Monday, March 05, 2012

Udne lagey wajood ke....

Udne lage wajood ke reze hawa ke saath,
Main is kadar khooloos se bikhra kabhi na tha...
















reze=tukde

Photocredit: WordpressArmedwithvision

Mohabbat rooh mein utraa hua....


Mohabbat rooh mein utraa hua mausam hai, O Jaanaa,
taa'lluq khatm karne se mohabbat kam nahi hoti,
bahut kuch tumse badhkar bhi mayyasar tha, mayassar hai,
na jaane phir bhi, kyun teri, zaroorat kam nahi hoti......

unknown

Ghaate ka Sauda

          Yeh kahani Manto ke us daur ke lekhan ka ek behtareen namoona hai jo Partition (Taqseem-e-Hind) se pehle aur uske dauran insaniyat ke girte hue mayaar aur dharm ke naam par hone wali siyah-kaariyon ko be-baaki se pesh karta hai.

GHATE KA SAUDA

 Do doston nein milkar dus bees ladkiyon mein se ek ladki chuni aur bayaalis  rupaye (42 rupees baat aazaadi se pehle ki hai )  dekar usey khareed liya. Raat guzaarkar ek dost nein us ladki se poocha,"Tumhaara naam kya hai ?" 


   
Sadat Hussain Manto
Photo Credit: Unknown             



















Ladki nein apna naam bataaya to vo  dost bhinna gaya," Humse to kahaa kahaa gaya tha ki tum doosre mazhab ki ho ..... Ladki nein jawaab diya ,"usne jhooth bola tha".
                Ye sunkar vo dauda dauda apne dost ke paas gaya aur kehne lagaa," Us haaramzaade nein hamaare saath dhookha kiya hai.. Hamaare mazhab ki ladki humein thamaa di...Chalo vaapis kar aayein ....

(Saadat Hussain Manto)
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Kahani Par Ek Nazar: "Ghate Ka Sauda"

Yeh kahani asal mein do doston ke darmiyan hue ek 'saude' (deal) ke zariye us waqt ke samajh mein faili hui dharmik kattarta (religious fanaticism) aur insani rishton ki sasti qeemat ko ujagar karti hai.

Kahani Ke Markazi Sawal

Jo sawal yeh kahani hamare liye chhod jaati hai, woh yeh hain:

  1. Mazhab Ki Ahmiyat vs. Insaniyat Ki Ahmiyat:

    • Kyun ek insaan ka "mazhab" uski "qeemat" aur uske saath hone wale sulook ko tai karta hai?

    • Ladki ki paak-dāmani ya uski shakhsiyat se zyada, uske mazhab ke farq hone par doston ko gussa kyun aaya?

  2. Aurat Ek 'Sauda' Kyun?

    • Ek aurat ko sirf bayaalis (42) rupaye mein kharidna aur bechna us daur mein auraton ki samaaji haisiyat (social status) par kya sawal khada karta hai?

  3. Dharma ke Naam Par Dhokha:

    • Doosre mazhab ki ladki samajh kar kharidna aur phir apne mazhab ki nikalne par usko "ghaate ka sauda" samajh kar wapas karne ki jidd, yeh dikhati hai ki dharmik bhed-bhav insaan ki soch ko kis hadd tak zehreela bana chuka tha.


Manto is kahani ke zariye yeh dikhana chahte the ki Aazaadi se pehle aur Partition ke waqt, logon ki nazron mein "Gair Mazhabi" (doosre mazhab ka) insaan hi unke na-jaiz aur gair-insani harkaton ka nishana tha. Jab woh ladki unke apne mazhab ki nikli, toh unhe laga ki yeh "sauda" unke asoolon aur imaan ke khilaaf hai, isliye yeh unke liye "ghaate ka sauda" ban gaya.

