मेरे लिए दुखांत नाटक का सबसे मार्मिक हिस्सा
इसका छठा अंक है
जब मंच के रणक्षेत्र में मुर्दे उठ खड़े होते हैं
अपने बालों का टोपा सम्भालते हुए
लबादों को ठीक करते हुए
जब जानवरों के पेट में घोंपे हुए छूरे निकाले जाते हैं
और फांसी पर लटके हुए शहीद
अपनी गर्दनों से फंदे उतारकर
एक बार फिर
जिंदा लोगों की कतार में खड़े हो जाते हैं
दर्शकों का अभिवादन करने.
वे सभी दर्शकों का अभिवादन करते हैं.
अकेले और साथ-साथ
पीला हाथ उठता है जख्मी दिल की तरफ
चला आ रहा है वह जिसने अभी-अभी खुदकुशी की थी
सम्मान में झुक जाता है
एक कटा हुआ सिर.
वे सभी झुकते हैं
जोड़ियों में…..
ज़ालिम मज़लूम की बाहों में बाहें डाले,
बुझदिल बहादुर को थामें हुए
नायक खलनायक के साथ मुस्कराते हुए.
एक स्वर्ण पादुका के अंगूठे तले शाश्वतता कुचल दी जाती है.
मानवीय मूल्यों का संघर्ष छिप जाता है एक चौड़े हैट के नीचे.
कल फिर शुरू करने की पश्चातापहीन लालसा!
और अब चला आ रहा है वह मेहमान.
जो तीसरे या चौथे अंक या बदलते हुए दृश्यों के बीच
कहीं मर गया था,
लौट आये हैं
बिना नाम-ओ-निशान छोड़े खो जानेवाले पात्र
नाटक के सभी संवादों से ज्यादा दर्दनाक है यह सोचना
कि ये बेचारे
बिना अपना मेकअप या चमकीली वेशभूषा उतारे
कब से मंच के पीछे खड़े इंतजार कर रहे थे.
सचमुच नाटक को सबसे ज्यादा नाटक बनाता है
पर्दे का गिरना
वे बातें जो गिरते हुए पर्दे के पीछे होती हैं
कोई हाथ किसी फूल की तरफ बढ़ता है
कोई उठाता है टूटी हुई तलवार
उस समय…..सिर्फ उस समय
मैं अपनी गर्दन पर महसूस करती हूं
एक अदृश्य हाथ
एक ठंडा स्पर्ष.
(विस्साव शिंबोर्स्का )
इसका छठा अंक है
जब मंच के रणक्षेत्र में मुर्दे उठ खड़े होते हैं
अपने बालों का टोपा सम्भालते हुए
लबादों को ठीक करते हुए
जब जानवरों के पेट में घोंपे हुए छूरे निकाले जाते हैं
और फांसी पर लटके हुए शहीद
अपनी गर्दनों से फंदे उतारकर
एक बार फिर
जिंदा लोगों की कतार में खड़े हो जाते हैं
दर्शकों का अभिवादन करने.
वे सभी दर्शकों का अभिवादन करते हैं.
अकेले और साथ-साथ
पीला हाथ उठता है जख्मी दिल की तरफ
चला आ रहा है वह जिसने अभी-अभी खुदकुशी की थी
सम्मान में झुक जाता है
एक कटा हुआ सिर.
वे सभी झुकते हैं
जोड़ियों में…..
ज़ालिम मज़लूम की बाहों में बाहें डाले,
बुझदिल बहादुर को थामें हुए
नायक खलनायक के साथ मुस्कराते हुए.
एक स्वर्ण पादुका के अंगूठे तले शाश्वतता कुचल दी जाती है.
मानवीय मूल्यों का संघर्ष छिप जाता है एक चौड़े हैट के नीचे.
कल फिर शुरू करने की पश्चातापहीन लालसा!
और अब चला आ रहा है वह मेहमान.
जो तीसरे या चौथे अंक या बदलते हुए दृश्यों के बीच
कहीं मर गया था,
लौट आये हैं
बिना नाम-ओ-निशान छोड़े खो जानेवाले पात्र
नाटक के सभी संवादों से ज्यादा दर्दनाक है यह सोचना
कि ये बेचारे
बिना अपना मेकअप या चमकीली वेशभूषा उतारे
कब से मंच के पीछे खड़े इंतजार कर रहे थे.
सचमुच नाटक को सबसे ज्यादा नाटक बनाता है
पर्दे का गिरना
वे बातें जो गिरते हुए पर्दे के पीछे होती हैं
कोई हाथ किसी फूल की तरफ बढ़ता है
कोई उठाता है टूटी हुई तलवार
उस समय…..सिर्फ उस समय
मैं अपनी गर्दन पर महसूस करती हूं
एक अदृश्य हाथ
एक ठंडा स्पर्ष.
(विस्साव शिंबोर्स्का )

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