Friday, April 06, 2012

Mohammad Rafi - Jo baat Tujh Mein Hai Teri Tasveer Mein Nahi





यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब के गाये गए सबसे दार्शनिक और रोमांटिक गीतों में से एक है, जो 1963 की ऐतिहासिक फ़िल्म 'ताज महल' (Taj Mahal) का हिस्सा है।

यहाँ इस वीडियो का विवरण और फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "जो बात तुझ में है तेरी तस्वीर में नहीं"

यह एक सुंदर ग़ज़ल है जो इस विचार को व्यक्त करती है कि किसी व्यक्ति का वास्तविक आकर्षण, भावनाएं, और जीवंतता कभी भी किसी स्थिर चित्र या तस्वीर में कैद नहीं की जा सकती।

विशेषताजानकारी
फ़िल्मताज महल (Taj Mahal) (1963)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकाररोशन (Roshan)
गीतकारसाहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi)
कलाकार (फिल्मांकन)प्रदीप कुमार (Pradeep Kumar) और बीना राय (Bina Rai)

वीडियो का सार और संदेश

  • थीम: यह गीत सम्राट शाहजहाँ (प्रदीप कुमार) द्वारा अपनी प्रिय बेगम मुमताज़ महल (बीना राय) की सुंदरता और जीवंत उपस्थिति की प्रशंसा में गाया गया है।

  • मूल भावना: नायक यह बताने की कोशिश कर रहा है कि रंग तो तस्वीर में ढल गए, लेकिन प्रेमिका की असली "साँसों की आँच," "जिस्म की ख़ुशबू" और उसके हाव-भाव की अदा (अदा) को तस्वीर नहीं उतार पाई।

  • दार्शनिक गहराई: यह ग़ज़ल प्रेम की भौतिक उपस्थिति और उसके कलात्मक चित्रण के बीच के अंतर को दर्शाती है। यह बताता है कि सच्चा हुस्न (Beauty) अचल (lifeless) नहीं हो सकता।


फ़िल्म 'ताज महल' (Taj Mahal, 1963) के बारे में दिलचस्प तथ्य

यह फ़िल्म विश्व प्रसिद्ध प्रेम कहानी—मुगल बादशाह शाहजहाँ और मुमताज़ महल के शाश्वत प्रेम—पर आधारित एक शानदार एपिक थी।

  1. संगीत और साहित्य का मिलन: इस फ़िल्म का संगीत इसकी सबसे बड़ी पहचान है। संगीतकार रोशन और गीतकार साहिर लुधियानवी की जोड़ी ने मिलकर एक ऐसा कालजयी (Timeless) साउंडट्रैक तैयार किया, जो आज भी भारतीय संगीत का एक मील का पत्थर है।

  2. अन्य सुपर हिट गीत: इस फ़िल्म ने कई अन्य प्रसिद्ध गीत दिए, जो रफ़ी साहब और लता मंगेशकर की जोड़ी की लोकप्रियता को दर्शाते हैं।

    • "जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा"

    • "पाँव छू लेने दो फूलों को"

  3. राजसी भव्यता: 1960 के दशक में, यह फ़िल्म अपनी राजसी भव्यता (Royal Grandeur) और महंगे सेटों के लिए प्रसिद्ध थी। इसने दर्शकों को मुगल काल की विशालता और सुंदरता का अनुभव कराया।

  4. सर्वश्रेष्ठ संगीत पुरस्कार: इस फ़िल्म के संगीत के लिए संगीतकार रोशन को उनके सर्वश्रेष्ठ काम के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (Filmfare Award) से सम्मानित किया गया था।

  5. अभिनेता की पहचान: इस फ़िल्म के कारण अभिनेता प्रदीप कुमार की पहचान ऐतिहासिक और पीरियड ड्रामा फिल्मों के प्रमुख नायक के रूप में स्थापित हो गई थी।




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Rafi - Tum Bin Jaoon Kahan - Pyar Ka Mausam [1969]






यह गाना भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे ज़्यादा बार रिकॉर्ड किए गए और इमोशनली कनेक्ट करने वाले गानों में से एक है।

यहाँ गीत और फ़िल्म 'प्यार का मौसम' (Pyar Ka Mausam) से जुड़ी जानकारी दी गई है:


गीत का विवरण: "तुम बिन जाऊँ कहाँ"

