यह गीत फिल्म 'शगुन' (1964) का एक कालजयी क्लासिक (Timeless Classic) है। इसे हिंदी सिनेमा के सबसे रोमांटिक और सुकून देने वाले गानों में गिना जाता है। इस गीत की शांति और गहराई आज भी श्रोताओं को एक अलग दुनिया में ले जाती है।
यहाँ इस गीत से जुड़ी मुख्य जानकारी दी गई है:
गीत का विवरण
गायक: मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर
संगीतकार: खय्याम (Khayyam)
गीतकार: साहिर लुधियानवी
फिल्म: शगुन (1964)
कलाकार: कमलजीत और वहीदा रहमान
गीत की खासियत
खय्याम का संगीत: खय्याम साहब अपनी धुनों में 'ठहराव' के लिए जाने जाते थे। इस गाने में उन्होंने न्यूनतम वाद्य यंत्रों (Minimal instruments) का प्रयोग किया है ताकि रफ़ी साहब और सुमन जी की आवाज़ की कोमलता उभर कर आए।
साहिर की शायरी: "पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है" - ये पंक्तियाँ प्रकृति और प्रेम के मिलन को खूबसूरती से दर्शाती हैं।
सुमन कल्याणपुर और रफ़ी की जुगलबंदी: कई लोग इस गाने में सुमन कल्याणपुर की आवाज़ को लता मंगेशकर की आवाज़ समझ लेते हैं, क्योंकि उनकी गायकी में वही सुरीलापन और सादगी थी।
गीत के बोल (मुख्य अंश)
"पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है सुरमई उजाला है, चंपई अंधेरा है..."
(This video is posted by channel – {Shemaroo}
on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is
added to this post for knowledge purposes only.)
No comments:
Post a Comment
Do Leave a Comment