Friday, April 06, 2012

Mehboob Ki Mehndi - Yeh Jo Chilman Hai - Mohd.Rafi





यह गीत अभिनेता राजेश खन्ना के सबसे यादगार और लोकप्रिय गीतों में से एक है, जिसने उनके रोमांटिक सुपरस्टार की छवि को और मजबूत किया।

यहाँ गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म 'मेहबूब की मेहंदी' (Mehboob Ki Mehndi) से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "ये जो चिलमन है"

यह एक क्लासिक रोमांटिक गीत है जो पर्दे के पीछे छिपी प्रेमिका से मिलने की बेसब्री और मीठी गुस्ताख़ी को दर्शाता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्ममेहबूब की मेहंदी (Mehboob Ki Mehndi) (1971)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant-Pyarelal)
गीतकारआनंद बख्शी (Anand Bakshi)
कलाकार (फिल्मांकन)राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) और लीना चन्दावरकर (Leena Chandavarkar)

वीडियो का सार और मूड

  • थीम: यह गीत नायक द्वारा नायिका को प्रेमपूर्वक छेड़ने और उससे पर्दा हटाने की गुज़ारिश है। 'चिलमन' (Chilman/पर्दा) यहाँ केवल एक भौतिक बाधा नहीं है, बल्कि शर्म और संकोच की रोमांटिक बाधा भी है।

  • राजेश खन्ना की अदा: वीडियो में राजेश खन्ना अपनी अद्वितीय अदाओं (unique mannerisms) का प्रदर्शन करते हैं, जैसे आँख मारना और सिर हिलाना। वह बड़ी ही मासूमियत से चिलमन के इर्द-गिर्द घूमकर अपनी प्रेमिका से पर्दा हटाने का आग्रह करते हैं।

  • विरोध और आकर्षण: पर्दे के पीछे बैठी नायिका (लीना चन्दावरकर) अपने संकोची हाव-भाव (coy expressions) से नायक को और भी ज़्यादा आकर्षित करती है। यह गीत प्यार में आकर्षण और थोड़ी-सी तकरार (teasing) के आनंद को खूबसूरती से दर्शाता है।

  • मुख्य पंक्तियाँ:

    ये जो चिलमन है, दुश्मन है हमारी

    कितनी शरमीली है दुल्हन हमारी

    दूसरा और कोई यहाँ क्यूँ रहे

    हुस्न और इश्क़ के दरमियाँ क्यूँ रहे


फ़िल्म 'मेहबूब की मेहंदी' (1971) के बारे में दिलचस्प तथ्य

यह फ़िल्म एक सामाजिक ड्रामा है जो मुस्लिम समाज के रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों पर केंद्रित है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी पहचान इसका शानदार संगीत है।

  1. राजेश खन्ना का स्वर्णिम दौर: यह फ़िल्म राजेश खन्ना के करियर के स्वर्णिम दौर (Golden Period) में रिलीज़ हुई थी, जहाँ उनकी हर फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही थी। फ़िल्म ने राजेश खन्ना को एक ऐसे मुस्लिम लड़के के किरदार में दिखाया जो शायरी पसंद करता है।

  2. संगीत की अपार सफलता: फ़िल्म का संगीत, जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था, ज़बरदस्त हिट रहा। "ये जो चिलमन है" के अलावा, "मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं," और "जानाब-ए-आली" जैसे गाने भी बेहद लोकप्रिय हुए।

  3. निर्देशक की वापसी: फ़िल्म के निर्देशक एच. एस. रवैल ने इस फ़िल्म के साथ एक सफल वापसी की थी, और उनकी बेटी लीना चन्दावरकर इस फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री थीं।

  4. गीतकार-संगीतकार की जोड़ी: यह फ़िल्म गीतकार आनंद बख्शी और संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की सफल जोड़ी के कई हिट एल्बमों में से एक है, जिन्होंने 70 के दशक के अधिकांश संगीत पर राज किया।

  5. उर्दू साहित्यिक स्पर्श: फ़िल्म के संवादों और गीतों में एक उच्च कोटि का उर्दू साहित्यिक स्पर्श है, जो फ़िल्म को एक खास नज़ाकत और संवेदनशीलता देता है।