यह गीत 1969 की फ़िल्म 'प्यार का मौसम' का एक सदाबहार नज़्म है, जिसे दो महान गायकों ने दो अलग-अलग सिचुएशन्स के लिए रिकॉर्ड किया था।

विशेषताजानकारी
फ़िल्मप्यार का मौसम (Pyar Ka Mausam) (1969)
गायक (यह वर्ज़न)मोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारआर. डी. बर्मन (R. D. Burman)
गीतकारमजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri)
कलाकार (फिल्मांकन)शशि कपूर (Shashi Kapoor) और आशा पारेख (Asha Parekh)

मोहम्मद रफ़ी वर्ज़न का सार

  • मूड और सिचुएशन: रफ़ी साहब का वर्ज़न शशि कपूर पर फ़िल्माया गया है और यह गीत फ़िल्म के रोमांस को दर्शाता है। यह एक प्रेम की घोषणा और प्रियतम के प्रति संपूर्ण समर्पण को व्यक्त करता है।

  • बोलों की गहराई: गीत के बोल प्यार और लाचारी के एहसास को दर्शाते हैं।

    तुम बिन जाऊँ कहाँ, के दुनिया में आ के

    कुछ न फिर चाहा, सिवा तेरे

    यह पंक्तियाँ नायक की अपने जीवन में नायिका के महत्व को बताती हैं कि उसके बिना वह दुनिया में कहीं और जाना नहीं चाहता।

किशोर कुमार वर्ज़न का कनेक्शन

  • दिलचस्प बात यह है कि इसी फ़िल्म में यह गाना किशोर कुमार ने भी गाया है, जो भारत भूषण पर फ़िल्माया गया है।

  • किशोर कुमार का वर्ज़न ज़्यादा भावनात्मक और दुख भरा है, जबकि रफ़ी साहब का वर्ज़न ज़्यादा रूमानी और उल्लासपूर्ण है।

  • फ़िल्म में यह गाना चार बार आता है, और इसका इस्तेमाल परिवार के बिछड़ने और फिर जुड़ने के लिए एक थीम सॉन्ग के रूप में किया गया है।


फ़िल्म 'प्यार का मौसम' (1969) के बारे में दिलचस्प तथ्य

यह फ़िल्म मशहूर निर्देशक नासिर हुसैन की एक सफल म्यूजिकल रोमांस थी।

  1. संगीतकार का अभिनय: यह उन दुर्लभ फ़िल्मों में से एक है जहाँ संगीतकार आर. डी. बर्मन (पंचम दा) ने संगीत देने के साथ-साथ एक अभिनय की भूमिका भी निभाई थी! उन्होंने फ़िल्म में झटपट सिंह के सहायक का किरदार निभाया था।

  2. नासिर हुसैन का पैटर्न: यह फ़िल्म नासिर हुसैन की पसंदीदा कहानी की थीम को दर्शाती है, जहाँ बचपन में बिछड़े हुए परिवार के सदस्य कई नाटकीय घटनाओं और गलतफहमियों के बाद अंत में फिर से मिलते हैं। उनकी कई सफल फ़िल्मों (जैसे यादों की बारात और हम किसी से कम नहीं) में भी यही थीम दोहराई गई है।

  3. बाल कलाकार का कनेक्शन: शशि कपूर के बचपन का किरदार निभाने वाले अभिनेता फ़ैज़ल ख़ान थे, जो निर्देशक नासिर हुसैन के भतीजे और आगे चलकर आमिर ख़ान के भाई बने।

  4. सिल्वर जुबली हिट: यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर एक सिल्वर जुबली हिट साबित हुई, जिसने शशि कपूर और आशा पारेख की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री को और मजबूत किया।

  5. बंगाली कनेक्शन: आर. डी. बर्मन ने "तुम बिन जाऊँ कहाँ" की धुन का इस्तेमाल 1968 में अपने बंगाली गैर-फ़िल्मी गीत 'एकदिन पाखी उड़े' में भी किया था, जिसे किशोर कुमार ने ही गाया था।

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tumhari zulf ke - madan mohan - rafi - naunihal - kaifi azmi

TUM JO MIL GAYE HO - HANSTE ZAKHAM 1973 - MADAN MOHAN - MOHD RAFI .

