगे
गमों   के बादल
आँखों में बसेरा कर लें
जीवन आख्याति
समापन का रुख करे
तब खोल दूंगी ये तिजौरी
और लम्बा श्वांस
लेकर आत्मसात कर लूँगी
इस सुगंध को
नव्य जीवन की ऊर्जा  हेतु !!

( राजेश कुमारी )

Photo credit 
Max Gasparini



Monday, October 15, 2012

Woh acha hai to acha hai...
























Woh acha hai to acha hai, bura hai ,to bhi acha hai
mizaaj-e-Ishq mein Aieb-e-yaar dekhe nahi jaate.


वो अच्छा है तो ,अच्छा है...बुरा है, तो भी अच्छा है"
"मिज़ाज-ए-इश्क में,  ऐब-ए-यार देखे नहीं जाते...


(Aieb-E-Yaar: Weaknesses of a friend)


Munawwar Rana 

Art Credit: Arti Chauhan

Wo bachpan ki neend to ...वो बचपन की नींद






















वो बचपन की नींद तो अब ख्वाब हो गयी...
क्या उम्र थी... के रात हुई... और सो गए...

Wo bachpan ki neend to ab khawab ho gayi,
Kya umer thi... ke raat huyi... aur so gaye.......



Munawwar Rana 

Art Credit : Valadimir Velogov

Sab Khasaaron ko Jama Karke......सब ख़सारों को जमा करके...





























Sab Khasaaron ko Jamaa Karke, Ye Haasil Niklaa,
Dil-e-Nadaan Ki Koi Baat , na Maani Jaaye……!

(khasaaron;losses)

सब ख़सारों को जमा करके, ये हासिल निकला
दिल-ए-नादाँ की कोई बात , न मानी जाए....


Altaf Hussain Hali

Art Credit: Jose Royo

Friday, October 12, 2012

मैं धरती को एक नाम देना चाहता हूँ






















मां दुखी है
कि मुझ पर रुक जायेगा ख़ानदानी शज़रा

वशिष्ठ से शुरु हुआ
तमाम पूर्वजों से चलकर
पिता से होता हुआ
मेरे कंधो तक पहुंचा वह वंश-वृक्ष
सूख जायेगा मेरे ही नाम पर
जबकि फलती-फूलती रहेंगी दूसरी शाखायें-प्रशाखायें

मां उदास है कि उदास होंगे पूर्वज
मां उदास है कि उदास हैं पिता
मां उदास है कि मैं उदास नहीं इसे लेकर
उदासी मां का सबसे पुराना जेवर है
वह उदास है कि कोई नहीं जिसके सुपुर्द कर सके वह इसे

उदास हैं दादी, चाची, बुआ, मौसी…
कहीं नहीं जिनका नाम उस शज़रे में
जैसे फ़स्लों का होता है नाम
पेड़ों का, मक़ानों का…
और धरती का कोई नाम नहीं होता…

शज़रे में न होना कभी नहीं रहा उनकी उदासी का सबब
उन नामों में ही तलाश लेती हैं वे अपने नाम
वे नाम गवाहियाँ हैं उनकी उर्वरा के
वे उदास हैं कि मिट जायेंगी उनकी गवाहियाँ एक दिन

बहुत मुश्किल है उनसे कुछ कह पाना मेरी बेटी
प्यार और श्रद्धा की ऐसी कठिन दीवार
कि उन कानों तक पहुंचते-पहुंचते
शब्द खो देते हैं मायने
बस तुमसे कहता हूं यह बात
कि विश्वास करो मुझ पर ख़त्म नहीं होगा वह शज़रा
वह तो शुरु होगा मेरे बाद
तुमसे !

(अशोक कुमार पांडे )

Thursday, October 11, 2012

खोज का सफ़र...by Preetpal Hundal







ऐ दोस्त

तुने क्यूँ  चुना

खुद को खुदकशी के लिये

एक ज़ज्बे के लिए ठीक नहीं होता यूँ कतल हो जाना

एक ही नाटक में कितनी बार मरोगे

आखिर कितनी बार

रिश्तों को बचाते बचाते

खुद को न बचा पाओगे

 
वो  रिश्ता होगा

खुदकशी के धरातल पर बना रिश्ता

अपने आप को तोड़   कर

क्या तामीर कर रहे हो,

इमारतें  ऐसे नहीं बनती ,

बस करो अब ...

बंद करो यह नाटक ...

कुछ मत बदलो ..

बस ...

शुरू करो अपनी खोज का सफ़र

ज़िन्दगी  लम्बी कहानी का नाम नहीं है

भूल जाओ  किताबों की बातें

खुद से प्यार करो

यही से शुरू होगा ...

खोज का सफ़र




(प्रीत पॉल हुंडल  )



Painting by Joao Paulo De Carvalho






यह रचना प्रीत पॉल हुंडल द्वारा लिखी गई है।

यह एक बहुत ही गहरी और भावनात्मक कविता है जो दोस्ती, आत्म-सम्मान और जीवन के महत्व पर केंद्रित है। इसमें कवि अपने दोस्त को संबोधित करते हुए खुद को खत्म करने (खुदकशी) के विचार को त्यागने का आग्रह कर रहे हैं।

कविता के मुख्य भाव इस प्रकार हैं:

  • खुद को कत्ल न करने का आग्रह: कवि अपने दोस्त से पूछते हैं कि उसने आत्महत्या का रास्ता क्यों चुना और इसे एक जुनून के लिए खुद का कत्ल करना बताते हैं, जो कि सही नहीं है।

  • खुद को बचाने की सीख: कवि यह समझाते हैं कि रिश्तों को बचाने के लिए बार-बार खुद को मिटाना या कुर्बान करना ठीक नहीं है। ऐसे रिश्ते जो आत्म-त्याग पर आधारित हों, वे खोखले होते हैं।

  • खुद से प्यार करने का संदेश: कविता का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि बाहरी चीजों को बदलने के बजाय, अपनी खोज का सफर शुरू करो और सबसे पहले खुद से प्यार करो। यही आत्म-सम्मान और जीवन में आगे बढ़ने का असली रास्ता है।

कुल मिलाकर, यह एक प्रेरणादायक और मार्मिक रचना है जो जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और खुद को सबसे पहले महत्व देने की सीख देती है।

मैं कविता हूँ .....





इस जिंदगी की तेज़ ,
बहुत तेज़ दौड़ती
भागम भाग से हार कर ,
अजनबियत के सायों से परेशान हो कर ,
अकेलेपन को ओढे हुए
मैं . . .
जब भी कभी
किसी थकी-हारी शाम की
उदास दहलीज़ पर आ बैठता हूँ
तो
सामने रक्खे काग़ज़ के टुकडों पर
बिखरे पड़े
बेज़बान से कुछ लम्हे
मुझे निहारने लगते हैं...
मैं . .
उन्हें.. छू लेने की कोशिश में...
अपने होटों पर पसरी
बेजान खामोशी के रेशों को
बुन बुन कर
उन्हें इक लिबास देने लगता हूँ
और वो तमाम बिखरे लम्हे
लफ्ज़-लफ्ज़ बन
सिमटने लगते हैं....
और अचानक ही
इक दर्द-भरी , जानी-पहचानी सी आवाज़
मुझसे कह उठती है ....
मैं... कविता हूँ ...............!
तुम्हारी कविता .............!!
मुझसे बातें करोगे ......!?!


(Danish)


Photo Credit: Max Drupka

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