दीखते नहीं
पर
सहते हैं
सारा बोझ
ईमारत का .....
खिड़की
दरवाज़े
और कंगूरे
ये तो बस
यूँ ही इतराते रहते हैं ..
रीत है जग की
जो दीखता है
प्रशंसा पाता है
जो मरता है
भुला दिया जाता है
(मंजू मिश्रा )
Choriyaan Zindagi Ke Alag Alag Rangon Ki ..Jazbaaton Ki