Mehboob Ki Mehndi - Yeh Jo Chilman Hai - Mohd.Rafi





यह गीत अभिनेता राजेश खन्ना के सबसे यादगार और लोकप्रिय गीतों में से एक है, जिसने उनके रोमांटिक सुपरस्टार की छवि को और मजबूत किया।

यहाँ गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म 'मेहबूब की मेहंदी' (Mehboob Ki Mehndi) से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "ये जो चिलमन है"

यह एक क्लासिक रोमांटिक गीत है जो पर्दे के पीछे छिपी प्रेमिका से मिलने की बेसब्री और मीठी गुस्ताख़ी को दर्शाता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्ममेहबूब की मेहंदी (Mehboob Ki Mehndi) (1971)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant-Pyarelal)
गीतकारआनंद बख्शी (Anand Bakshi)
कलाकार (फिल्मांकन)राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) और लीना चन्दावरकर (Leena Chandavarkar)

वीडियो का सार और मूड

  • थीम: यह गीत नायक द्वारा नायिका को प्रेमपूर्वक छेड़ने और उससे पर्दा हटाने की गुज़ारिश है। 'चिलमन' (Chilman/पर्दा) यहाँ केवल एक भौतिक बाधा नहीं है, बल्कि शर्म और संकोच की रोमांटिक बाधा भी है।

  • राजेश खन्ना की अदा: वीडियो में राजेश खन्ना अपनी अद्वितीय अदाओं (unique mannerisms) का प्रदर्शन करते हैं, जैसे आँख मारना और सिर हिलाना। वह बड़ी ही मासूमियत से चिलमन के इर्द-गिर्द घूमकर अपनी प्रेमिका से पर्दा हटाने का आग्रह करते हैं।

  • विरोध और आकर्षण: पर्दे के पीछे बैठी नायिका (लीना चन्दावरकर) अपने संकोची हाव-भाव (coy expressions) से नायक को और भी ज़्यादा आकर्षित करती है। यह गीत प्यार में आकर्षण और थोड़ी-सी तकरार (teasing) के आनंद को खूबसूरती से दर्शाता है।

  • मुख्य पंक्तियाँ:

    ये जो चिलमन है, दुश्मन है हमारी

    कितनी शरमीली है दुल्हन हमारी

    दूसरा और कोई यहाँ क्यूँ रहे

    हुस्न और इश्क़ के दरमियाँ क्यूँ रहे


फ़िल्म 'मेहबूब की मेहंदी' (1971) के बारे में दिलचस्प तथ्य

यह फ़िल्म एक सामाजिक ड्रामा है जो मुस्लिम समाज के रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों पर केंद्रित है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी पहचान इसका शानदार संगीत है।

  1. राजेश खन्ना का स्वर्णिम दौर: यह फ़िल्म राजेश खन्ना के करियर के स्वर्णिम दौर (Golden Period) में रिलीज़ हुई थी, जहाँ उनकी हर फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही थी। फ़िल्म ने राजेश खन्ना को एक ऐसे मुस्लिम लड़के के किरदार में दिखाया जो शायरी पसंद करता है।

  2. संगीत की अपार सफलता: फ़िल्म का संगीत, जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था, ज़बरदस्त हिट रहा। "ये जो चिलमन है" के अलावा, "मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं," और "जानाब-ए-आली" जैसे गाने भी बेहद लोकप्रिय हुए।

  3. निर्देशक की वापसी: फ़िल्म के निर्देशक एच. एस. रवैल ने इस फ़िल्म के साथ एक सफल वापसी की थी, और उनकी बेटी लीना चन्दावरकर इस फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री थीं।

  4. गीतकार-संगीतकार की जोड़ी: यह फ़िल्म गीतकार आनंद बख्शी और संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की सफल जोड़ी के कई हिट एल्बमों में से एक है, जिन्होंने 70 के दशक के अधिकांश संगीत पर राज किया।

  5. उर्दू साहित्यिक स्पर्श: फ़िल्म के संवादों और गीतों में एक उच्च कोटि का उर्दू साहित्यिक स्पर्श है, जो फ़िल्म को एक खास नज़ाकत और संवेदनशीलता देता है।

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Rafi - Ye Zulf Agar Khul Ke - Kaajal [1965]





यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब के गाये गए सबसे शायराना (poetic) और क्लासिकल रोमांटिक गीतों में से एक है, जो 1965 की फ़िल्म 'काजल' (Kaajal) का हिस्सा है।

यहाँ इस गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए तो"