Saturday, March 03, 2012

Tum pukar lo a great song from hemant da





"तुम पुकार लो" हिंदी सिनेमा के इतिहास के सबसे बेहतरीन और भावपूर्ण गीतों में से एक है। यह गाना सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक अमर कविता है जिसे महान संगीतकार हेमंत कुमार (हेमंत दा) ने अपनी जादुई आवाज़ दी है।

यहाँ इस गीत से जुड़ी विस्तृत जानकारी और कुछ बहुत ही दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


तुम पुकार लो (Tum Pukar Lo) - विस्तृत जानकारी

विवरण (Detail)जानकारी (Information)
फ़िल्म (Film)ख़ामोशी (Khamoshi) (1969)
गायक (Singer)हेमंत कुमार (Hemant Kumar)
संगीतकार (Music Director)हेमंत कुमार (Hemant Kumar)
गीतकार (Lyricist)गुलज़ार (Gulzar)
अभिनय (Performed By)धर्मेंद्र (Dharmendra) और वहीदा रहमान (Waheeda Rehman)
बह्र/मीटरबह्र-ए-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ (Bah-r-e-Hazaj Musaddas Mahzuf) - एक धीमी और रोमांटिक लय।

दिलचस्प तथ्य और गीत की विशेषताएँ

1. हेमंत दा का जादू (Hemant Kumar’s Magic)

  • संगीत और गायन दोनों: यह गाना हेमंत कुमार ने गाया भी और इसका संगीत भी उन्होंने ही तैयार किया। हेमंत कुमार की पहचान उनकी शांत, गहरी और मखमली आवाज़ (Baritone voice) है, जो इस उदास और रूमानी (romantic) गीत के लिए एकदम सही थी।

  • Minimalistic Music (सादा संगीत): गाने में वाद्य यंत्रों (Instruments) का इस्तेमाल बहुत कम किया गया है। शांत वायलिन, गिटार और धीमी ताल पर ज़्यादा ज़ोर है, जिससे श्रोता का ध्यान पूरी तरह से गुलज़ार के शब्दों और हेमंत दा की आवाज़ पर बना रहता है।

2. गुलज़ार की कविता (Gulzar’s Poetry)

  • अमर शब्द: गुलज़ार साहब ने इस गीत को लिखा था। 'तुम पुकार लो' गीत नहीं, बल्कि एक लंबी कविता का अंश है। इस कविता में अकेलेपन, याद और उम्मीद के भावों को इतनी गहराई से पिरोया गया है कि यह आज भी लोगों के दिल को छूती है।

  • गीत की शुरुआती लाइनें (The opening lines):

    "तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार है... ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है..."

    (You call out to me, I am waiting for you... The restless night is picking up dreams...)

    यह लाइनें विरह (separation) और अविचलित प्रेम (unwavering love) की भावना को दर्शाती हैं।

3. 'खामोशी' फिल्म और बैकग्राउंड (Film Khamoshi and Background)

  • फिल्म की कहानी: 'खामोशी' एक नर्स (वहीदा रहमान) की कहानी थी जो मनोरोगियों (psychiatric patients) का इलाज करती है, लेकिन इस प्रक्रिया में खुद मरीजों की भावनाओं में उलझ जाती है।

  • स्क्रीन पर गीत: यह गीत फिल्म में धर्मेंद्र पर फिल्माया गया था, जहाँ वह अपनी पुरानी यादों और खोए हुए प्यार को याद कर रहे होते हैं। गाने की उदासी पर्दे पर धर्मेंद्र के शांत अभिनय में पूरी तरह झलकती है।

4. तकनीकी और ऐतिहासिक महत्व (Technical and Historical Significance)

  • गजल-नुमा कंपोजिशन: भले ही यह एक फिल्म गीत है, लेकिन इसका संगीत और कविता इसे एक शुद्ध गजल का रूप देता है। यह हिंदी सिनेमा में गंभीर, साहित्यिक गानों के दौर को दर्शाता है।

  • सादगी की शक्ति: यह गीत साबित करता है कि महान संगीत बनाने के लिए तेज़ बीट्स या भारी ऑर्केस्ट्रा की ज़रूरत नहीं होती। सिर्फ एक मेलोडी, एक ईमानदार आवाज़ और मजबूत शब्दों से भी इतिहास रचा जा सकता है।


निष्कर्ष:

"तुम पुकार लो" एक ऐसा गीत है जो समय के साथ और भी ज़्यादा कीमती होता जा रहा है। यह हेमंत कुमार, गुलज़ार और 'खामोशी' फिल्म की त्रिमूर्ति (triumvirate) की एक बेमिसाल कृति है।

(This video is posted by channel – Goldmines Gaane Sune Ansune  on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

Best Of Talat Mahmood Jalte Hain Jiske Liye Sujata 1959


(This video is posted by channel – Shemaroo Filmi Gaane on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

Apni marzi se kahan apne safar ke hum hain (Jagjit Singh)






"अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं" ग़ज़ल के उस्ताद जगजीत सिंह की गाई हुई एक बहुत ही गहरी और दार्शनिक (philosophical) ग़ज़ल है। यह ग़ज़ल उनकी सबसे मशहूर और भावनात्मक रचनाओं में से एक है।

यहाँ इस ग़ज़ल से जुड़ी विस्तृत जानकारी और कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:

दिलचस्प तथ्य और ग़ज़ल की विशेषता

मूल जानकारी — गीत, शायर, गायक, एल्बम

  • यह ग़ज़ल लिखी है निदा फ़ाज़ली ने। 

  • इस ग़ज़ल को बहुत लोकप्रिय आवाज़ दी है Jagjit Singh ने। 

  • यह किसी फिल्म का गाना नहीं है — गैर-फिल्मी (non-film) ग़ज़ल है। 

  • Jagjit Singh के एल्बम Mirage (1990s) में यह ग़ज़ल शामिल है। 

ग़ज़ल के बोल — कुछ मुख्य मिसरे / पंक्तियाँ

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का — जिस दिशा का है, उधर के हम हैं। 

पहले हर चीज़ थी अपनी, मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं। 

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से —
किसे मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं। 

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब —
सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं। 


थिम्स और व्याख्या (Theme & Meaning / Interpretation)

इस ग़ज़ल के ज़रिए शायर एक existential / philosophical lyrically journey दर्शा रहे हैं — जहाँ “ज़िंदगी” को एक मुसाफ़िर (यात्री) की तरह देखा गया है, और “घर, पहचान, belonging, roots” जैसे सवाल हमेशा साथ रहते हैं।

मुख्य भाव —

  • Controllessness / नीयत-पर निर्भर जीवन — पहले सब कुछ “अपना” लगता था; समय के साथ, “मिटटी / हवाओं” के सफर में — हमें नहीं पता हमारी जड़ें कहाँ हैं।

  • Identity Crisis / बे-वजह महसूस होना — अपना घर, अपना शहर या देश हो, फिर भी “पराये” महसूस करना।

  • Wandering / मुसाफिराना जीवन — जन्म से लेकर सफर, तकदीर और circumstances की ध winds की दिशा तय करती है।

  • Universal belonginglessness / Rootlessness — यह ग़ज़ल सिर्फ व्यक्तिगत heartbreak नहीं; बल्कि इंसानियत, समय, इतिहास और identity का existential दर्द उभारती है।

  • Reflection on life / philosophical melancholy — जीवन के सफर में uncertainty, nostalgia, दर्द, introspection — सब कीodb (सहित)।

किसी ने लिखा है कि यह ग़ज़ल “ज़िंदगी के सफर की उलझनों में सही रास्ता कौन सा है, यह पहचानना मुश्किल” की भावनाओं को बखूबी व्यक्त करती है। 

1.क्यों आज भी आज़माई जाती है — प्यार, दर्द या जीवन की उलझन हो

  • इसकी पंक्तियाँ time-less हैं — “हम किसके”, “किधर के”, “मुसाफिर” जैसे विचार आज भी resonate करते हैं, चाहे context बदल जाए।

  • ग़ज़ल की गहराई + Jagjit Singh की आवाज़ ने इसे एक “soulful classic” बना दिया — जिससे सुनने पर जुड़ाव बना रहता है।

  • यह ग़ज़ल heartbreak/romance से ज़्यादा “existential loneliness / belongingness crisis” से जुड़ी है — इसलिए वो पहले प्यार वाले गानों से अलग, असरदार रहती है।

2. जगजीत सिंह का संगीत और गायन

  • धीमा और गहरा अंदाज़: जगजीत सिंह ने इस ग़ज़ल को बहुत ही धीमी गति (Slow Tempo) और कम वाद्य यंत्रों (minimal instrumentation) के साथ कंपोज़ किया है। यह सादगी श्रोता को ग़ज़ल के गहरे अर्थों पर ध्यान केंद्रित करने देती है।

  • भावपूर्ण गायन (Soulful Rendition): जगजीत सिंह की आवाज़ में एक खास किस्म की उदासी और गंभीरता है, जो इस ग़ज़ल के मुख्य भाव—जीवन की नियति—को पूरी तरह से दर्शाती है।

  • सारंगी का प्रयोग: इस ग़ज़ल में सारंगी (Sarangi) का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी उदास और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत वाली भावना को और गहरा करता है।

