गीत "ऐसे तो न देखो के हमको नशा हो जाए" हिंदी सिनेमा के सदाबहार गीतों में से एक है, जो देव आनंद के चार्म और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ के लिए जाना जाता है।
यह गाना 1965 की फ़िल्म 'तीन देवियाँ' (Teen Devian) का एक बेहद रूमानी और चंचल सोलो गीत (solo song) है।
यहाँ इस क्लासिक गीत और फ़िल्म से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है:
गीत और फ़िल्म का विवरण
| विवरण | जानकारी |
| गीत | "ऐसे तो न देखो के हमको नशा हो जाए" |
| फ़िल्म का नाम | तीन देवियाँ (Teen Devian) (1965) |
| गायक | मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi) |
| संगीतकार | एस. डी. बर्मन (S. D. Burman) |
| गीतकार | मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) |
| मुख्य कलाकार | देव आनंद, नंदा, कल्पना, सिमी गरेवाल |
| शैली | रूमानी, हल्की-फुल्की/चंचल (Light-hearted Romantic) |
गीत की विशेषता और तथ्य
देव आनंद का अंदाज़:
यह गाना अभिनेता देव आनंद की स्क्रीन इमेज के लिए एकदम सही था। उनकी शरारती आँखें, चंचल अंदाज़ और रोमांटिक अप्रोच इस गाने को पूरी तरह से कॉम्प्लीमेंट करती है।
गाने में देव आनंद अपनी प्रेमिका को चेतावनी देते हैं कि वह उन्हें ऐसे न देखे, क्योंकि इससे उन्हें नशा हो जाएगा—एक तरह से यह स्वीकार करना है कि उनकी सुंदरता और आकर्षण बहुत तीव्र है।
एस. डी. बर्मन का संगीत:
संगीतकार एस. डी. बर्मन ने इस गीत को एक कैची (catchy), धीमी और आरामदेह धुन दी है। यह गाना वेस्टर्न और भारतीय संगीत के तत्वों का सुंदर मिश्रण है, जो 60 के दशक की रोमांटिक धुनों का एक बेहतरीन उदाहरण है।
रफ़ी साहब का गायन:
मोहम्मद रफ़ी ने इस गीत को देव आनंद के अंदाज़ में गाया है। उनकी आवाज़ में वो हल्की-फुल्की मस्ती और दुलार भरा रोमांस है, जो इस गाने को इतना खास बनाता है।
फ़िल्म की थीम:
फ़िल्म 'तीन देवियाँ' एक रोमांटिक कॉमेडी थी, जिसमें नायक (देव आनंद) तीन अलग-अलग महिलाओं (नंदा, कल्पना, और सिमी गरेवाल) के प्यार में पड़ जाता है, और अंत में उसे उनमें से किसी एक को चुनना होता है। यह गीत उनके रोमांस और चंचलता को दर्शाता है।
यह गाना आज भी देव आनंद और मोहम्मद रफ़ी के सबसे बेहतरीन रोमांटिक सोलो गानों में से एक माना जाता है।
Nice song
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