गीत "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाईएगा" हिंदी सिनेमा के एक बेहद रूमानी (romantic) और नज़ाकत भरे युगल गीतों (duets) में से एक है।
यह गाना 1965 की फ़िल्म 'मोहब्बत इसको कहते हैं' (Mohabbat Isko Kahte Hain) का है।
यहाँ इस गीत, फ़िल्म और इससे जुड़ी विशेष जानकारी दी गई है:
गीत और फ़िल्म का विवरण
| विवरण | जानकारी |
| गीत | "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाईएगा" |
| फ़िल्म का नाम | मोहब्बत इसको कहते हैं (1965) |
| गायक | मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर (युगल गीत) |
| संगीतकार | ख़य्याम (Khayyam) |
| गीतकार | मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) |
| मुख्य कलाकार | शशि कपूर और नंदा |
| शैली | रोमांटिक ग़ज़ल, धीमी और भावुक मेलोडी |
गीत की विशेषता और तथ्य
ख़य्याम का मधुर संगीत:
संगीतकार ख़य्याम अपनी सुरीली, धीमी और भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित धुनों के लिए प्रसिद्ध थे। इस गीत में भी उन्होंने एक शांत और परिष्कृत (refined) ऑर्केस्ट्रेशन का उपयोग किया है, जो प्रेम की गंभीरता और कोमलता को दर्शाता है।
रफ़ी और सुमन कल्याणपुर की जोड़ी:
मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ों का मेल इस गीत को अविस्मरणीय (unforgettable) बनाता है।
रफ़ी साहब की आवाज़ में नायक का प्रेम भरा अनुरोध और उत्साह झलकता है।
सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में नायिका का लज्जित (shy) होना और अपने होश खोने का वर्णन बहुत ही नज़ाकत से किया गया है।
यह युगल गीत उन बेहतरीन गीतों में से एक है जहाँ दोनों गायकों की आवाज़ें एक-दूसरे की पूरक (complement) बनती हैं।
मजरूह सुल्तानपुरी के बोलों की नज़ाकत:
गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गीत में उर्दू शायरी के बेहतरीन शब्दों का इस्तेमाल किया है। गीत का शीर्षक ही बताता है कि नायक की उपस्थिति नायिका को इतना मोहित करती है कि वह अपने 'होश' (चेतना) खो देती है। वह नायक से कुछ देर रुकने का अनुरोध करती है ताकि वह अपनी भावनाओं को संभाल सके। यह प्रेम की तीव्रता को बड़ी सुंदरता से व्यक्त करता है।
शशि कपूर और नंदा की केमिस्ट्री:
इस गाने को शशि कपूर और नंदा पर फिल्माया गया है। उस दौर में यह जोड़ी अपने प्यारे और सरल रोमांस के लिए बहुत लोकप्रिय थी।
यह गीत आज भी क्लासिक हिंदी संगीत प्रेमियों के बीच अपनी शांत धुन और भावनात्मक गहराई के कारण बेहद सराहा जाता है।