यह एक गहन रूमानी ग़ज़ल शैली का गीत है, जहाँ नायक अपनी प्रेमिका के केशों (बालों) की तारीफ़ करने के लिए काव्यात्मक रूपक (poetic metaphors) का उपयोग करता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्मकाजल (Kaajal) (1965)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकाररवि (Ravi)
गीतकारसाहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi)
कलाकार (फिल्मांकन)राज कुमार (Raaj Kumar) और मीना कुमारी (Meena Kumari)

  • थीम: नायक (राज कुमार) नायिका (मीना कुमारी) के सौंदर्य, विशेष रूप से उसकी जुल्फों की प्रशंसा करता है। वह कहता है कि अगर ये ज़ुल्फ़ें खुल जाएँ, तो दुनिया पर अंधेरा छा जाएगा, जो उनकी मोहक शक्ति (captivating power) को दर्शाता है।

  • कलाकारों की केमिस्ट्री: राज कुमार अपने अद्वितीय संवाद शैली और मीना कुमारी अपने गहरे भावनात्मक प्रदर्शन (intense emotional expressions) से गीत को जीवंत करती हैं। राज कुमार की संवाद अदायगी वाला अंदाज़ इस गाने को एक खास ड्रामा और स्टाइल देता है।

  • बोलों की ख़ूबसूरती: गीत साहिर लुधियानवी की बेहतरीन शायरी का उदाहरण है, जो रूपक और विरोधाभास का उपयोग करते हैं:

    ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए तो, शायद घटा भी शरमा जाए! फिर चुलबुल एक हवा आए तो, दुनिया पे अँधेरा छा जाए!


फ़िल्म 'काजल' (Kaajal, 1965) के बारे में दिलचस्प तथ्य

'काजल' 1965 की एक बड़ी हिट थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता हासिल की और इसे कई श्रेणियों में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया।

  1. उपन्यास पर आधारित: यह फ़िल्म लोकप्रिय लेखक गुलशन नंदा के हिंदी उपन्यास 'नवीन' (Naveen) पर आधारित थी, जो सामाजिक ड्रामा और पारिवारिक रिश्तों पर केंद्रित था।

  2. स्टार-स्टडेड कास्ट: फ़िल्म में 60 के दशक के तीन बड़े सितारे थे:

    • मीना कुमारी (ट्रेजेडी क्वीन)

    • राज कुमार (अपने स्टाइल के लिए जाने जाते थे)

    • धर्मेंद्र (उभरते हुए स्टार)

  3. मीना कुमारी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन: मीना कुमारी ने अपनी सशक्त भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (Filmfare Award for Best Actress) जीता। यह उनकी सबसे यादगार और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित (critically acclaimed) भूमिकाओं में से एक है।

  4. रवि और साहिर की जोड़ी: इस फ़िल्म के माध्यम से संगीतकार रवि और गीतकार साहिर लुधियानवी की जोड़ी ने एक और सफल सहयोग दिया। "ये ज़ुल्फ़ अगर खुल जाए" के अलावा, "छू लेने दो नाज़ुक होंठों को" (रफ़ी) और "तोरा मन दर्पण कहलाए" (आशा भोंसले) जैसे गाने भी इसी फ़िल्म से थे।

  5. डार्क थीम: फ़िल्म की कहानी एक जटिल पारिवारिक साज़िश, विश्वासघात, और प्रेम के बलिदान के इर्द-गिर्द घूमती है, जो उस समय के सामाजिक-पारिवारिक नाटकों के पैटर्न को दर्शाती है।


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Dil ki awaaz bhi sun (rafi) Humsaya





यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब के सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले और भावनात्मक गीतों में से एक है, जो 1968 की फ़िल्म 'हमसाया' (Humsaya) का हिस्सा है।

यहाँ इस गीत के वीडियो का विवरण और फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं:


गीत का विवरण: "दिल की आवाज़ भी सुन"

यह गीत गहन प्रेम, विश्वास और न्याय की गुहार (plea for justice) से भरा हुआ है, जहाँ नायक अपनी प्रेमिका से शब्दों या दुनिया के इल्ज़ामों के बजाय अपने दिल की सच्चाई सुनने का आग्रह करता है।

