थक चुका हूँ मैं
सीधे-सरल रास्तों पर चलते-चलते.
शुक्रगुज़ार हूँ मैं उनका,
जिन्होंने क़दमों तले फूल बिछाए,
पर अब इन फूलों से तलवे जलने लगे हैं,
पेड़ों की घनी छांव में
अब दम घुटता है,
सीधी सपाट सड़क
अब उबाऊ लगती है।
सीधे-सरल रास्तों पर चलते-चलते.
शुक्रगुज़ार हूँ मैं उनका,
जिन्होंने क़दमों तले फूल बिछाए,
पर अब इन फूलों से तलवे जलने लगे हैं,
पेड़ों की घनी छांव में
अब दम घुटता है,
सीधी सपाट सड़क
अब उबाऊ लगती है।

क्या फ़ायदा इस तरह चलने का
कि पसीना भी न निकले,
इतनी भी थकान न हो कि
सुस्ताने का मन करे?
घर से ज्यादा आराम सफ़र में हो,
तो क्या फ़ायदा बाहर निकलने का,
बैठने से ज्यादा आराम चलने में हो,
तो क्या फ़ायदा ऐसे चलने का?
मुझे दिखा दो उबड़-खाबड़ राह ,
जिसमें कांटे बिछे हों,
जहाँ दूर-दूर तक कहीं
पेड़ों कि छांव न हो,
जिस पर चल कर लगे कि चला हूँ,
फिर मंजिल चाहे मिले न मिले।
(ओंकार केडिया )
कि पसीना भी न निकले,
इतनी भी थकान न हो कि
सुस्ताने का मन करे?
घर से ज्यादा आराम सफ़र में हो,
तो क्या फ़ायदा बाहर निकलने का,
बैठने से ज्यादा आराम चलने में हो,
तो क्या फ़ायदा ऐसे चलने का?
मुझे दिखा दो उबड़-खाबड़ राह ,
जिसमें कांटे बिछे हों,
जहाँ दूर-दूर तक कहीं
पेड़ों कि छांव न हो,
जिस पर चल कर लगे कि चला हूँ,
फिर मंजिल चाहे मिले न मिले।
(ओंकार केडिया )
Photo Credit: Unknown
No comments:
Post a Comment
Do Leave a Comment