(This video is posted by channel – SRE MUSIC on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

Rafi - Ye Zulf Agar Khul Ke - Kaajal [1965]





यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब के गाये गए सबसे शायराना (poetic) और क्लासिकल रोमांटिक गीतों में से एक है, जो 1965 की फ़िल्म 'काजल' (Kaajal) का हिस्सा है।

यहाँ इस गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए तो"

यह एक गहन रूमानी ग़ज़ल शैली का गीत है, जहाँ नायक अपनी प्रेमिका के केशों (बालों) की तारीफ़ करने के लिए काव्यात्मक रूपक (poetic metaphors) का उपयोग करता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्मकाजल (Kaajal) (1965)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकाररवि (Ravi)
गीतकारसाहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi)
कलाकार (फिल्मांकन)राज कुमार (Raaj Kumar) और मीना कुमारी (Meena Kumari)

  • थीम: नायक (राज कुमार) नायिका (मीना कुमारी) के सौंदर्य, विशेष रूप से उसकी जुल्फों की प्रशंसा करता है। वह कहता है कि अगर ये ज़ुल्फ़ें खुल जाएँ, तो दुनिया पर अंधेरा छा जाएगा, जो उनकी मोहक शक्ति (captivating power) को दर्शाता है।

  • कलाकारों की केमिस्ट्री: राज कुमार अपने अद्वितीय संवाद शैली और मीना कुमारी अपने गहरे भावनात्मक प्रदर्शन (intense emotional expressions) से गीत को जीवंत करती हैं। राज कुमार की संवाद अदायगी वाला अंदाज़ इस गाने को एक खास ड्रामा और स्टाइल देता है।

  • बोलों की ख़ूबसूरती: गीत साहिर लुधियानवी की बेहतरीन शायरी का उदाहरण है, जो रूपक और विरोधाभास का उपयोग करते हैं:

    ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए तो, शायद घटा भी शरमा जाए! फिर चुलबुल एक हवा आए तो, दुनिया पे अँधेरा छा जाए!


फ़िल्म 'काजल' (Kaajal, 1965) के बारे में दिलचस्प तथ्य

'काजल' 1965 की एक बड़ी हिट थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता हासिल की और इसे कई श्रेणियों में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया।

  1. उपन्यास पर आधारित: यह फ़िल्म लोकप्रिय लेखक गुलशन नंदा के हिंदी उपन्यास 'नवीन' (Naveen) पर आधारित थी, जो सामाजिक ड्रामा और पारिवारिक रिश्तों पर केंद्रित था।

  2. स्टार-स्टडेड कास्ट: फ़िल्म में 60 के दशक के तीन बड़े सितारे थे:

    • मीना कुमारी (ट्रेजेडी क्वीन)

    • राज कुमार (अपने स्टाइल के लिए जाने जाते थे)

    • धर्मेंद्र (उभरते हुए स्टार)

  3. मीना कुमारी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन: मीना कुमारी ने अपनी सशक्त भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (Filmfare Award for Best Actress) जीता। यह उनकी सबसे यादगार और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित (critically acclaimed) भूमिकाओं में से एक है।

  4. रवि और साहिर की जोड़ी: इस फ़िल्म के माध्यम से संगीतकार रवि और गीतकार साहिर लुधियानवी की जोड़ी ने एक और सफल सहयोग दिया। "ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए" के अलावा, "छू लेने दो नाज़ुक होंठों को" (रफ़ी) और "तोरा मन दर्पण कहलाए" (आशा भोंसले) जैसे गाने भी इसी फ़िल्म से थे।

  5. डार्क थीम: फ़िल्म की कहानी एक जटिल पारिवारिक साज़िश, विश्वासघात, और प्रेम के बलिदान के इर्द-गिर्द घूमती है, जो उस समय के सामाजिक-पारिवारिक नाटकों के पैटर्न को दर्शाती है।


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Dil ki awaaz bhi sun (rafi) Humsaya





यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब के सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले और भावनात्मक गीतों में से एक है, जो 1968 की फ़िल्म 'हमसाया' (Humsaya) का हिस्सा है।

यहाँ इस गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "दिल की आवाज़ भी सुन"

यह गीत गहन प्रेम, विश्वास और न्याय की गुहार (plea for justice) से भरा हुआ है, जहाँ नायक अपनी प्रेमिका से शब्दों या दुनिया के इल्ज़ामों के बजाय अपने दिल की सच्चाई सुनने का आग्रह करता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्महमसाया (Humsaya) (1968)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारओ. पी. नैय्यर (O. P. Nayyar)
गीतकारशिवन रिज़वी (Shevan Rizvi)
कलाकार (फिल्मांकन)जॉय मुखर्जी (Joy Mukherjee) और शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore)

वीडियो का सार और मूड

  • थीम: यह गीत प्रेम में विश्वास को फिर से स्थापित करने की भावनात्मक कोशिश है। नायक पर किसी अपराध का इल्ज़ाम है, और वह जानता है कि उसकी प्रेमिका भी उस पर शक कर रही है।

  • भावनात्मक अपील: वीडियो में जॉय मुखर्जी, जो कि फ़िल्म में नायक की भूमिका में हैं, गहरी उदासी और बेचैनी के साथ यह गीत गाते हैं। वह अपनी प्रेमिका (शर्मिला टैगोर) की ओर देखते हैं, जो उनसे रूठी हुई है।

  • मुख्य पंक्तियाँ:

    दिल की आवाज़ भी सुन, मेरे फ़साने पे न जा, मेरी नज़रों की तरफ़ देख, ज़माने पे न जा। यह पंक्तियाँ गीत के सार को दर्शाती हैं कि दुनिया के इल्ज़ामों (कहानी) पर मत जाओ, बल्कि मेरी आँखों में मेरे दिल की सच्चाई देखो।

  • संगीत शैली: ओ. पी. नैय्यर के संगीत की पहचान इसमें साफ़ दिखती है, जहाँ तेज़ ताल (rhythms) और वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रेशन का प्रभाव है, लेकिन मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने इसे एक क्लासिक उदास-रूमानी (melancholic-romantic) स्पर्श दिया है।


फ़िल्म 'हमसाया' (Humsaya, 1968) के बारे में दिलचस्प तथ्य

'हमसाया' एक रोमांटिक जासूसी थ्रिलर फ़िल्म थी जो अपने ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी।

  1. जॉय मुखर्जी का डबल रोल और निर्देशन: इस फ़िल्म के नायक जॉय मुखर्जी ने न सिर्फ़ भारतीय वायु सेना के अधिकारी श्याम और उनके हमशक्ल चीनी जासूस लिन टैन का दोहरा किरदार (Double Role) निभाया, बल्कि उन्होंने ही इस फ़िल्म को निर्मित (Produced) और निर्देशित (Directed) भी किया था।

  2. दो प्रसिद्ध नायिकाएँ: फ़िल्म में दो प्रमुख अभिनेत्रियाँ थीं: शर्मिला टैगोर और माला सिन्हा। जॉय मुखर्जी के दोहरे किरदार को देखते हुए, दो नायिकाओं का होना कहानी को रोमांटिक मोड़ देता है।

  3. सेट पर प्रतिद्वंदिता: मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फ़िल्म के सेट पर दो लीड अभिनेत्रियों, शर्मिला टैगोर और माला सिन्हा के बीच प्रतिद्वंदिता (rivalry) की ख़बरें थीं। उनकी तकरार इतनी बढ़ गई थी कि एक रिपोर्ट में तो यह भी दावा किया गया था कि एक सीन के दौरान माला सिन्हा ने शर्मिला टैगोर को थप्पड़ मार दिया था। हालाँकि, माला सिन्हा ने बाद में इन ख़बरों को पब्लिसिटी स्टंट बताया था।

