Monday, April 09, 2012

Woh kaghaz ki kashti woh barish ka paani (Chitra, Jagjit Singh)






ग़ज़ल का सार: "वो कागज़ की कश्ती..."

यह ग़ज़ल केवल एक गाना नहीं, बल्कि बचपन की मासूमियत और सादगी को याद करते हुए हर व्यक्ति के दिल से निकली एक दार्शनिक पुकार है।

विशेषताविवरण
गीतकारसुदर्शन फ़ाकिर (Sudarshan Faakir)
संगीतकारजगजीत सिंह (Jagjit Singh)
एल्बम/फिल्मयह ग़ज़ल मूल रूप से फ़िल्म 'आज' (Aaj, 1987) के लिए रिकॉर्ड की गई थी।
मुख्य विषयNostalgia (पुरानी यादें), बचपन की चाहत, और वयस्क जीवन की जटिलताओं से दूर जाने की इच्छा।

मुख्य संदेश (Main Theme)

ग़ज़ल की शुरुआती लाइनें इसके पूरे सार को बयां करती हैं:

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

गायक अपनी धन-दौलत, शोहरत, और जवानी को भी त्यागने को तैयार है, बशर्ते उसे उसके बचपन के दिन, ख़ासकर बारिश में कागज़ की कश्ती तैराना वाला आनंद वापस मिल जाए।

यादों का चित्रण

सुदर्शन फ़ाकिर ने बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में बचपन के उन छोटे-छोटे पलों को संजोया है, जिन्हें कोई नहीं भूल सकता:

  • नानी और परियों की कहानी: महल्ले की सबसे पुरानी नानी, और उनकी कहानियों में परियों का डेरा।

  • खेल और शैतानियां: गुड़ियों की शादी पर लड़ना-झगड़ना, झूलों से गिरना और फिर संभलना।

  • मासूमियत: रेत के टीलों पर घरौंदे बनाना, और बनाकर मिटा देना।

यह ग़ज़ल जगजीत सिंह की विशिष्ट शैली - सादगी भरी धुन और गहरी भावना - का उत्कृष्ट उदाहरण है।


जगजीत सिंह और चित्रा सिंह के बारे में रोचक तथ्य

जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को भारतीय संगीत के इतिहास में ग़ज़ल के King and Queen के रूप में जाना जाता है।

  1. ग़ज़ल को आम लोगों तक पहुँचाया: इस युगल (Duo) को ग़ज़ल को महफ़िलों की चारदीवारी से निकालकर आम आदमी के बेडरूम तक पहुँचाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने पारंपरिक ग़ज़ल को एक हल्के, मधुर अंदाज़ में पेश किया।

  2. जगजीत सिंह का शुरुआती संघर्ष: संगीत में आने से पहले, जगजीत सिंह, जिनका मूल नाम जगमोहन सिंह धीमन था, के पिता उन्हें IAS अधिकारी या इंजीनियर बनाना चाहते थे। मुंबई में अपने शुरुआती दिनों में, उन्होंने गुज़ारा करने के लिए विज्ञापन जिंगल्स कंपोज़ किए और शादियों में परफ़ॉर्म किया।

  3. डिजिटल रिकॉर्डिंग के जनक: जगजीत सिंह और चित्रा सिंह भारत के पहले रिकॉर्डिंग आर्टिस्ट थे जिन्होंने 1987 में अपने एल्बम Beyond Time के लिए पूरी तरह से डिजिटल मल्टी-ट्रैक रिकॉर्डिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था।

  4. प्यार की अनोखी कहानी: चित्रा सिंह पहले से शादीशुदा थीं और उनकी एक बेटी (मोनिका) भी थी, जब वह 1967 में जगजीत सिंह से मिलीं। जगजीत सिंह उनसे इतने प्रभावित थे कि एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने चित्रा के पहले पति देबो प्रसाद दत्ता के पास जाकर कहा था, "मैं आपकी पत्नी से शादी करना चाहता हूँ।"

  5. संगीत से दूरी (सबसे बड़ी त्रासदी): 1990 में, उनके इकलौते बेटे विवेक सिंह का महज़ 21 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना में निधन हो गया। इस सदमे ने इस युगल को पूरी तरह तोड़ दिया। इस घटना के बाद, चित्रा सिंह ने हमेशा के लिए गाना छोड़ दिया और उनका आखिरी संयुक्त एल्बम Someone Somewhere था।



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Jagjit and Chitra Singh --Kothe Te Aa Mahiya (Live in Concert)

DIL DHADAKNE KA SABAB YAAD AAYA BY ASHA BHOSLE ALBUM MERAJ E GHAZAL BY I...


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Salona Sa Sajan Hai Aur Main Hoon with lyrics | सलोना सा सजन है और मैं हूँ | Asha Bhosle



ग़ज़ल का सार (Essence of the Ghazal)

यह ग़ज़ल पूरी तरह से प्रेम और समर्पण की भावना में लिपटी हुई है।

  • सजन की सुंदरता: शुरुआती शेर प्रियतम (सजन) की सुंदरता का वर्णन करता है, और नायिका स्वीकार करती है कि उसका दिल उसी की यादों में डूबा हुआ है:

    सलोना सा सजन है और मैं हूँ जिया में एक अगन है और मैं हूँ (मेरा प्रियतम खूबसूरत है और मैं हूँ; मेरे दिल में एक आग/उत्साह है और मैं हूँ।)

  • ठंडी जलन: शायर (गीतकार) एक विरोधाभास (paradox) का इस्तेमाल करते हैं जो प्रेम की प्रकृति को दर्शाता है। प्रियतम की यादें सुखद हैं, लेकिन दूर होने पर बेचैनी देती हैं:

