ऐ बादल !
Barsat main tu
बरसात में तू
Kis-se bicharta hai
किससे बिछड़ता है
Jo is qadar tarapta hai
जो इस कदर तड़पता है
Aur be-tarah barasta hai...
और बेतरह बरसता है .....
नमक का दारोग़ा | Namak Ka Darogha | Tehreer - Munsi Premchand Ki...", जो प्रसार भारती अभिलेखागार (Prasar Bharati Archives) द्वारा प्रस्तुत किया गया है, यह मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध हिंदी लघु कहानी, 'नमक का दारोगा' का एक दृश्य-श्रव्य रूपांतरण है।
यह एक शक्तिशाली कहानी है जो ब्रिटिश राज के दौरान भारत में ईमानदारी और भ्रष्टाचार (Honesty and Corruption) के बीच के संघर्ष को दर्शाती है।
वंशीधर (Vanshidhar): कहानी का नायक। वह एक गरीब परिवार से है, लेकिन ईमानदार (प्रामाणिक) और कर्तव्यनिष्ठ युवक है। उसे नमक विभाग में दारोगा (निरीक्षक) की नौकरी मिलती है।
अलोपीदीन (Alopideen): वह प्रांत का सबसे धनी और प्रतिष्ठित ज़मींदार है, जिसका व्यवसाय नमक की अवैध तस्करी (कालाबाजारी) करना है।
ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के बाद, नमक की तस्करी (स्मगलिंग) बड़े पैमाने पर शुरू हो गई। दारोगा के पद के लिए लोग रिश्वत देकर नौकरी पाना चाहते थे, क्योंकि इस विभाग में ऊपरी कमाई (लांच) का मौका बहुत बड़ा था.
जब वंशीधर दारोगा के रूप में कार्यभार संभालता है, तो उसके पिता उसे सलाह देते हैं कि नौकरी में रिश्वत लेकर पैसा कमाने पर ज़्यादा ध्यान दे, क्योंकि वेतन से तो उसका खर्च नहीं चलेगा। लेकिन वंशीधर अपने पिता की बात नहीं मानता और अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहता है।
एक रात, वंशीधर को नदी किनारे गाड़ियों की आवाज़ सुनाई देती है और वह जाँच करता है। उसे पता चलता है कि इन गाड़ियों में ज़मींदार अलोपीदीन नमक की तस्करी कर रहा है।
वंशीधर अलोपीदीन को गिरफ्तार (हिरासत) कर लेता है।
अलोपीदीन उसे छोड़ने के लिए रिश्वत की पेशकश करता है। शुरुआत में ₹1000 और बाद में ₹40,000 तक की रिश्वत देता है, जो उस समय एक बहुत बड़ी रकम थी।
वंशीधर यह रिश्वत लेने से स्पष्ट रूप से इनकार कर देता है और अपनी ईमानदारी पर अटल रहता है। वह अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है और उसे हथकड़ी पहनाता है।
अलोपीदीन को अदालत (कोर्ट) में ले जाया जाता है, लेकिन वह अपनी संपत्ति और प्रभाव का उपयोग करके निर्दोष छूट जाता है।
इस घटना के कारण ईमानदार दारोगा वंशीधर की नौकरी चली जाती है, और उसे समाज में आलोचना का सामना करना पड़ता है। उसके पिता भी उसे ताना मारते हैं।
कहानी का अंतिम भाग: कुछ समय बाद, अलोपीदीन स्वयं वंशीधर के घर आता है। वह वंशीधर की ईमानदारी (प्रामाणिकपणा) और चरित्र से इतना प्रभावित होता है कि वह उसे अपनी पूरी संपत्ति का स्थायी प्रबंधक (जनरल मैनेजर) नियुक्त करता है।
अलोपीदीन कहता है कि उसे ऐसा ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति चाहिए जो पैसे के लिए अपनी नैतिकता नहीं छोड़ेगा।
वंशीधर यह नौकरी स्वीकार कर लेता है, क्योंकि यह ईमानदारी के मूल्य पर आधारित होती है।
इस कहानी का मुख्य संदेश यह है कि पैसा या शक्ति से कहीं अधिक ईमानदारी और नैतिकता महत्वपूर्ण है। ईमानदारी पर अटल रहने पर, दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग भी आपके सामने झुक जाते हैं।
(This video is posted by channel – Prasar Bharati Archives on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is
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"पूस की रात | Poos Ki Raat | Tehreer - Munsi Premchand Ki..." वह मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध और मार्मिक हिंदी कहानी 'पूस की रात' का दृश्य-श्रव्य रूपांतरण है।
यह कहानी एक गरीब किसान के जीवन की कड़वी सच्चाई, ठंड और कर्ज के जाल में फंसे होने की त्रासदी को दर्शाती है।
हल्कू (Halku): कहानी का नायक, एक गरीब और कर्ज में डूबा हुआ किसान।
मुन्नी (Munni): हल्कू की पत्नी, जो पति की गरीबी और कामचोरी से दुखी रहती है।
जबरा (Jabra): हल्कू का वफादार कुत्ता, जो रात में उसके साथ खेत की रखवाली करता है।
कर्ज और मजबूरी: कहानी की शुरुआत में, हल्कू के पास ठंड से बचने के लिए एक भी कंबल नहीं होता है [
कर्ज चुकाना: हल्कू यह पैसे साहूकार (सरजू) को चुकाने के लिए मजबूर होता है, क्योंकि अगर वह साहूकार को पैसे नहीं देगा, तो उसे गालियाँ सुननी पड़ेंगी और अपमानित होना पड़ेगा। भारी मन से, वह कंबल खरीदने के बजाय कर्ज चुकाने का फैसला करता है [