विशेषताजानकारी
फ़िल्महमसाया (Humsaya) (1968)
गायकमोहम्मद रफ़ी (Mohammed Rafi)
संगीतकारओ. पी. नैय्यर (O. P. Nayyar)
गीतकारशिवन रिज़वी (Shevan Rizvi)
कलाकार (फिल्मांकन)जॉय मुखर्जी (Joy Mukherjee) और शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore)

वीडियो का सार और मूड

  • थीम: यह गीत प्रेम में विश्वास को फिर से स्थापित करने की भावनात्मक कोशिश है। नायक पर किसी अपराध का इल्ज़ाम है, और वह जानता है कि उसकी प्रेमिका भी उस पर शक कर रही है।

  • भावनात्मक अपील: वीडियो में जॉय मुखर्जी, जो कि फ़िल्म में नायक की भूमिका में हैं, गहरी उदासी और बेचैनी के साथ यह गीत गाते हैं। वह अपनी प्रेमिका (शर्मिला टैगोर) की ओर देखते हैं, जो उनसे रूठी हुई है।

  • मुख्य पंक्तियाँ:

    दिल की आवाज़ भी सुन, मेरे फ़साने पे न जा, मेरी नज़रों की तरफ़ देख, ज़माने पे न जा। यह पंक्तियाँ गीत के सार को दर्शाती हैं कि दुनिया के इल्ज़ामों (कहानी) पर मत जाओ, बल्कि मेरी आँखों में मेरे दिल की सच्चाई देखो।

  • संगीत शैली: ओ. पी. नैय्यर के संगीत की पहचान इसमें साफ़ दिखती है, जहाँ तेज़ ताल (rhythms) और वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रेशन का प्रभाव है, लेकिन मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने इसे एक क्लासिक उदास-रूमानी (melancholic-romantic) स्पर्श दिया है।


फ़िल्म 'हमसाया' (Humsaya, 1968) के बारे में दिलचस्प तथ्य

'हमसाया' एक रोमांटिक जासूसी थ्रिलर फ़िल्म थी जो अपने ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी।

  1. जॉय मुखर्जी का डबल रोल और निर्देशन: इस फ़िल्म के नायक जॉय मुखर्जी ने न सिर्फ़ भारतीय वायु सेना के अधिकारी श्याम और उनके हमशक्ल चीनी जासूस लिन टैन का दोहरा किरदार (Double Role) निभाया, बल्कि उन्होंने ही इस फ़िल्म को निर्मित (Produced) और निर्देशित (Directed) भी किया था।

  2. दो प्रसिद्ध नायिकाएँ: फ़िल्म में दो प्रमुख अभिनेत्रियाँ थीं: शर्मिला टैगोर और माला सिन्हा। जॉय मुखर्जी के दोहरे किरदार को देखते हुए, दो नायिकाओं का होना कहानी को रोमांटिक मोड़ देता है।

  3. सेट पर प्रतिद्वंदिता: मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फ़िल्म के सेट पर दो लीड अभिनेत्रियों, शर्मिला टैगोर और माला सिन्हा के बीच प्रतिद्वंदिता (rivalry) की ख़बरें थीं। उनकी तकरार इतनी बढ़ गई थी कि एक रिपोर्ट में तो यह भी दावा किया गया था कि एक सीन के दौरान माला सिन्हा ने शर्मिला टैगोर को थप्पड़ मार दिया था। हालाँकि, माला सिन्हा ने बाद में इन ख़बरों को पब्लिसिटी स्टंट बताया था।

  4. ओ. पी. नैय्यर और रफ़ी का ब्रेक: यह गीत महान संगीतकार ओ. पी. नैय्यर और मोहम्मद रफ़ी के बीच आखिरी बड़े सहयोगों में से एक माना जाता है। इस फ़िल्म के बाद, कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों के बीच किसी वजह से मनमुटाव हो गया था, और ओ. पी. नैय्यर ने बाद में रफ़ी की जगह महेंद्र कपूर का इस्तेमाल ज़्यादा करना शुरू कर दिया था।

  5. कहानी का प्लॉट: यह फ़िल्म जासूसी थ्रिलर (spy thriller) शैली की थी, जिसमें एक भारतीय एयर फ़ोर्स अधिकारी को उसके चीनी हमशक्ल जासूस द्वारा फंसा दिया जाता है, और फिर वह अपनी बेगुनाही साबित करने की लड़ाई लड़ता है।

(This video is posted by channel – Anuj8327 on YouTube, and Raree India has no direct claims to this video. This video is added to this post for knowledge purposes only.)

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