    तुम्हारे रूप की छाया में साजन बड़ी ठंडी जलन है और मैं हूँ (तुम्हारे रूप की छाया में, हे प्रियतम, एक बड़ी ही ठंडी जलन है।)

  • बेचैनी और पवन: ग़ज़ल में नायिका की बेचैनी को दर्शाया गया है जो प्रियतम के सामने घूँघट भी नहीं उठा पाती, क्योंकि हवा (पवन) भी बहुत चंचल है और रुकावट बन जाती है।

    पिया के सामने घूँघट उठा दे बड़ी चंचल पवन है और मैं हूँ

यह ग़ज़ल आशा भोंसले की गायकी की बहुमुखी प्रतिभा (versatility) को दर्शाती है, जहाँ उन्होंने हल्के-फुल्के फ़िल्मी गीतों के अलावा क्लासिकल टच वाली ग़ज़लों को भी बड़ी ही संजीदगी से गाया है।


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Yeh Dil Ye Pagal Dil Mera (Awargi) | Shaam-E-Ghazal | Ghulam Ali | Mohsin Naqvi | Romantic Ghazal


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Ghulam Ali-Yeh Dil Ye Pagal Ye dil Mera

Mainu Tera Shabab Lai Baitha - Jagjit Singh Punjabi Ghazal



यह ग़ज़ल पंजाबी साहित्य और संगीत के इतिहास के सबसे भावुक और पीड़ादायक गीतों में से एक है। इसे ग़ज़ल किंग जगजीत सिंह ने प्रसिद्ध पंजाबी कवि शिव कुमार बटालवी की अमर रचना को आवाज़ दी है।

यहाँ इस ग़ज़ल का विस्तृत विवरण और इससे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:

ग़ज़ल का विवरण: "मैनू तेरा शबाब लै बैठा" (Mainu Tera Shabab Lai Baitha)

यह ग़ज़ल नायक की गहन उदासी और बर्बादी की दास्तान है, जिसका कारण प्रियतम की सुंदरता बन जाती है।

विशेषताजानकारी
गायकजगजीत सिंह (Jagjit Singh)
गीतकारशिव कुमार बटालवी (Shiv Kumar Batalvi)
भाषापंजाबी (Punjabi)
थीमअसीम दुःख (Melancholy), बिछोह (Separation), और सौंदर्य के कारण हुई बर्बादी।

ग़ज़ल का सार और भाव

  • मूल विषय: ग़ज़ल का शीर्षक ही इसकी थीम है: "मैनू तेरा शबाब लै बैठा" जिसका अर्थ है "मुझे तेरी जवानी/तेरा सौंदर्य ले डूबा" या "तेरी सुंदरता मेरे विनाश का कारण बन गई।"

  • दर्द का प्रदर्शन: बटालवी की कविता प्रेम में मिली निराशा और दर्द को इतने गहरे स्तर पर छूती है कि श्रोता भी उस पीड़ा को महसूस करते हैं। यह ग़ज़ल इस बात का प्रतीक है कि कभी-कभी सुंदरता और आकर्षण ही व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ा दुःख ला सकता है।

  • जगजीत सिंह की प्रस्तुति: जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ की संवेदनशीलता (vulnerability) का उपयोग करते हुए इस कविता को अमर कर दिया। उनकी प्रस्तुति में वह ठहराव और दर्द है, जो बटालवी की रचना के सार को पूर्णता प्रदान करता है।

दिलचस्प तथ्य (Interesting Facts)

कवि शिव कुमार बटालवी के बारे में

  1. 'बिरहा दा सुलतान': शिव कुमार बटालवी को पंजाबी कविता में 'बिरहा दा सुलतान' (Sultan of Separation/Sorrow) के नाम से जाना जाता है। उनकी अधिकांश रचनाएँ असफल प्रेम, दुःख और अलगाव के विषयों पर केंद्रित हैं।

  2. साहित्य अकादमी पुरस्कार: बटालवी सबसे कम उम्र के ऐसे लेखक थे जिन्हें उनकी प्रसिद्ध कविता 'लूणा' (Loona) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

  3. ट्रेजिक कवि: उनकी कविताएँ गहरे दुख, ख़ुदकुशी और त्रासदी की भावनाओं से भरी रहती थीं। उनका जीवन भी कम उम्र में ही समाप्त हो गया, जिससे उन्हें पंजाबी साहित्य का ट्रेजिक कवि (Tragic Poet) माना जाता है।

जगजीत सिंह और पंजाबी ग़ज़ल

  1. पंजाबी ग़ज़ल का प्रचार: जहाँ जगजीत सिंह उर्दू ग़ज़लों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हुए, वहीं उन्होंने पंजाबी ग़ज़ल को भी मुख्यधारा (mainstream) में लाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने बटालवी, अमृता प्रीतम जैसे महान पंजाबी कवियों की रचनाओं को संगीतबद्ध किया।

  2. 'शबाब' और 'कागज़ की कश्ती': यह ग़ज़ल (Mainu Tera Shabab) और "वो कागज़ की कश्ती" (Woh Kagaz Ki Kashti) जैसी रचनाओं में एक बड़ा भावनात्मक अंतर है। जहाँ "कागज़ की कश्ती" बचपन की मासूमियत की याद है, वहीं "शबाब" प्यार में मिले दर्द और वयस्कता की त्रासदी को दर्शाता है।

इस ग़ज़ल को अक्सर जगजीत सिंह के पंजाबी गीतों के सबसे भावुक और शक्तिशाली प्रदर्शनों में से एक माना जाता है।



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