पूस की रात: पौष (पूस) की कड़ाके की ठंड वाली रात में, हल्कू अपने खेत की रखवाली के लिए जाता है। उसके पास सिर्फ एक पुरानी और फटी चादर होती है, और वह और उसका कुत्ता जबरा ठंड से कांप रहे होते हैं [
राहत की तलाश: ठंड से राहत पाने के लिए, वह अपने पास के आम के बाग में सूखी पत्तियाँ इकट्ठी करके आग जलाता है [
फसल का विनाश: इसी बीच, खेत में नीलगायों का झुंड घुस आता है और फसल चरना शुरू कर देता है [
परिणाम: अगली सुबह जब मुन्नी और हल्कू खेत में आते हैं, तो देखते हैं कि पूरी फसल बर्बाद हो चुकी है। मुन्नी दुखी होती है, लेकिन हल्कू अजीब तरह से शांत और प्रसन्न महसूस करता है। उसे इस बात की खुशी होती है कि अब उसे ठंड में रातभर खेत पर सोना नहीं पड़ेगा [
'पूस की रात' कहानी भारत के किसान की उस दर्दनाक स्थिति को उजागर करती है, जहाँ वह अपनी कड़ी मेहनत और फसल की परवाह करने के बजाय, ठंड और कर्ज के बोझ से मुक्ति को प्राथमिकता देता है। यह कहानी गरीबी के कारण इंसान के आत्मसम्मान और इच्छाशक्ति के पतन को दिखाती है।
(This video is posted by channel – Prasar Bharati Archives on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is
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वीडियो "बूढी काकी | Munsi Premchand ki.. 'Tehreer'", जो प्रसार भारती अभिलेखागार द्वारा प्रस्तुत किया गया है, यह मुंशी प्रेमचंद की मर्मस्पर्शी और शक्तिशाली हिंदी लघु कहानी, 'बूढ़ी काकी' का एक दृश्य-श्रव्य रूपांतरण है।
यह कहानी हिंदी साहित्य का एक क्लासिक है, जो संयुक्त परिवार प्रणाली में बुजुर्गों को झेलनी वाली कठोर वास्तविकताओं और लालच के क्रूर प्रभाव के यथार्थवादी चित्रण के लिए जानी जाती है।
बूढ़ी काकी: एक बुज़ुर्ग, निःसंतान विधवा हैं जिनकी जीवन में एकमात्र बची हुई खुशी भोजन है। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने भतीजे बुद्धिराम को इस शर्त पर सौंप दी है कि वह उनके मरने तक उनका ध्यान रखेगा।
बुद्धिराम और रूपिया: बुद्धिराम भतीजा है और रूपिया उसकी पत्नी है। काकी की संपत्ति मिलते ही उनकी शुरुआती दयालुता खत्म हो जाती है, और वे बुढ़िया के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर देते हैं, उन्हें एक बोझ मानते हैं।
बुद्धिराम के बेटे की सगाई समारोह होती है, और एक शानदार दावत तैयार की जाती है। काकी, जिनकी भूख ही उनकी खुशी का एकमात्र स्रोत है, पूरी और अन्य पकवानों की स्वादिष्ट महक से तड़प उठती हैं।
भोजन की ललक और महक काकी को बेकाबू कर देती है। अपमानित होने के बावजूद, वह घिसटते हुए उस आंगन तक जाती हैं जहाँ खाना पकाया जा रहा है।
रूपिया, जो मेज़बान है, काकी की उपस्थिति से बहुत अपमानित महसूस करती है। वह बुढ़िया को खींचकर वापस उनके कमरे में ले जाती है, सार्वजनिक रूप से उनका अपमान करती है और उन्हें मारती है, और बाहर आने से मना करती है।
अपमान काकी की भूख को शांत नहीं कर पाता। निराशा से मजबूर होकर, मेहमानों के खाना खाने के बाद वह चुपचाप फिर से आंगन में घिसटते हुए आती हैं, यह उम्मीद करते हुए कि उन्हें खाने की जगह के पास कुछ जूठन या गिरे हुए टुकड़े मिल जाएँ।
उन्हें ज़मीन पर पड़ी जूठन खाते हुए देखकर, मेहमान और परिवार के सदस्य भयभीत और disgusted हो जाते हैं। अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, बुद्धिराम उन्हें ज़बरदस्ती खींचकर वहाँ से हटाता है।
काकी के प्रति वास्तविक दया दिखाने वाला एकमात्र व्यक्ति बुद्धिराम की छोटी बेटी लाड़ली होती है। वह काकी की दयनीय स्थिति से द्रवित हो जाती है।
लाड़ली अपना छोटा हिस्सा बचाती है (या जूठन लगी प्लेटें देती है) और आधी रात को चुपके से काकी के पास लाती है। दया का यह छोटा सा कार्य काकी को उस रात का पहला संतोषजनक भोजन प्रदान करता है।
रूपिया इस दृश्य को देखती है और शर्म तथा काकी की दयनीय अवस्था से गहरी तरह हिल जाती है। उसे आखिरकार अपनी क्रूरता की भयावहता का एहसास होता है।
रूपिया का हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह सुबह जल्दी उठती है, बची हुई पूरियाँ पकाती है, और काकी को परोसती है, अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगती है।
कहानी धन की चाहत में मानवीय मूल्यों के पतन और परिवार के सदस्यों की अपने बुजुर्गों, खासकर आश्रितों की देखभाल करने की जिम्मेदारी के बारे में एक शक्तिशाली संदेश के साथ समाप्त होती है। यह दर्शाती है कि शर्म और पश्चाताप की भावना से कठोर से कठोर हृदय भी पिघल सकता है।
(This video is posted by channel – Prasar Bharati Archives on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is
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