Tuesday, October 23, 2012

बाज़ार में......

बाज़ार में बिक रही थी
हत्या करके लायी गयी
मछलियाँ
ढेर पर ढेर लगी ,
मरी मछलियाँ
धड कटा खून सना
बदबू फैलती बाज़ार भर में

मरी मछलियों पर जुटी भीड़
हाथों में उठाकर
भांपती उनका ताजापन
लाश का ताजापन

भीड़ जुटी थी
मुर्गे की दुकान  पर
बड़े बड़े लोहे के पिंजरों में
बंद सफ़ेद- गुलाबी मुर्गे या मुर्गियां 
मासूम आँखों से भीड़ को ताकते
और भीड़ ताकती उनको
भूखी निगाहों से

अपने बांह के दर्द में
तड़पते आदमी ने
दबाकर बांह को पकड़ा था इस तरह
कि कोई छु न पाए
दर्द कहीं बढ़ न जाए
दुकानकार से कहता
मेरे लिए ये मुर्गा जल्दी से काट दो भाई
मैं दर्द से खड़ा नहीं हो पा  रहा

क्षण भर में मासूम मुर्गे की देह से
अलग कर दिए गए
दो आँखें, चोंच और पैर ।

(अपराजिता)







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