  4. ओ. पी. नैय्यर और रफ़ी का ब्रेक: यह गीत महान संगीतकार ओ. पी. नैय्यर और मोहम्मद रफ़ी के बीच आखिरी बड़े सहयोगों में से एक माना जाता है। इस फ़िल्म के बाद, कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों के बीच किसी वजह से मनमुटाव हो गया था, और ओ. पी. नैय्यर ने बाद में रफ़ी की जगह महेंद्र कपूर का इस्तेमाल ज़्यादा करना शुरू कर दिया था।

  5. कहानी का प्लॉट: यह फ़िल्म जासूसी थ्रिलर (spy thriller) शैली की थी, जिसमें एक भारतीय एयर फ़ोर्स अधिकारी को उसके चीनी हमशक्ल जासूस द्वारा फंसा दिया जाता है, और फिर वह अपनी बेगुनाही साबित करने की लड़ाई लड़ता है।

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Aap aaye to zindagi (jahan ara) Rafi





"बाद मुद्दत के ये घड़ी आई, आप आए तो ज़िंदगी आई" है, जो फ़िल्म 'जहाँ आरा' (Jahan Ara, 1964) का एक अत्यंत लोकप्रिय युगल गीत (Duet) है, जिसे मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर ने गाया है।

यह गीत और फ़िल्म दोनों ही अपने संगीत और भव्यता के लिए जाने जाते हैं।

यहाँ फ़िल्म 'जहाँ आरा' (1964) से जुड़े विस्तृत तथ्य और दिलचस्प जानकारी दी गई है:


गीत का विवरण: "बाद मुद्दत के ये घड़ी आई, आप आए तो ज़िंदगी आई"

यह गीत फ़िल्म के रोमांटिक और भावनात्मक केंद्र में है।

विशेषताजानकारी
गायक/गायिकामोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi) और सुमन कल्याणपुर (Suman Kalyanpur)
संगीतकारमदन मोहन (Madan Mohan)
गीतकारराजेन्द्र कृष्ण (Rajinder Krishan)
कलाकार (फिल्मांकन)भारत भूषण (Bharat Bhushan) और माला सिन्हा (Mala Sinha)
गीत की एक पंक्ति“इश्क़ मर-मर के कामयाब हुआ, आज एक ज़र्रा आफ़ताब हुआ”

यह गीत मुग़ल शहज़ादी जहाँआरा और मिर्ज़ा युसुफ़ चेंगेज़ी के बीच लम्बे समय बाद होने वाले मिलन के भाव को दर्शाता है, जिसमें ख़ुशी, सुकून और पुनर्मिलन की भावना भरी हुई है। यह मदन मोहन की उत्कृष्ट मेलोडी कंपोजीशन में से एक है।

फ़िल्म 'जहाँ आरा' (Jahan Ara, 1964) से जुड़े दिलचस्प तथ्य

'जहाँ आरा' एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी है जो मुग़ल इतिहास की भव्यता को दर्शाती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और कहानी

  • पात्र पर आधारित पहली फ़िल्म: यह हिंदी सिनेमा की पहली फ़िल्म थी जो मुग़ल सम्राट शाहजहाँ की बड़ी बेटी, जहाँआरा बेगम साहिब के जीवन पर आधारित थी। फ़िल्म में माला सिन्हा ने जहाँआरा का किरदार निभाया था।

  • ताजमहल और त्याग: कहानी जहाँआरा और एक फ़ारसी कवि मिर्ज़ा युसुफ़ चेंगेज़ी (भारत भूषण) के बचपन के प्यार के इर्द-गिर्द घूमती है। फ़िल्म में दिखाया गया है कि अपनी माँ मुमताज़ महल की मृत्यु के बाद, जहाँआरा अपने पिता शाहजहाँ (पृथ्वीराज कपूर) की देखभाल करने का वचन देती है। इस वचन को निभाने के लिए, वह अपने प्रेमी को त्याग देती है।

  • जहाँआरा बेगम: जहाँआरा एक शक्तिशाली और धनी मुग़ल राजकुमारी थीं, जिन्होंने अपनी संपत्ति से दिल्ली में चांदनी चौक बाज़ार और उसके पास के बागानों की योजना बनाई थी।