3. ग़ज़ल के यादगार अशआर (Memorable Couplets)

इस ग़ज़ल के कुछ सबसे मशहूर और गहराई वाले शेर ये हैं:

  • असली सार (The Core):

    अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं।

    रुख़ हवाओं का जिधर है, उधर ही के हम हैं।

  • जीवन की हकीकत:

    पहले हर चीज़ यहाँ थी, मगर अब कुछ भी नहीं।

    हम जहाँ हैं वो किसी और ही खंडर के हम हैं।

  • इंसानी भ्रम:

    वक़्त ने जैसे नचाया है, यूँ ही नाचे हैं।

    हम तो एक कठपुतली हैं, कोई बाज़ीगर के हम हैं।

    (हम सिर्फ एक कठपुतली हैं, जिसे कोई और (बाज़ीगर यानी नियति) नचा रहा है।)

यह ग़ज़ल सिर्फ सुनने के लिए नहीं है, बल्कि जीवन और नियति के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है।

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Hazaaron khwahisien Aisi (Mirza Ghalib)





हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी - मिर्ज़ा ग़ालिब

1. ग़ज़ल का सार (The Essence of the Ghazal)

यह ग़ज़ल इंसानी ख्वाहिशों (इच्छाओं) की अनंत प्रकृति और जीवन की सीमाओं के बीच के टकराव को दर्शाती है। ग़ालिब बताते हैं कि इंसान के दिल में हज़ारों इच्छाएँ होती हैं, लेकिन उनमें से शायद ही कोई पूरी हो पाती है।

  • मूल भावना: निराशा, नियति (Fate) के सामने समर्पण, और जीवन के हर पहलू को गहराई से महसूस करना।

  • शायरी की विधा: उर्दू ग़ज़ल।

2. सबसे मशहूर शेर (The Most Famous Couplets)

इस ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक दर्शन है, लेकिन कुछ शेर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं:

शेर (Couplet)अर्थ (Meaning)
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकलेमेरे दिल में हज़ारों इच्छाएँ हैं, और हर इच्छा इतनी ज़बरदस्त है कि उसी पर जान निकल जाए। (इच्छाओं की अत्यधिक संख्या और तीव्रता को दर्शाता है)
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकलेमेरी बहुत सी इच्छाएँ (अरमान) पूरी भी हुईं, लेकिन फिर भी वह संतुष्टि देने के लिए कम थीं।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होताजब कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा था, अगर कुछ न हो तो भी ख़ुदा ही होता। (ईश्वर की अनंतता और सर्वव्यापकता को दर्शाने वाला फ़िलोसॉफ़िकल शेर)
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिनहमने तो सिर्फ यही सुना है कि आदम (Adam) को स्वर्ग (खुल्द) से निकाला गया था,
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकलेलेकिन हम तो तेरे मुहल्ले (कूचे) से इतनी बेइज़्ज़ती के साथ बाहर निकले हैं (जितनी आदम भी नहीं हुए होंगे)।

3. गायन (Musical Renditions)

यह ग़ज़ल इतनी लोकप्रिय है कि इसे कई महान गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। सबसे प्रसिद्ध प्रस्तुतियाँ ये हैं:

  • जगजीत सिंह (Jagjit Singh): उनकी आवाज़ में यह ग़ज़ल एक शांत, उदास और गहरी छाप छोड़ती है।

  • तलत अज़ीज़ (Talat Aziz): इनकी प्रस्तुति भी काफी मशहूर है।

  • फिल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954): इस फिल्म में भी यह ग़ज़ल शामिल थी।

4. दिलचस्प तथ्य (Interesting Fact)

  • मीटर की सुंदरता: यह ग़ज़ल 'बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन् सालिम' (Bahr-e-Mutadaarik Musamman Saalim) में है, जिसका रुक्न है फ़ाइलातुन (Fa'ilaatun)। यह एक तेज़, बहती हुई और लयबद्ध बह्र है जो अक्सर ग़ज़लों में कम इस्तेमाल होती है, लेकिन ग़ालिब ने इसका उपयोग कर के इसे अमर बना दिया।

  • ग़ालिब की पहचान: इस ग़ज़ल में ग़ालिब की वह खासियत दिखती है जहाँ वह इश्क़ (प्रेम) की बात करते-करते अचानक जीवन के गहरे दार्शनिक सवालों पर आ जाते हैं।

(This video is posted by channel – Saregama Ghazal on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

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