Sunday, November 18, 2012
चारा काटने की मशीन ...upender nath ashq ki kahaani
रेल की लाइनों के पार, इस्लामाबाद की नयी आबादी के मुसलमान जब सामान का मोह छोड,जान का मोह लेकर भागने लगे तो हमारे पड़ोसी लहनासिंह की पत्नी चेती।
”तुम हाथ पर हाथ धरे नामर्दों की भाँति बैठे रहोगे,” सरदारनी ने कहा, ”और लोग एक से एक बढ़िया घर पर कब्जा कर लेंगे।”
सरदार लहनासिंह और चाहे जो सुन लें, परन्तु औरत जात के मुँह से ‘नामर्द’ सुनना उन्हें कभी गवारा न था। इसलिए उन्होंने अपनी ढीली पगड़ी को उतारकर फिर से जूड़े पर लपेटा; धरती पर लटकती हुई तहमद का किनारा कमर में खोंसा; कृपाण को म्यान से निकालकर उसकी धार का निरीक्षण करके उसे फिर म्यान में रखा और फिर इस्लामाबाद के किसी बढ़िया ‘नये’ मकान पर अधिकार जमाने के विचार से चल पड़े।
वे अहाते ही में थे कि सरदारनी ने दौड़कर एक बड़ा-सा ताला उनके हाथ में दे दिया। ”मकान मिल गया तो उस पर अपना कब्जा कैसे जमाओगे?”
सरदार लहनासिंह ने एक हाथ में ताला लिया, दूसरा कृपाण पर रखा और लाइनें पार कर इस्लामाबाद की ओर बढ़े।
खालसा कालेज रोड, अमृतसर पर, पुतली घर के समीप ही हमारी कोठी