संगीत से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

  • मदन मोहन का श्रेष्ठ स्कोर: महान संगीतकार मदन मोहन ने इस फ़िल्म के लिए संगीत तैयार किया। हालाँकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इसका संगीत (खासकर ग़ज़लें) कालजयी (Timeless Classics) माने जाते हैं।

  • मोहम्मद रफ़ी के अन्य गीत: रफ़ी साहब ने इस फ़िल्म में एक और बेहतरीन सोलो ग़ज़ल गाई है: "किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए"

  • तलत महमूद का योगदान: मदन मोहन ने इस फ़िल्म के साथ तलत महमूद को कई वर्षों के अंतराल के बाद फ़िल्मी संगीत में वापस लाया। तलत महमूद ने फ़िल्म के लिए तीन सोलो (जैसे "फिर वही शाम, वही ग़म, वही तन्हाई") और एक युगल गीत गाया। संगीत प्रेमियों के लिए यह एक बड़ी बात थी।

  • मंगेशकर बहनों का अनूठा रिकॉर्ड: माना जाता है कि इस फ़िल्म के लिए एक गीत रिकॉर्ड किया गया था जिसमें चारों मंगेशकर बहनें (लता, आशा, उषा और मीना) एक साथ थीं। हालाँकि, इस गीत को फ़िल्म में शामिल नहीं किया गया और न ही यह व्यावसायिक रूप से रिलीज़ हो पाया।

मुख्य कलाकार

  • माला सिन्हा – जहाँआरा

  • भारत भूषण – मिर्ज़ा युसुफ़ चेंगेज़ी

  • पृथ्वीराज कपूर – शाहजहाँ

  • शशिकला – मुमताज़ महल की बहन

निष्कर्ष: 'जहाँ आरा' एक ऐसी फ़िल्म है जिसका नाम इतिहास और मदन मोहन के मेलोडी भरे संगीत के कारण आज भी सम्मान से लिया जाता है।

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Phir Wohi Sham - Talat Mehmood from Film Jahan Aara




फ़िल्म 'जहाँ आरा' (Jahan Ara, 1964) का यह गीत ग़ज़ल गायक तलत महमूद की बेहतरीन प्रस्तुतियों में से एक है।

यहाँ इस भावुक गीत का विवरण और फ़िल्म से जुड़े दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:

गीत का विवरण: "फिर वही शाम, वही ग़म, वही तन्हाई है"

यह गीत तलत महमूद की उस विशिष्ट शैली को दर्शाता है जिसके लिए उन्हें जाना जाता था—नज़ाकत (delicacy) से भरी उदासी और रोमांटिक दर्द

विशेषताजानकारी
फ़िल्मजहाँ आरा (Jahan Ara) (1964)
गायकतलत महमूद (Talat Mehmood)
संगीतकारमदन मोहन (Madan Mohan)
गीतकारराजेन्द्र कृष्ण (Rajinder Krishan)
कलाकार (फिल्मांकन)भारत भूषण (Bharat Bhushan)

गीत का सार और मूड

  • थीम: यह गीत प्रेम में बिछड़े हुए नायक मिर्ज़ा युसुफ़ चेंगेज़ी (भारत भूषण) की गहरी उदासी, निराशा और अथाह तन्हाई (loneliness) को व्यक्त करता है। वह अपने प्रेम (शहज़ादी जहाँआरा) की याद में डूबा हुआ है।

  • भावनात्मक अपील: गीत में 'शाम', 'ग़म', और 'तन्हाई' का दोहराव एक चक्र को दर्शाता है, जहाँ नायक हर शाम अपने उसी दुख और अकेलेपन का सामना करता है।

    फिर वही शाम, वही ग़म, वही तन्हाई है दिल को समझाने की फिर शम्मा जलायी है

  • तलत महमूद की आवाज़: तलत महमूद की मखमली और थोड़ी-सी काँपती हुई आवाज़ इस तरह की melancholic ग़ज़लों के लिए एकदम सही थी, जिसने इस गीत को अमर बना दिया। यह गीत मदन मोहन और तलत महमूद के सफल सहयोगों में से एक है।

