Thursday, September 13, 2012

आत्मवालोकन

                  कहते हैं कि गुरु बिन ज्ञान नहीं । सच भी है गुरु जीवन के मार्गदर्शक होते हैं । ये बात और है कि जीवन की इस यात्रा में  ऐसे लोग गिनती के ही होते  हैं जिन्हें हम औपचारिक रूप से अपना गुरु मानते हैं । जिनका सानिध्य पाकर  हमारी अकादमिक या आध्यात्मिक उन्नति होती है ।  इसी नाते हम इन्हें गुरु मान इनका सम्मान करते हैं ।  लेकिन जीवन की इस राह में अनगिनत लोग ऐसे भी मिलते हैं  जिन्हें औपचारिक रूप से  गुरु नहीं मानते हम , पर उनसे भी हमें ज्ञान और मार्गदर्शन ज़रूर मिलता है ।
कभी कभी लगता है कि इस जीवन में कोई एक गुरु कैसे हो सकता है ? मैंने हमेशा यह महसूस किया कि हमारा जीवन तो सबके सहयोग से ही संवरता है । हमारे परिवेश से लेकर हमारे माता-पिता और यहाँ तक कि हमारे अपने बच्चे भी हमें बहुत कुछ सिखाते हैं । औपचारिक रूप से हम इन्हें गुरु भले न माने पर जीवन में हर व्यक्ति, हर परिस्थिति हमें कुछ ऐसा सिखा जाती है, जिससे मिली सीख सदा के लिए हमारी पथप्रदर्शक बन जाती है । यही सीखें वे उत्प्रेरक तत्व होती  हैं जो समय रहते संभल जाने का संबल देती हैं । एक गुरु की तरह हमें सही गलत को समझने की शक्ति और दूरदर्शिता  देती हैं । 
          अगर अपनी बात करूँ तो लगता है कि आज तक जीवन में जिससे भी मिली उसी से बहुत कुछ सीखा । इस सूची में ऐसे भी कई लोग हैं जिन्हें अक्षर ज्ञान भी नहीं था । जैसे मेरी दादी माँ । एक निरक्षर महिला ,पर जीवन से जुड़े ज्ञान की थांती जो उनसे मिली आज तक मेरा आत्मबल है और हमेशा रहेगी । आज भी अपनी नाते रिश्तेदारी में ऐसी कई महिलाओं से मिलना हो जाता है जिनका आम सा दिखने वाला जीवन अपने आप में संघर्ष की मिसाल है । उनसे सुनी कई बातें अनायास ही इतना  कुछ सिखा बता देती हैं कि मुझे वे ज्ञान देने वाले किसी गुरु से कम नहीं लगतीं । 
             अपने दोस्तों ,सखियों-सहेलियों सभी से कुछ न कुछ सीखा है और आज भी यह सिलसिला जारी है  । जब भी जिससे भी मुलाकात होती है लगता कि हर किसी में  कुछ विशेष बात है । मुझे भी इसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए । किसी की भाषाई दक्षता तो किसी का शांत स्वाभाव , किसी का अपने घर की साज-संभाल  का ढंग तो किसी का नौकरी में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने की सनक ।  कभी बड़ी उम्र  के किसी अपने के अनुभव कुछ सिखा जाते हैं तो कभी अपने से छोटी उम्र वालों के जद्दोज़हद भरे निर्णय  मेरे अपने जीवन को अनुशासित बनाये रखने का पाठ पढ़ा जाते है । सच ही है कि मन चेतन हो तो पूरा परिवेश ही एक विद्यालय के समान है । मन की सजगता हर कहीं से कुछ न कुछ ढूंढ ही लेती है जो ज्ञान और मार्गदर्शन देता है । हर बार यही लगता है कि मुझे मिलने वाले हर व्यक्ति के जीवन से जुड़े निर्णय और परिस्थितियां  मुझे बहुत कुछ सिखा जाती है । कुछ ऐसा समझा जाती है जो मेरे लिए  गुरु के दिए ज्ञान से कम नहीं । यह कृतज्ञता ज्ञापन उन तमाम नाम अनाम के प्रति है जिनसे कुछ सीखने का सौभाग्य मिला ।

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डॉ मोनिका शर्मा का ये article पढ़कर ऐसा लगा जैसा मेरी अपनी सोच को किसी नें शब्द दे दिए हों । उनके लिखने के  ढंग ने मुझे बहुत प्रभावित किया । आपसे उनका वही  article शेयर कर रही हूँ , आप उनके और articles पढना चाहें तो तो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं   http://meri-parwaz.blogspot.in/2012/07/blog-post.html#links

1 comment:

  1. Anonymous9/18/2012

    बहुत सुन्दर विचार...

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