फ़िल्म 'जहाँ आरा' (1964) से जुड़े दिलचस्प तथ्य

'जहाँ आरा' मुग़ल इतिहास पर आधारित एक भव्य फ़िल्म थी जो अपने संगीत और कॉस्ट्यूम ड्रामा के लिए याद की जाती है।

  1. तलत महमूद की वापसी (The Comeback): यह गीत गायक तलत महमूद के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 50 के दशक के अंत में, तलत महमूद ने अभिनय पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया था, जिससे उनके गायन का करियर धीमा पड़ गया। संगीतकार मदन मोहन ने जोर देकर उन्हें इस फ़िल्म के लिए रिकॉर्ड करवाया, जिसने उन्हें एक बार फिर संगीत प्रेमियों के बीच स्थापित कर दिया।

  2. मदन मोहन का श्रेष्ठ कार्य: यह फ़िल्म संगीतकार मदन मोहन के सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय और ग़ज़ल स्कोर में से एक मानी जाती है। हालांकि फ़िल्म व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हुई, लेकिन मदन मोहन की ग़ज़लों की रानी के रूप में पहचान इस फ़िल्म से और मज़बूत हुई।

  3. राजसी भव्यता: फ़िल्म में सम्राट शाहजहाँ (पृथ्वीराज कपूर) और उनकी बेटी जहाँआरा (माला सिन्हा) के जीवन को दर्शाया गया था, जिसके लिए मुग़ल दरबार और उस दौर की भव्यता (Grandeur) को दर्शाने के लिए विशाल सेट और शानदार कॉस्ट्यूम का इस्तेमाल किया गया था।

  4. शाहजहाँ और जहाँआरा: फ़िल्म के मूल में जहाँआरा द्वारा अपने पिता शाहजहाँ की देखभाल करने के लिए किए गए त्याग की कहानी है, जिसकी वजह से वह अपने सच्चे प्यार (मिर्ज़ा युसुफ़ चेंगेज़ी) से शादी नहीं कर पाती है।

  5. माला सिन्हा का क्लासिक रूप: अभिनेत्री माला सिन्हा ने शहज़ादी जहाँआरा का किरदार निभाकर अपनी अभिनय क्षमता को एक नया आयाम दिया, और इस किरदार में उनका शाही और संजीदा अंदाज़ बहुत सराहा गया।


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Quotes on Jealousy


Jealousy is simply and clearly the fear that you do not have value.  Jealousy scans for evidence to prove the point - that others will be preferred and rewarded more than you.  There is only one alternative - self-value.  If you cannot love yourself, you will not believe that you are loved.  You will always think it's a mistake or luck.  Take your eyes off others and turn the scanner within.  Find the seeds of your jealousy, clear the old voices and experiences.  Put all the energy into building your personal and emotional security.  Then you will be the one others envy, and you can remember the pain and reach out to them.  (Jennifer James)




As iron is eaten by rust, so are the envious consumed by envy.  (Antisthenes)






It is in the character of very few men to honor without envy a friend who has prospered.  (Aeschylus)






Whoever envies another confesses his superiority.  (Samuel Johnson)






Envy is a symptom of lack of appreciation of our own uniqueness and self worth.  Each of us has something to give that no one else has.  (Elizabeth O'Connor)






Jealousy... is a mental cancer.  (B.C. Forbes)











Quotes on Confidence


Nobody can make you feel inferior without your consent.  (Eleanor Roosevelt)




It took me a long time not to judge myself through someone else's eyes.  (Sally Field)




Success comes in cans, not cant's.  (Author Unknown)


If you really put a small value upon yourself, rest assured that the world will not raise your price.  (Author Unknown)






Don't let anyone steal your dream.  It's your dream, not theirs.  
(Dan Zadra)




Men harm others by their deeds, themselves by their thoughts.  (Augustus )




Plant your own garden and decorate your own soul, instead of waiting for someone to bring you flowers.  (Veronica A. Shoffstall)








Self-confidence grows on trees, in other people's orchards.  (Mignon McLaughlin)






The best way to gain self-confidence is to do what you are afraid to do.   (Author Unknown)

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